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इन बड़े अस्पतालों में नहीं मिलेगा आयुष्मान का लाभ!

  • बीते 25 सितंबर से प्रदेश में लागू हुई योजनाlohiya copy
  • प्रदेश के 1.18 करोड़ परिवार होंगे लाभान्वित
  • करीब 900 अस्पताल हैं सूचीबद्ध
  • एक हजार से ज्यादा को अब तक मिल चुका है योजना के तहत लाभ

बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। प्रधानमंत्री की गरीबों के लिए आई योजना को राजधानी के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में तो लागू कर दिया गया, लेकिन संजय गांधी पीजीआई और डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ने विभिन्न कारणों से योजना का लाभ मरीजों को देने से इनकार कर दिया है। प्रदेश सरकार के तमाम प्रयास भी अब तक मरीजों को सुविधा का लाभ दिलाने में नाकाफी साबित हुए हैं, जिसके कारण इन संस्थानों से रोजाना दर्जनों मरीजों को बिना इलाज लौटाया जा रहा है। वहीं सरकार का दावा है कि गरीबों के दर्द को दूर करने वाली इस महत्वाकांक्षी योजना को प्रदेशभर में लागू कर दिया गया है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 25 सितंबर से आयुष्मान योजना को लागू किया गया था। इसमें किसी भी पात्र व्यक्ति को पांच लाख रुपए तक का इलाज मुफ्त है। इसके लिए यूपी में स्टेट एजेंसी फॉर कंप्रीहेंसिव हेल्थ एंड इंटीग्रेटेड सर्विसेज (साचीज) को नोडल एजेंसी बनाया गया है, लेकिन प्रदेश में आयुष्मान भारत योजना को लागू करने के दौरान पीजीआई लोहिया जैसे बड़े संस्थानों की दिक्कतों को ध्यान में नहीं रखा गया। ऐसे में इन संस्थानों ने इस योजना के तहत इलाज करने से मना कर दिया, जिसका खामियाजा प्रदेश भर से आने वाले मरीजों को उठाना पड़ रहा है। गोमतीनगर स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट और संजय गांधी पीजीआई में लखनऊ के अलावा प्रदेशभर के अन्य जिलों से भी मरीज आते हैं। पीजीआई में तो दूसरे राज्यों के भी मरीज पहुंचते हैं। यहां पर पात्र मरीजों को भी आयुष्मान योजना का लाभ नहीं दिया जा रहा है। सरकार अब तक इन संस्थानों में योजना को लागू करने में आ रही दिक्कतों को दूर नहीं कर सकी है।

पैकेज कम, पीजीआई का ज्यादाPGI (1)
पीजीआई के निदेशक डॉ. राकेश कपूर ने बताया कि हमारे यहां पर एक्चुअल बिलिंग है। जितना खर्च होगा उसका खर्च मरीज को देना होगा। सब सॉफ्टवेयर के द्वारा है। कोई पैकेज नहीं है, लेकिन आयुष्मान में सब पैकेज हैं और उनकी दरें भी कम हैं और यहां पर खर्च अधिक आता है। यदि किसी बीमारी का खर्च अधिक आता है तो वो कहां से आएगा, साथ ही बहुत से ऑपरेशन व प्रोसीजर ऐसे हैं जो पीजीआई नहीं करता वो सब मेडिकल कॉलेज या जिला अस्पताल में ही होते हैं। इसके अलावा यहां पर वेटिंग की दिक्कत है। नंबर आने पर ही इलाज मिल पाएगा। हमने जो प्रस्ताव दिया था वह मान लिया जाए और हमारी लिस्ट के अनुसार ही सर्जरी की अनुमति मिले तो ही लागू किया जा सकेगा। हालांकि हमारे यहां पर पहले से ही बीपीएल और असाध्य को सुविधा दी जा रही है। कुछ ऐसा ही हाल लोहिया इंस्टीट्यूट का भी है।

नहीं बन पा रहे गोल्डन
योजना का लाभ लेने के लिए पात्र व्यक्ति के पास गोल्डन कार्ड होना अनिवार्य है। बहुत से लोगों के घर तक ये कार्ड पहुंच गए हैं और जिनके पास नहीं है वह अस्पताल में इलाज कराने पहुंचते हैं तो काउंटर पर कार्ड बनाया जाता है, लेकिन समस्या यह है कि बहुत से लोगों के पास बीपीएल कार्ड हैं, लेकिन उनका नाम बीपीएल लिस्ट में नहीं है। बहुत से लोगों के नाम राशन कार्ड में बदले हुए हैं, इन सभी दिक्कतों के कारण बड़ी संख्या में लोगों के गोल्डन कार्ड नहीं बन पा रहा हैं। अधिकारियों के मुताबिक योजना के तहत लाभ लेने के लिए पहुंचने वाले 5 से 10 प्रतिशत को ही इसका लाभ मिल पा रहा है। बाकी को किसी न किसी कारण लौटना पड़ता है और उनका नि:शुल्क इलाज नहीं हो पा रहा है। केजीएमयू में ऐसे ही दो मरीजों ने लिखित में शिकायत दर्ज कराई। पता चला कि सरकार की ओर से केजीएमयू में न तो आयुष्मान मित्र तैनात किए गए और न ही कार्ड बनाने के लिए काउंटर खोला जा सका। इस वजह से मरीजों को लौटाया जा रहा है। केजीएमयू के डॉ. एसएन शंखवार के अनुसार गोल्डन कार्ड के लिए अलग से काउंटर बना दिया गया है, जिसमें मरीजों को सुविधा मिलने लगेगी।

यदि सर्जरी में 15 हजार आयुष्मान का पैकेज है और हमारे यहां पर 25 हजार खर्च हो गया तो वो अतिरिक्त रुपया कौन देगा? सरकार कुछ अलग से फंड दे जिससे अतिरिक्त खर्च का भुगतान हो सके तो ये सुविधा शुरू की जा सकती है। केजीएमयू और एम्स में इलाज के लिए अलग से बजट मिलता है उनके यहां पर इलाज का खर्च कम है। पीजीआई सुपरस्पेशलिटी संस्थान हैं जहां पर छोटे ऑपरेशन और इलाज नहीं होते।
डॉ. राकेश कपूर, निदेशक, एसजीपीजीआई

इलाज की दरों को लेकर दिक्कत है। हमारा पूरी तरह से पेड हॉस्पिटल है, किसी सर्जरी या इलाज में खर्च अधिक आ गया तो उसका पेमेंट कौन करेगा? इस पर दिक्कत बनी हुई है। बात चल रही है इस समस्या का समाधान होने पर मरीजों को सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
डॉ. दीपक मालवीय, निदेशक, लोहिया इंस्टीट्यूट 

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