- इस सीजन में 60 साल पहले के रकबे जितनी हुई बोआई
- 11 जिलों के करीब 50 हजार हेक्टेएयर रकबे में लहलहा रही है फसल
- सर्वाधिक 10 हजार हेक्टेयर का रकबा सिद्धार्थनगर में
- गोरखपुर और महराजगंज दूसरे और तीसरे नंबर पर
गिरीश पांडेय
लखनऊ। स्वाद में लाजवाब और खुशबू में बेमिसाल कालानमक के पुराने दिन लौट रहे हैं। 60 साल बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब खरीफ के मौजूदा फसली सीजन में पूर्वांचल के तीन मंडलों बस्ती, गोरखपुर और देवीपाटन मंडल के 11 जिलों (बस्ती, संतकबीर नगर, सिद्धार्थनगर, बहराईच, बलरामपुर, गोंडा, श्रावस्ती, गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर और महराजगंज) के करीब 50 हजार हेक्टेयर पर इसकी रोपाई हुई है। वैसे तो कालानमक सिद्धार्थनगर जिले का एक जिला एक उत्पाद है (ओडीओपी) है। इसीके अनुरूप इसका सर्वाधिक रकबा 10 हजार हेक्टेयर भी इसी जिले में है। रकबे के हसाब से गाेरखपुर और महराजगंज क्रमश: दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं। इन जिलों में क्रमशः 9000 और 8000 हेक्टेयर में कालानमक की रोपाई हुई है। बाकी जिन जिलों में कालानमक की खेती हो रही है वह एक ही कृषि जलवायु क्षेत्र में आते हैं। यही वजह है कि कालानमक को मिले जीअाई (जियोग्रैफिकल इंडीकेशन) में ये जिले भी शामिल हैं। इसके नाते काला नमक की संभावना और बढ़ जाती ह।
कभी पूर्वांचल के खेत, खलिहान और किचन तक बिखरती थी सुगंध
मालूम हो कि गौतम बुद्ध से जुड़े इस चावल का नाम ही पूर्वांचल के लोगों के लिए काफी है। 1960 के दशक में जब उल्लिखित तीन मंडलों में करीब 50 हजार हेक्टेयर पर इसकी खेती होती थी, उस समय इसकी सुगंध खेत, खलिहान से लेकर रसोई तक बिखरती थी। कुछ मिलावट और काफी हद तक धान की बौनी और अधिक उपज वाली प्रजातियों के आने के बाद इसका रकबा सिमटता गया। 1990 से 2010 के दौरान तो यह सिमटकर 2000 से 3000 हजार हेक्टेएअर तक पहुंच गया।
लुप्त हो रही इस प्रजाति को उस समय देश के जाने-माने वैज्ञानिक डॉ. आरसी चौधरी ने संजीवनी दी। उन्होंने कालानमक की अपेक्षाकृत बौनी, कम समय में अधिक उपज देने वाली प्रजातियों- केएन-3, बौना कालानमक-101 और 102 और कालानमक किरन का विकास किया। उपज बढ़ने और परिपक्वता की मियाद घटने के नाते सन 2010 के बाद इसके रकबे में तेजी से वृद्धि हुई।
ओडीओपी में शामिल होने से आई जागरूकता
मार्च 2017 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद जनवरी 2018 में प्रदेश के समग्र विकास और स्थानीय स्तर के खास उत्पादों को ब्रांड बनाने के लिए ओडीओपी योजना की शुरुआत की। कालानमक सिद्धार्थनगर का ओडीओपी उत्पाद घोषित हुआ। साथ ही इसको बढ़ावा देने के प्रयास भी शुरू हुए। अपर मुख्य सचिव सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग नवनीत सहगल इसके लिए खुद वहां गये। उन्होंने जिला प्रशासन, कृषि विभाग, किसानों, वैज्ञानिकों और उद्योगपतियों के साथ कालानमक की संभावनाओं पर बात की। इस बावत प्रदेश सरकार और इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट फिलिपीन्स (वाराणसी) के बीच एक मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग एमओयू पर भी सहमति बन चुकी है। सरकार वहां कालानमक के लिए काॅमन फैसलिटी सेंटर भी स्थािपित करने जा रही है। इसका लाभ इससे जुड़े सभी स्टेकहोल्डर्स को मिलेगा।