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अग्निपरीक्षा

शैलेन्द्र यादव

  • भूमि खाली कराने के लिये एमडी ने अधीनस्थ अधिकारियों के साथ बनाया रोडमैप
  • औद्योगिक भूखण्डों पर अवैध कब्जा होता रहा, यूपीएसआईडीसी प्रबंध तंत्र मूक दर्शक बना देखता रहा

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम के कीमती औद्योगिक भूखण्डों व पार्कों पर अवैध कब्जे होते रहे और निगम प्रबंध तंत्र हाथ पर हाथ धरे बैठा देखता रहा। वर्तमान में इन औद्योगिक भूखण्डों व पार्कों पर स्थाई अवैध निर्माण हैं। बीते 28 अगस्त को उच्च न्यायालय का आदेश आने पर समूचा प्रशासनिक अमला वर्षों के बाद कुंभकर्णी नींद से जागा है। अब अवैध कब्जेधारकों को नोटिस दिये जा रहे हैं। शासन-प्रशासन शान्तिपूर्वक कब्जा हटाने का रोडमैप तैयार कर रहा है।

बाबा जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था व अन्य के कब्जे से जमीन खाली कराने में शासन-प्रशासन होमवर्क में कोई कमी नहीं छोड़ रहा है। पूरी कार्रवाई शासन की कार्ययोजना के अनुसार की जानी है। शासन ने कोर्ट के आदेश के मुताबिक कार्यवाही करने का आदेश भी दिया है। मथुरा में चलने वाले बुलडोजर के मद्देनजर एहतियातन सभी कदम फूंक-फूंक कर रखे जा रहे हैं। पर, औद्योगिक क्षेत्र साइट-ए में कब्जाई गई जमीन खाली कराना बड़ी चुनौती से कम नहीं है। उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम की जमीन खाली कराकर 18 सितंबर तक उच्च न्यायालय में शपथ पत्र दाखिल करना है। यूपीएसआईडीसी की कितनी जमीन पर अवैध कब्जा है, इसका अधिकृत आंकड़ा बताने की स्थिति में अधिकारी नहीं हैं। पर, माना जा रहा है कि यहां साठ एकड़ से अधिक भूमि पर कब्जा है।

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जानकारों की मानें तो अदालत के आदेश का अनुपालन पुलिस, जिला प्रशासन और यूपीएसआईडीसी के लिए आसान नहीं होगा। याचिकाकर्ताओं समेत स्थानीय लोगों को अभी भी भरोसा नहीं हो रहा कि तय अवधि तक सभी अवैध कब्जे जमींदोज हो जायेंगे। हालांकि, आदेश आते ही भारी पुलिस फोर्स की मौजूदगी में यूपीएसआईडीसी के एमडी रनवीर प्रसाद ने औद्योगिक क्षेत्र साइट-ए और बी का मुआयना किया। जयगुरुदेव ट्रस्ट की चारदीवारी के अंदर जाकर करीब 43 हैक्टेयर भूमि की पैमाइश और मानचित्र का भौतिक सत्यापन कराया।

सूत्रों की मानें तो जमीन पैमाइश के दौरान आश्रम में न कोई चहल-पहल बढ़ी और न जमीन के लिए कोई चौकसी दिखाई दी। जब यूपीएसआईडीसी की टीम ने चारदीवारी के अंदर जाकर निरीक्षण किया तो इसका भी प्रतिरोध नहीं हुआ। वहीं जिलाधिकारी ने नोटिस जारी कर भूमि खाली करने का अल्टीमेटम देते हुए सात दिन का समय दिया है। यूपीएसआईडीसी ने पार्कों के आवंटियों को नोटिस जारी कर विकल्प दिया है कि वे भूमि के बदले मुआवजा लेंगे अथवा उनकी जगह कहीं और शिफ्ट कर दी जाय।

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जानकारों की मानें तो मथुरा में 1975 में महोली रोड पर यूपीएसआईडीसी ने औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने के लिए जमीन का अधिग्रहण शुरू किया। तब इस इलाके में जय गुरुदेव ट्रस्ट की जमीन और किसानों के खेत थे। यूपीएसआईडीसी ने यहां 60 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया। अधिग्रहण के खिलाफ जयगुरुदेव संस्था और किसान न्यायालय चले गये। 1985 तक मामला अदालतों में घूमता रहा। 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अधिग्रहण को गलत बताते हुए इसे निरस्त कर दिया। मजे की बात यह है कि दस साल चली सुनवाई के बीच भी यूपीएसआईडीसी प्लाट बेचता रहा। अब खाली बची जमीन पर जयगुरुदेव संस्था काबिज हो गई और बाकी की जमीन यूपीएसआईडीसी के पास रही। यहीं से जमीन का खेल शुरू हुआ। असल में पार्कों की जमीन अधिकारियों और भू-माफिया के गठजोड़ से बेची गई। अब इन पार्कों पर इमारतें खड़ी हैं।

