- शहर में कुल 110 वार्ड
- शहर में करीब 60 हजार आवारा कुत्ते
- कान्हा उपवन में 40 हजार सांड़
- 700 रु. डॉग्स के ऑपरेशन पर खर्च
- 2 एनीमल बर्थ सेंटर
- 6-7 एनीमल बर्थ सेंटर की जरूरत
- शहर के हर वार्ड में आवारा जानवरों से लोग परेशान
- आवारा जानवरों की चपेट में आने से जा रही जिंदगियां
बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। एक तरफ शहर को स्मार्ट बनाने की कवायदें चल रही हैं, वहीं दूसरी तरफ आवारा जानवर शहर की खूबसूरती पर कलंक लगा रहे हैं। आवारा जानवरों की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। आलम यह है कि हर इलाके में आवारा जानवरों की समस्या है और इनके हमले में लोग अपनी जिंदगी से हाथ धो रहे हैं। इसके बावजूद जिम्मेदार महकमे नगर निगम की ओर से इनकी धरपकड़ के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। हां कुछ इलाकों में यदि कोई हादसा होता है तो कुछ दिनों तक अभियान चलता है। फिर हालात जस के तस हो जाते है। निगम महकमा यदि दिन की बजाय रात में अभियान चलाये तो आवार जानलेवा कुत्तों की पकड़ आसानी से हो सकती है। साथ ही आवार गाय व सांडों ने भी शहर के हालात खराब कर रखे है। आयेदिन सड़कों पर चलने वाले वाहनों को ये आवारा जानवर अपना शिकार बनाते है।
हर गली में होता है इनका तांडव
शहर की हर गली में आवारा जानवरों ने अपना तांडव मचा रखा है। स्थिति यह है कि पॉश एरिया से लेकर मलिन बस्तियों तक में आवारा जानवरों की चहलकदमी बढ़ चुकी है। पिछले तीन माह की बात करें तो आवारा जानवरों के हमले में दो से तीन लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि दर्जनों लोग घायल हुए हैं। लेकिन निगम की जुंबा पर जूं तक नहीं रेंगता है।
हर दिन सैकड़ों नए आवारा जानवर
पशु जानकार बताते है कि पशु पालकों की लापरवाही से शहर की सड़कों पर प्रतिदिन 100 नए आवारा जानवर उतर रहे हैं। अब अगर महीने की बात करें तो यह आंकड़ा तीन हजार पहुंच जाती है। औसतन इनमें से 20 से 25 आवारा जानवरों की बीमारी या अन्य कारण से मौत भी हो जाए तो हर महीने दो हजार से अधिक आवारा जानवर सड़कों पर विचरण करते हैं।
अभी लगेगा समय
इंदिरानगर के जरहरा में नया एबीसी सेंटर बनाया जा रहा है। निगम अधिकारियों की माने तो इस सेंटर के बनने के बाद करीब एक हजार से 1200 कुत्तों की नसबंदी की जा सकेगी। हालांकि अभी इस सेंटर के बनने में चार से पांच माह लग सकते हैं।
हमले के बाद होती है कार्रवाई
वैसे तो निगम की ओर से नियमित आवारा जानवरों के खिलाफ अभियान नहीं चलाया जाता है। लेकिन केवल कागजी। हां, जब कोई व्यक्ति आवारा जानवर के हमले से घायल हो जाता है या किसी की जान चली जाती है, तब निगम की ओर से उस क्षेत्र में अभियान चलाकर आवारा जानवरों को पकड़ा जाता है।
यह बात सही है कि पशु पालकों की लापरवाही से शहर में तेजी से आवारा जानवरों की संख्या बढ़ी है। ऐसी स्थिति में पशु पालकों पर शिकंजा कसने के लिए कवायद शुरू की जा रही है।
अनिल मिश्रा, अपर नगर आयुक्त, नगर निगम