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‘जिमखाना’ के काले कारनामे

शैलेन्द्र यादव

  • फर्जी तरीके से एफडी कैश कराने के मामले में तीन पदाधिकारियों और बैंक मैनेजर पर मुकदमा
  • दिसम्बर 2016 में हुआ फर्जीवाड़ा, मई 2018 में दर्ज हो सका मुकदमा
  • मामले का खुलासा होने के बाद डिप्टी रजिस्ट्रार की रिपोर्ट में आरोप पाये गये सही
  • कैसरबाग पुलिस किसकी शह पर षडय़ंत्रकारियों को देती रही अभयदान, यह जांच का विषय
  • विरोधियों को सबक सिखाने के लिये रखे गये बाउंसर : सूत्र

jimkhana copyलखनऊ। कुलीन वर्ग वाले क्लब में कायदे-कानून को कैसे तोड़ा-मरोड़ा जाता है इसकी बानगी राजधानी के अवध जिमखाना क्लब में देखी जा सकती है। अपनी कार्यकारिणी के काले कारनामों से क्लब चर्चा में है। आॢथक अनियमितता और मनमानी की रेल सुनियोजित रूट पर बेधडक़ दौड़ती रहे, इसके लिये चयनित कार्यकारिणी के वरिष्ठï पदाधिकारियों ने क्लब का बॉयलाज फर्जी तरीके से संशोधित कर दिया। क्लब के स्थायी सदस्यता शुल्क को डकार लिया। अपने काले कारनामों की राह में रोड़ा बन रहे कोषाध्यक्ष को पहले ऐन-केन-प्रकारेण पद से हटाया, फिर सदस्यता समाप्त कर क्लब में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी। हालांकि, कार्यकारिणी के इन सफेदपोशों के खिलाफ जालसाजी व षडय़ंत्र रचने का मुकदमा दर्ज हो गया है। यदि निष्पक्ष जांच हुई तो जिमखाना के यह सफेदपोश जेलखाने की यात्रा पर भी जा सकते हैं।

राजधानी के प्रतिष्ठिïत अवध जिमखाना क्लब के पदाधिकारियों पर यह आरोप किसी गैर ने नहीं, बल्कि क्लब के कोषाध्यक्ष रहे नवीन अरोड़ा ने लगाये हैं। क्लब के बॉयलाज के मुताबिक, बैंक खाता संचालन एवं अन्य वित्तीय कार्यों के लिये सचिव और कोषाध्यक्ष के संयुक्त हस्ताक्षर से ही एफडीआर तोड़ी जा सकेगी या परिवॢतत की जा सकेगी। पर, क्लब और बैंक तंत्र ने सुनियोजित रूट से इस व्यवस्था का अतिक्रमण करते हुये बिना कोषाध्यक्ष के संज्ञान में लाये एफडीआर कैश करा लिये। इतना ही नहीं क्लब का बॉयलाज भी मनमाने तरीके से बदल दिया गया। इसके लिये जिस एजीएम का हवाला दिया गया उस बैठक में क्लब का बॉयलाज बदलने का कोई एजेंडा था ही नहीं।

जब इस खेल की जानकारी कोषाध्यक्ष को हुई तो उसने इस अनियमितता के खिलाफ आवाज उठाई, जो क्लब की चाण्डाल चौकड़ी को नागवार गुजरी और कोषाध्यक्ष को उसके पद से हटाकर उसकी सदस्यता तक रद्द कर दी। इस वित्तीय अनियमितता की शिकायत कैसरबाग कोतवाली में की थी। पर, पुलिस इस मामले पर लम्बे समय तक जब लीपापोती करती रही तो नीवन ने सीजेएम कोर्ट में अपील की । बीते 19 मई को सीजेएम कोर्ट ने इस मामले में मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था। इसी आदेश के तहत 6 जून को कैसरबाग कोतवाली में मुकदमा दर्ज हुआ है। पुलिस पहले इस मामले की लीपापोती में जुटी रही, अब कैसरबाग इंस्पेक्टर डीके उपाध्याय का दावा है कि मामले की जांच की जा रही है।

क्लब के अध्यक्ष-सचिव ने उड़ाई चार करोड़ की एफडी
बीते दिनों न्यायालय के आदेश पर कैसरबाग पुलिस ने क्लब के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल, सचिव आशोक अग्रवाल, क्लब के सदस्य सीपी कक्कड़ और बैंक ऑफ बड़ौदा नरही शाखा के प्रबंधक आलोक टण्डन के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471 और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज किया है। क्लब के कोषाध्यक्ष रहे नवीन का आरोप है कि अध्यक्ष, महामंत्री और बैंक मैनेजर की मिलीभगत से चार करोड़ रुपये की सात एफडी कैश कराकर रकम हड़प ली गई।