जानकारों की मानें तो जिन आवंटियों की जमीन पर अवैध कब्जा हुआ, वह न्याय पाने के लिये वर्षों तक दर-दर की ठोकरे खाते रहे। पर, धाॢमक संस्था के प्रभाव के आगे आवंटियों को शासन-प्रशासन और यूपीएसआईडीसी प्रबंध तंत्र से कोई राहत नहीं मिली। पीडि़त आवंटियों का पत्र तस्दीक करता है कि उनके भूखण्डों पर वर्ष 1999 में अवैध कब्जा हुआ, जिस पर निगम ने कोई सुनवाई नहीं की। नतीजतन दिन पर दिन अवैध कब्जेधारको का मनोबल बढ़ता गया। जमीन खाली कराने के दौरान बाबा जयगुरुदेव के अनुयाइयों की ओर से किसी प्रकार के उपद्रव की आशंका कम है, लेकिन शासन-प्रशासन पिछले साल हुये जवाहर बाग काण्ड से सबक लेते हुए एहतियात बरत रहा है। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सावधानी हटने पर दुर्घटना घटना तय है।

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राजीव कुमार, मुख्य सचिव

मुख्य सचिव ने दिये निर्देश

मुख्य सचिव ने मथुरा जिलाधिकारी अरविन्द मलप्पा बंगारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक स्वप्निल ममगाई को लखनऊ बुलाकर अवैध कब्जे हटाने की कार्रवाई के दौरान एहतियात बरतने के दिशा निर्देश दिये हैं। शान्ति व्यवस्था बिगडऩे से बचाने के लिये रोड मैप तैयार कर कार्रवाई करने को कहा है।

चुनौतियां कम नहीं

जानकारों की मानें तो पार्क खाली कराने में बाबा की चहारदीवारी के बाहर भी चुनौतियां कम नहीं होंगी। बाहर पार्क में तमाम तरह के अवैध कब्जे हैं, जो खाली कराये जाने हैं। इसके लिए उन्हें औपचारिक रूप से नोटिस देने की जरूरत नहीं समझी गयी है, क्योंकि यूपीएसआईडीसी ने पहले ही अदालत में पार्क होने की अंडरटेकिंग दे रखी है।

अवैध कब्जे की भेंट चढ़े मथुरा के ये पांच पार्क

पी-1, पी-2, पी-4 और पी-5 पार्क का क्षेत्रफल 20-20 हजार वर्गमीटर है। पी-1 पार्क पर साड़ी कारखानों के जलीय कचरे को शोधित करने के लिए कामन इफ्यूलेंट ट्रीटमेंट प्लांट सीईटीपी बना हुआ है। वहीं पी-2 पार्क पर गांव के किसानों का कब्जा अभी भी बरकरार है। पी-4 पार्क में जयगुरुदेव संस्था की नंदी शाला बनी हुई है। आधे हिस्से में नवल इंफ्रास्ट्रक्चर्स का निर्माण है। हालांकि यह आवंटन पहले ही रद्द कर दिया गया, लेकिन कब्जा बरकरार है। वहीं पी-5 पार्क में विद्युत सब स्टेशन बना हुआ है और शेष में बाबा जयगुरुदेव की संस्था का कब्जा है। औद्योगिक क्षेत्र साइट-ए का सबसे बड़ा पार्क पी-3 है। करीब 30 हजार वर्ग मीटर वाले इस में अब करीब 14 सौ वर्ग मीटर भूमि पन्ना-पोखर की बची है। शेष में कॉलोनाइजर्स ने प्लाट काट दिये हैं। यूपीएसआईडीसी ने यहां भूखण्ड आवंटित किये, लेकिन यहां स्कूल है।

कब्जे में 56 हैक्टेयर!

सूत्रों की मानें तो यूपीएसआईडीसी ने हाईकोर्ट में जो शपथ पत्र दाखिल किया है, उसके अनुसार औद्योगिक क्षेत्र साइट-ए में जयगुरुदेव संस्था ने उसकी 56.536 हैक्टेयर जगह दबा रखी है। इसके विपरीत पैमाइश अभी 43 हैक्टेयर की ही हो सकी है।

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रणवीर प्रसाद, एमडी यूपीएसआईडीसी अरविन्द मलप्पा बंगारी, जिलाधिकारी मथुरा

आवंटी पहुंचे यूपीएसआईडीसी

बाबा जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था एवं अन्य द्वारा कब्जाये गये प्लाट हासिल करने के लिए कई आवंटियों ने उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम का दरवाजा खटखटाया है। भूखण्ड संख्या एफ-62 के आवंटी नारायण सिंह एवं राजेन्द्र सिंह ने प्रबंध निदेशक और क्षेत्रीय प्रबंधक को भेजे पत्र में कहा है कि जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था ने सन 1999 में उनके प्लाट पर कब्जा किया था। तब इस पर उनका एक हॉल भी बना था, जिसे जमींदोज करके संस्था की चहारदीवारी के अंदर कर लिया गया। अब हाईकोर्ट के आदेश पर खाली हो रही जमीन में उनका प्लाट प्राथमिकता के आधार पर दिलाया जाय, ताकि वह अपना उद्योग स्थापित कर सकें।

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