शैलेन्द्र यादव
- नोटबंदी में पाबंदी के बावजूद बीज निगम प्रबंध तंत्र ने जमा कराये प्रतिबंधित 1,000 रुपये के नोट
- प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और मुख्यमंत्री से हुई आर्थिक भ्रष्टाचार की शिकयत, नतीजा अब तक शून्य
- प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रदेश के मुख्य सचिव को दिए कार्रवाई के निर्देश, धूल फांक रहे पत्र
- उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम प्रबंध तंत्र तैयार कर रहा घोटालेबाजों को बचाने की पटकथा : सूत्र
लखनऊ। भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार के कार्यकाल में भी धंधेबाज अधिकारी आजाद हैं। आर्थिक भ्रष्टाचार की कमर तोडऩे के लिए मोदी सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं में एक नोटबंदी को भी उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम के धंधेबाज अधिकारियों ने कमाई का जरिया बनाकर करोड़ों का वारा-न्यारा कर लिया। मामले की शिकायत देश के प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित शासन के सर्वोच्च शिखर पर बैठे अधिकारियों से हुई, पर नतीजा शून्य ही रहा। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री कार्यालय से एक नहीं, दो नहीं बल्कि तीन-तीन बार प्रदेश के मुख्य सचिव को संबंधित प्रकरण पर यथोचित कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए। बावजूद इसके पीएमओ के यह पत्र अब तक मुख्य सचिव कार्यालय में धूल फांक रहे हैं।
गौरतलब है कि देश की अर्थ व्यवस्था से कालेधन को बाहर करने के लिये प्रधानमंत्री ने देशहित में आठ नवम्बर 2016 को 1000 और 500 रुपये के नोट बंद करने का निर्णय लिया था। पर, गेंहू बुआई का समय होने के चलते इससे किसानों को बीज, खाद और डीजल आदि खरीदने में परेशानियों का सामना करना पड़ा। किसानों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए केन्द्र सरकार ने 20 नवम्बर 2016 को बीज खरीद में चलन से बाहर किये गये 500 रुपये के पुराने नोट स्वीकार करने की व्यवस्था किसानों के पहचान पत्र लेने की अनिवार्य शर्त पर दी। पर, उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम के अधिकारियों ने ‘काले को सफेद’ बनाने का फार्मूला इजाद किया और पाबंदी के बावजूद 1000 रुपये के 11,437 नोट विभिन्न परियोजना कार्यालयों के बैंक खातों में जमा कराये। इन किसानों से पहचान पत्र भी नहीं लिये गये। निगम के विभिन्न परियोजना कार्यालयों के बैंक खातों में 1.14 करोड़ रुपये की यह काली धनराशि बीज निगम और बैंक अधिकारियों की सांठ-गांठ से सफेद हो गई।
बीज निगम के उप मुख्य विपणन अधिकारी ने केन्द्र सरकार को दो जनवरी 2017 को जो रिपोर्ट भेजी, उसमें लिखा है कि परियोजना कार्यालय मेरठ, अलीगढ़, आगरा, रामपुर, बरेली, कानपुर, इलाहाबाद, उरई, बांदा, लखनऊ, फैजाबाद, गोरखपुर, आजमगढ़ और वाराणसी में किसानों को नौ नवम्बर से 31 दिसम्बर 2016 तक प्रमाणित व आधारीय कुल 13,707 कुन्तल गेंहू बीज वितरित किया गया। इस खरीद में किसानों ने कुल तीन करोड़ 97 लाख 20 हजार रुपये की बीज खरीद की। किसानों ने 2,82,83,000 मूल्य के 500 रुपये के 56,566 पुराने नोट जमा किये, जबकि 1,14,37,000 रुपये मूल्य के 1000 रुपये के 11,437 नोटों से किसानों ने गेंहू बीज खरीदा। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब केन्द्र सरकार ने 1000 रुपये के नोट स्वीकार करने के लिए कोई छूट नहीं दी थी, तो बीज विकास निगम ने यह नोट कैसे स्वीकार किये?
बीज निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक आरआर सिंह ने 22 नवम्बर 2016 को जारी कार्यालय आदेश में स्पष्टï लिखा है, रबी वर्ष 2016-17 में निगम के पास लगभग 1,90,000 कुन्तल प्रमाणित गेंहू बीज वितरण के लिये शेष है। रुपये 500 और 1000 के नोट भारत सरकार द्वारा बंद किये जाने के कारण बीजों का वितरण अत्यधिक प्रभावित हुआ। भारत सरकार द्वारा किसानों के हित एवं रबी बीजों की बुआई के समय को देखते हुये पुरानी मुद्रा के रुपये 500 पर सरकारी संस्थाओं से बीजों के क्रय करने की छूट दी गई। बावजूद इसके निगम के अधिकारियों ने प्रतिबंधित 1000 रुपये के नोट निगम के बैंक खातों में जमा कराये। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर विभिन्न परियोजना कार्यालयों में किसानों के नाम पर 1000 रुपये के 11,437 नोट जमा कराकर अधिकारियों ने किसका कालाधन सफेद किया, जिनके गिरेबां तक दो साल बीतने के बावजूद भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन का दावा करने वाली सरकार के हाथ नहीं पहुंच पाए हैं?
धृतराष्ट्र बने रहे तत्कालीन एमडी आरआर सिंह
देश में जब नोटबंदी लागू हुई, उस दौरान उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम के प्रबंध निदेशक की कुर्सी पर आरआर सिंह विराजमान थे। नोटबंदी के दौरान किसानों को होने वाली समस्याओं से निजात दिलाने के लिए भारत सरकार ने 20 नवम्बर 2016 का राजपत्र जारी कर, पुराने 500 रुपये के नोट स्वीकार करने की शशर्त रियायत दी। इसके बाद तत्कालीन एमडी ने स्पष्ट निर्देश दिए कि 1000 रुपये के नोट स्वीकार नहीं किए जायेंगे। बावजूद इसके प्रतिबंधित नोट स्वीकार किए गए और वह धृतराष्ट्र की भूमिका में निगम के सिंहासन पर खामाशी की चादर ताने बैठे रहे। आरआर सिंह के कार्यकाल में ही उन्हीं के आदेश की धज्जियां मातहतों ने उड़ाई या स्वयं उन्होंने उड़वाई यह एक और जांच का विषय है।