- नहीं मिली सरकारी मदद, मजदूरों ने घरवापसी के लिये घर से पैसा मंगाकर खरीदी 24 साइकिलें
- संबंधित अधिकारियों व पुलिस थाने पर मदद के लिये लगाई गुहार, नतीजा निकला शून्य
- मजबूरी का दंश झेल रहे मजदूर रायबरेली से सपरिवार साइकिल से ही निकले झारखण्ड और बिहार

सुल्तानपुर। अशिक्षा, निर्धनता, विवशता और जागरूकता की कमी ही मजदूरों की मजबूरी है। यही मजबूरी बिहार और झारखंड राज्यों से रोजी-रोटी कमाने आये मजदूरों को लॉकडाउन में भारी पड़ रही है। लम्बे समय तक जब सरकारी राहत नसीब नहीं हुई, तो रोजी-रोटी के जुगाड़ में रायबरेली, सुलतानपुर, अमेठी आए मजदूर साइकिल पर सवार होकर ही अपने घर के लिए निकल पड़े हैं। कोई माह, दो माह तो कोई 3-4 माह से ज्यादा काम नही कर पाया।
कोरोना महामारी के चलते हुए लॉकडाउन ने उन्हें घर वापसी को विवश कर दिया। जो दिहाड़ी इन मजदूरों ने कमाई वह सब लॉकडाउन दौरान खाने-पीने में खर्च हो गयी। अब जब यहां बिन पैसे के रहना मुश्किल हो गया तो सबने घर वापसी का निर्णय लिया। समस्या यह थी घर पहुंचे कैसे? सबने अपने-अपने घर से रुपये मंगाए और 10 नई व 14 पुरानी साइकिलें खरीदी। नई साइकिलें इन्हें चार हजार रुपये और पुरानी साइकिलें डेढ़ से दो हजार रुपये में मिली। रायबरेली के बछरावां में कार्यरत रहे दो दर्जन मजदूर बिहार और झारखंड के लिए भोर में निकल पड़े।
लखनऊ-बलिया राजमार्ग पर निकला ये कारवां अपने गंतव्य की ओर अग्रसर है। धनपुरिया, धमरी, चौरा, मारपा, गोड्डा, खेसर, पोहरण, बाका आदि जिलों के विनय, सुनील, शकंर, अशोक, युवराज, मनोज, नीतीश, निरंजन, मोहम्मद मतीउर, कलावती आदि मजदूरों की हताशा और निराशा चेहरे पर साफ दिखाई दी।
बिहार निवासी विनय मंडल ने बताया कि रायबरेली के बछरावां में डीके बिल्डर्स के यहां ये सभी काम करते हैं। लॉकडाउन से एक माह 10 दिन पहले वे अपने घरों से आये थे। इस दौरान जितना कमाया था, वह सब लॉकडाउन में दो जून की रोटी में खर्च हो गया। बकौल विनय, सरकारी सहायता के लिये अधिकारियों को हमने अपनी व्यथा बताई। थाने पर सूचना दी। पर, नतीजा सिफर निकला। मजबूरन हम लोगों ने यह कदम उठाया। साइकिल खरीद करके घर जाने की सब लोगों ने योजना बनाई।
बिहार की महिला कलावती अपने पति भोलाराय व तीन बच्चों संग काम करती है। घर जाने के लिए उन्हें दो साइकिल लेनी पड़ी। उन्होंने बताया कि वह अपने बच्चों राहुल, रेखा, मनोज व पति संग घर जा रहीं है। जो मजदूरी मिली थी वह सब खाने में खर्च हो गई। अब जब कुछ नहीं बचा तो घर वापसी के लिए कर्ज लेकर साइकिल खरीदी है। विजय राय ने बताया, लगभग डेढ़ माह पहले ही वे बिहार से आए थे। इस दौरान जो मजदूरी मिली सब समाप्त हो गई। घर से पैसा मंगाकर साइकिल खरीदी है।
झारखंड के रहने वाले सुनील यादव उनका दर्द भी औरों से जुदा नहीं है। सुनील ने बताया कि घर जाने के लिए उन्होंने भी नई साइकिल खरीदी है। मोबाइल के जरिए घरवालों से बातचीत बराबर हो रही है। अपनी लोकेशन बराबर दें रहें हैं। मोहम्मद मतीउर कटिहार जिले के रहने वाले हैं। फरवरी में वहां से आए थे। साइकिल खरीदने के लिए उन्होंने अपने साथियों से कर्ज लिया है। घर जाकर अदा करेंगे।
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