सभ्यजनों के क्लब में महिला से अभद्रता
जानकारों की मानें तो मार्च माह में डिप्टी रजिस्ट्रार, फम्र्स सोसायटीज ऐंड चिट्स ने अवध जिमखाना क्लब के कोषाध्यक्ष रहे नवीन अरोड़ा समेत छह लोगों को क्लब में प्रवेश करने का आदेश दिया था। इस आदेश के मुताबिक, बिना एजीएम के किसी भी सदस्य को निकाला जाना ठीक नहीं है। इसके अलावा क्लब की स्थलीय जांच के आदेश भी दिये थे। डिप्टी रजिस्ट्रार के आदेश के बाद जब इन लोगों ने क्लब में प्रवेश किया तो क्लब कार्यकारिणी के इशारे पर उनका एकाउंट बंद कर दिया गया। उन्हें किसी भी तरह की सर्विस नहीं दी गई। इसी बीच कोषाध्यक्ष रहे नवीन अरोड़ा की पत्नी ने जब इस संबंध में क्लब के सचिव से बात करनी चाही तो सचिव ने उनके साथ अभद्रता करते हुये कहा उन्हें सर्विस नहीं दी जायेगी। कैसरबाग कोतवाली में इसकी शिकायत भी दर्ज कराई गई।

… तो क्या भूखण्ड की लीज बिना चल रहा क्लब
जानकारों की मानें तो मशहूर अधिवक्ता टीएन श्रीवास्तव ने वर्ष 1933 में टेनिस प्लेइंग क्लब की स्थापना के लिये तत्कालीन जिलाधिकारी से मुलाकात कर क्लब के लिये भूमि की मांग की। जिलाधिकारी ने लगभग 1,30,000 वर्ग फीट भूमि आवंटित कर दी। सोसाइटी पंजीकरण 12 मई 1933 को कराया गया। 22 नवम्बर 1933 से यह क्रियाशील हुई। जमीन का निर्धारित किराया प्रतिमाह जमा कराया जाता रहा। वर्ष 1969 में जब क्लब के अध्यक्ष बीपी हलवासिया लखनऊ के मेयर बनें, तो उनके प्रयासों से 30 वर्षों की लीज पर 1962 से 1992 तक क्लब को यह भूमि प्रत्येक 10 वर्षों में लीज की मियाद का नवीनीकरण कराने की शर्त पर लखनऊ विकास प्राधिकरण ने स्वीकृति दी। जानकारों की मानें तो विभागीय अभिलेखों में क्लब प्रबंध तंत्र और संबंधित विभागीय अधिकारियों के मध्य इस भूमि की लीज डीड पर कभी हस्ताक्षर हुये ही नहीं। पर, इस ओर क्लब के किसी जिम्मेदार का ध्यान नहीं गया। बल्कि, क्लब की साज-सज्जा के नाम पर करोड़ों खर्च करने की ओर कार्यकारिणी का ध्यान केन्द्रित रहा।

पुलिस और बैंक तंत्र करते रहे हीलाहवाली
जानकारों की मानें तो बीते माह बिना कोषाध्यक्ष की जानकारी के चार करोड़ रुपये की एफडी तोड़े जाने की शिकायत क्लब के निलंबित सदस्य जसप्रीत सिंह ने बैंक ऑफ बड़ौदा और यूपी पुलिस सहित अन्य जिम्मेदारों के ट्विटर पर की थी। इसके बाद एक तरफ जहां बैंक प्रबंध तंत्र ने मामले की पड़ताल के लिए शिकायतकर्ता से बैंक के पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने को कहा। ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने के बाद बैंक ने शिकायत का ट्रैङ्क्षकग नंबर देते हुए इस प्रकरण में जल्द ही जांच पूरी करने का आश्वासन दिया था। तो, दूसरी तरफ डीजीपी ऑफिस से लखनऊ पुलिस को इस मामले की पड़ताल के आदेश दिये गये थे। पर, लखनऊ पुलिस ने इस प्रकरण में कोई रिपोर्ट दर्ज ही नहीं की। शिकायतकर्ता जब न्यायालय की शरण में पहुंचा, तो न चाहते हुये भी पुलिस को मुकदमा लिखना पड़ा।

किस दबाव में थी पुलिस!
जसप्रीत ने पुलिस की गतिविधियों पर सवाल उठाते हुये कहा इस मामले में कैसरबाग कोतवाली को तहरीर दिये गये एक महीने से ज्यादा हो चुका है। तहेेरीर के साथ में बैंक से आरटीआई के तहत मांगे गये जवाब की कॉपी भी पुलिस को दी गई थी। बावजूद इसके एफआईआर दर्ज नहीं की गई। इस बीच एसएसपी दीपक कुमार से भी मुलाकात कर पुुलिस के लापरवाह रवैये की शिकायत की गई। एसएसपी ने कैसरबाग कोतवाली प्रभारी को एफआईआर दर्ज करने के आदेश भी दिये। पर, कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब न्यायालय के आदेश पर मुकदमा दर्ज हुआ है। इससे साफ है कि पुलिस किसी को बचाने के लिए या किसी के दबाव में काम कर रही थी।

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