बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। आजादी के बाद से अब तक योगी सरकार ने युवाओं को सबसे अधिक सरकारी नौकरियां अपने तीन वर्षों के कार्यकाल में दी हैं। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग सहित सभी विभागीय भर्तियों में पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाई है। इसी का नतीजा है कि युवाओं को योग्यता के आधार पर 3 लाख से अधिक नौकरियां मिली हैं। भर्तियों में अपनाई गई पारदर्शी प्रक्रिया से अभ्यर्थियों की विश्वसनीयता बढ़ी है।
सपा-बसपा शासनकाल में हुई सभी भर्तियां भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी। नौकरियों के नाम पर अभ्यर्थियों से लाखों रुपये वसूले गये। भर्तियों में भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद और जातिवाद हावी रहा। सपा शासनकाल(वर्ष 2012 से 2017 तक) में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के इतिहास में पहली बार पीसीएस-2015 की प्रारंभिक परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हुआ। वर्ष 2016 की आरओ व एआरओ प्रारंभिक परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हुआ। वर्तमान सरकार ने यह परीक्षा निरस्त कराकर पुनः परीक्षा कराने का निर्णय लेकर अभ्यर्थियों को राहत दी।
इतना ही नहीं सपा सरकार में हुई उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की विभिन्न भर्तियों में लगभग 26,000 अभ्यर्थियों का चयन किया गया, जबकि वर्तमान सरकार ने पारदर्शी तरीके से महज 3 वर्षों में 26,103 अभ्यर्थियों का चयन किया है। इस अवधि में काफी समय कोरोना से भी प्रभावित रहा। साथ ही इस अवधि में 6,566 अधिकारियों का पदोन्नति के माध्यम से चयन हुआ। वहीं पूर्ववती सरकार के कार्यकाल में महज 1,588 अधिकारियों का ही पदोन्नति से चयन हुआ था।
पूर्ववती सरकार के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के पदाधिकारियों की मनमानी और भ्रष्ट कार्यशैली से संबंधित कई गम्भीर शिकायतें हुई, जिसकी जांच सीबीआई कर रही है। इतना ही नहीं आयोग की भर्तियों को लेकर विवाद किस कदर है, इसका अंदाजा सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में दाखिल मुकदमों की संख्या से लगाया जा सकता है। जानकारों की मानें तो हाई कोर्ट में लगभग 500 और सुप्रीम कोर्ट में 50 से अधिक मुकदमे लंबित हैं। कोर्ट ने कई नियुक्तियों को अवैध करार दिया है, जिन भर्तियों को लेकर आरोप लगे उनमें अधिकांश अनिल यादव के कार्यकाल की हैं।
सपा शासन में गिरी ‘आयोग की गरिमा’
मार्च 2017 से पूर्व की सरकारों के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग और उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग सहित विभिन्न विभागीय भर्तियों में अपनाई गई प्रक्रिया की विश्वसनीयता, पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा कटघरे में रही। सपा शासनकाल में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष आपराधिक इतिहास के व्यक्ति डा0 अनिल यादव को बनाया गया। साथ ही अयोग्य विभागीय अधिकारी रिजवानुर्रहमान को सचिव नियुक्त किया गया। इन दोनों ही अधिकारियों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पद से बर्खास्त किया। तत्कालीन सपा सरकार में अध्यक्ष और सदस्यों को मनमानी करने की पूरी आजादी थी। यही वजह थी कि डॉ. अनिल यादव के कार्यकाल में मनमाने फैसले लिए गए और हजारों छात्रों को सड़क पर उतरना पड़ा।
आयोग में नियुक्त किए गए ईमानदार व योग्य पदाधिकारी
योगी सरकार ने लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों के पद पर ईमानदार, योग्य व कर्मठ पदाधिकारियों को नियुक्ति कर आयोग की खोई हुई प्रतिष्ठा, विश्वसनीयता, पारदर्शिता और इन्टीग्रिटी पुनः स्थापित की है। साथ ही आयोग में समयबद्ध विज्ञापन, परीक्षा की स्कीम तथा परीक्षा परिणाम घोषित करने की कार्य संस्कृति बनी है। परीक्षा कैलेण्डर वर्ष के पूर्व जारी करने से अभ्यर्थियों को तैयारी करने का पर्याप्त समय मिल रहा है। अभ्यर्थियों की शिकायतों के निवारण के लिए नई व्यवस्था प्रारम्भ की गई है। लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रत्येक बुधवार को अभ्यर्थियों से मिलकर उनकी शिकायतों का निवारण कर रहे हैं। आयोग की विभिन्न परिक्षाओं के कई अभ्यर्थियों ने इस नई कार्य संस्कृति के लिए उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रति आभार जताया है।
आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार अभियान के तहत रिकार्ड रोजगार
आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार अभियान के तहत 1.25 करोड़ से अधिक रोजगार उपलब्ध कराये गये हैं। 50 लाख से अधिक कामगारों को क्रियाशील औद्योगिक इकाइयों में रोजगार दिया गया। 11 से अधिक कामगारों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न औद्योगिक संस्थानों से एमओयू हस्ताक्षरित किया गया। अन्य राज्यों से वापस लौटे 2.57 लाख और आत्मनिर्भर ईसीजीएलएस योजना के तहत 4,31,571 कामगारों को रोजगार मिला। मनरेगा के अंतर्गत 24.45 करोड़ मानव दिवस सृजित कर 11 सितम्बर 2020 तक 94 लाख से अधिक मजूदरों को रोजगार देकर 4681.97 करोड़ रुपये से अधिक मानदेय का का भुगतान किया गया।