गिरीश पांडेय
राम मंदिर आंदोलन के शीर्षस्थ लोगों में शुमार। ताउम्र जन्मभूमि पर भव्य राममंदिर का सपना देखने वाले ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ यकीनन आज बेहद खुश होंगे। खासकर यह देखकर कि देश और दुनिया के करोड़ों हिंदुओं के आराध्य पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्मभूमि पर करीब 500 साल बाद भव्यतम राम मंदिर की बुनियाद रखी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी बुनियाद रखेंगे। इस अवसर के साक्षी उनके शिष्य गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी भी होंगे। साथ ही हिंदू धर्म से जुड़े सभी सम्प्रदायों, मसलन रामानंदी, रामानुजी,शाक्य, कबीरपंथी,आर्य समाजी,जैन,बौद्ध,सिख,गिरिवासी, वनवासी आदि के गणमान्य लोग भी मौजूद रहेंगे।
उनकी उपस्थिति बड़े महराज के उस सपने जैसी होगी जो राम के बारे में उन्होंने देखा था। उनके राम अहिल्या के उद्धारक थे, केवट को गले लगाने वाले थे,सबरी के जूठी बेर खाने वाले थे, गिद्धराज जटायू को अंतिम समय मे गोद लेने वाले थे। गिरिजनों और वनवासियों की मदद से अत्याचारी रावण का संहार करने वाले थे। उनके राम देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले थे। आज भूमिपजन के दिन ठीक वैसा ही देखने को मिला। लगा यह सिर्फ राम का ही नहीं राष्ट्र का मंदिर होगा।
मालूम हो कि इसके पहले सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राम मंदिर न बनने तक टेंट से हटाकर चांदी के सिंहासन पर एक अस्थाई ढांचे में ले जाने का काम योगीजी ने ही किया था। इसके पहले दिसंबर 1949 में तब अयोध्या में रामलला के प्रकटीकरण के समय उनके दादा गुरु ब्रह्मलीन पीठाधीश्वर दिग्विजय नाथ थे। यही नहीं 1986 में जब मन्दिर का ताला खुला तो बड़े महराज अयोध्या में मौजूद थे। इतिहास में ऐसी तीन पीढिय़ा मिलना विरल हैं, जिन्होंने एक दूसरे के सपनों को न केवल अपना बनाया। बल्कि इसके लिए शिद्दत से सँघर्ष भी किया। नतीजा सबके सामने है। वह भी इतिहास के रूप में।
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