- यूपीएसआईडीसी के दागदार अधिकारियों पर जल्द गिरेगी गाज
- लैंडयूज परिवर्तन के कई मामलों में निगम तंत्र का दामन हुआ है दागदार
- लैंडयूज परिवर्तन आदि के कई मामलों में जल्द पूरी हो सकती है जांच
- रडार पर एनसीआर में बिल्डरों में मेहरबानी लुटाने वाले अधिकारी
- निगम के भ्रष्टाचार पर सीबीआई, सीबीसीआईडी, विजिलेंस, ईओडब्ल्यू और ईडी जैसी जांच एजेंसियों कर रही हैं जांच
- कई विभागीय जांचे भी प्रचलित
बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम (अब यूपीसीडा) में तमाम घोटालों में प्रचलित जांचे जल्द ही अंजाम तक पहुंच सकती हैं। शासन स्तरीय आधिकारिक सूत्रों की मानें तो निगम के कई मनबढ़ अधिकारियों व कर्मचारियों पर गाज गिरनी तय है। शासन स्तर से स्पष्ट संकेत हैं कि विभिन्न घोटालों के सूत्रधारों को जल्द ही कठोर दंड देकर भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को फलीभूत किया जाय। फिलहाल, ऐसे संकेत योगी सरकार के गठन के बाद से ही मिलते रहे हैं। पर, यह बात अलग है कि यूपीएसआईडीसी के दामन को दागदार करने वाले दर्जनों अधिकारियों व कर्मचारियों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम में लैंडयूज परिवर्तन, बिना कार्य कराये ठेकेदारों को करोड़ों का भुगतान करने, पद सृजित न होते हुये भी चहेतों को मनचाही तैनाती देने सहित अन्य आर्थिक भ्रष्टाचार आदि के दर्जनों मामलों में समय-समय पर जांच बिठाई गई। पर, वर्षों बीतने के बावजूद यह नतीजे पर नहीं पहुंची। अब चर्चा तेज है कि वरिष्ठ विभागीय अधिकारियों को शासन स्तर से सख्त निर्देश मिले हैं कि ऐसे सभी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ प्रचलित जांच में तेजी लाते हुये, दोषियों को दंड दिलाया जाय।
विभागीय जानकारों की मानें तो उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (अब यूपीसीडा) के तत्कालीन प्रबंध निदेशकों ने अपने कार्यकाल मेें सैकड़ों चहेतों को मस्टर रोल पर रखा। वर्ष 2010 के पूर्व की अवधि में लगभग 482 कर्मचारियों को मस्टर रोल पर तैनात किया गया। वर्ष 2010 में ऐसे कॢमयों को नियमित करने के लिये शासन ने सूची मांगी, तो तत्कालीन प्रबंध निदेशक, संयुक्त प्रबंध निदेशक और काॢमक अनुभाव में तैनात अधिकारियों ने 482 की जगह 527 नाम भेज दिये। इन नामों को मंजूरी भी मिल गई। वर्ष 2011 में जब नियमित करने का कार्य शुरू हुआ, तो पता चला कि जो 46 गलत नाम भेजे गये थे उनमें से चार नाम ऐसे भी थे जिनकी मौत हो चुकी थी। कुछ कर्मचारियों के नाम सूची में दो-दो बार शामिल थे। इतना ही नहीं इस सूची में ऐसे नाम भी शामिल थे जो यूपीएसआईडीसी में कभी तैनात ही नहीं रहे।
औद्योगिक मंत्री के ऐलान का अब दिखेगा असर
गौरतलब है कि राजधानी के गोमती नगर स्थिति पिकप भवन में निगम का कैम्प कार्यालय है, जिसका प्रतिमाह किराया लगभग ढाई लाख रुपये है। इस किराये को बचाने के लिये निगम के अधिकारियों ने बीते वर्ष एक किफायती योजना के तहत 123 करोड़ रुपये की लागत से अमौसी औद्योगिक क्षेत्र में एक कार्यालय भवन के निर्माण की रूपरेखा तैयार की। फिर चहेते ठेकेदारों को मनमाना भुगतान किया। मामला प्रकाश में आने के बाद प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री ने राजधानी के अमौसी औद्योगिक क्षेत्र में ‘विवादित ढांचे’ (ठप पड़े निर्माणाधीन भवन) का औचक कर भ्रष्टाचारियों पर सख्त कार्रवाई का ऐलान किया था। साथ ही तत्कालीन विभागीय प्रमुख सचिव और प्रबंध निदेशक ने भी मौका मुआयना किया। अधिशासी अभियंता निर्माण इकाई सप्तम ने सरोजनीनगर थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया। इन प्रयासों का अब सार्थक परिणाम दिखाई दे रहा है।