- समाजवादी चिन्तक दीपक का सपा महासचिव रामगोपाल यादव पर पत्र प्रक्षेपास्त्र
- लिखा, जो दीवार है नफरत की गिरा दी जाय, तभी वापसी कर सकती है सपा
लखनऊ। समाजवादी चिन्तन सभा के राष्टï्रीय अध्यक्ष दीपक मिश्रा ने अपने पत्र-प्रक्षेपास्त्र में हार के लिए सपा महासचिव रामगोपाल यादव को सर्वाधिक जिम्मेदार बताया है। दीपक ने पत्र में लिखा, नेताजी व शिवपाल की उपेक्षा एवं आपकी हठधॢमता की कीमत सभी चुका रहे हैं। दूसरा मुलायम व शिवपाल बनाने में पार्टी को कम से कम चालीस साल लगेंगे। फिर भी वातानुकूलित कारों और अकूत सम्पत्ति के कारण कुख्यात समाजवादी यह मुकाम हासिल कर पायेंगे, इसमें मुझे संदेह है। जब उनका कोई विकल्प नहीं, तो बेहतर है इन्हें ससम्मान साथ लेकर पार्टी को एक करने का प्रयास किया जाय।
दीपक मिश्रा के पत्र के मुताबिक, प्रोफेसर रामगोपाल की एकाधिकारवादी सोच व कार्यप्रणाली आत्मघाती है। उन्होंने प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की जगह पूंजीवादी लोगों को अधिक तरजीह दी है, जिससे समाजवादी विचारधारा व पार्टी के स्वभाविक प्रवाह को नुकसान पहुंचा है। समाजवादी विचारों पर चलते हुए संघर्ष करके ही सपा दोबारा सत्ता में वापस आ सकती है, बैसाखी के बल पर नहीं। दिल्ली में आजकल चर्चा है कि समाजवादी पार्टी को वैचारिक दृष्टिकोण से गत सात-आठ वर्षों में काफी आघात पहुंचा है। इसकी सांगठनिक वैचारिक ताकत क्षींण हुई है जितने विचारवान नेता रहे हैं, उनमें से कुछ को राम ले गये और जो बचे हैं उन्हें रामगोपाल ले गये। जनेश्वर मिश्र, रामशरण दास, मोहन सिंह, बृजभूषण तिवारी सदृश नक्षत्र राम को प्यारे हो गये और सेकुलर थिंकर कमाल फारूखी, प्रतिबद्ध समाजवादी डा. सुनील व हमारे जैसे दीपकों को एक के बाद एक आपने (रामगोपाल) ग्रस लिया। यही कारण है आज समाजवादी पार्टी विचार जगत में उस मुकाम पर नहीं है जहां कभी थी या जहां होना चाहिए। आप ने हम सभी के साथ घोर अन्याय तो किया ही साथ ही साथ स्वयं की स्वघोषित भूमिका के साथ भी न्याय नहीं किया।
दीपक ने अपने पत्र में आगे लिखा है, जहां तक मेरी स्मृति साथ दे रही है, आपके ही सशक्त हस्ताक्षर से भाई अखिलेश प्रदेश अध्यक्ष के दायित्व से पदच्युत हुए थे। यदि आपके मन में भाई अखिलेश के प्रति अप्रतिम प्रतिबद्धता थी तो आप पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करते। नेताजी के सामने अपना तर्क रखते। नेताजी आपकी बात कदापि न टालते किन्तु आपने पत्र जारी कर दिया और पत्र-निर्गमन के बाद विधवा-विलाप करने लगे। इससे तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियां काफी जटिल, भ्रामक व भयावह हो गईं। विपक्षियों को समाजवादी नेतृत्व पर पदलोलुपता का निरर्थक आरोप लगाने का मौका मिल गया। समूची सपा के साथ-साथ नेताजी, शिवपाल व भाई अखिलेश की लोकछवि लांछित हुई। आपका मौन पूरे दल पर भारी पड़ा। नेताजी के इस बयान के बाद कि निर्वाचित विधायक ही मुख्यमंत्री का चयन करेंगे, के पश्चात भी नेताजी के लक्ष्मण शिवपाल ने कहा वे स्वयं मुख्यमंत्री पद के लिए अखिलेश जी के नाम का प्रस्ताव करेंगे। स्टाम्प पेपर पर लिख लीजिए अखिलेश ही सीएम बनेंगे। चेहरा एक-दो दिन में नहीं बनता। कितनी नदियां मिलती है तब कोई सागर बनता है। नदियां सूखेंगी तो समन्दर भी समन्दर नहीं रह जाएगा। बेवजह भ्रम फैलता रहा और आपने भ्रम के स्याह अंधेरे के मध्य ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे परिस्थितियां सुधरे। यदि आप अपना दायित्व निभाते तो तस्वीर इतनी वीभत्स न होती।
समाजवादी पार्टी का इतिहास गवाह है कि सभी प्रमुख राष्टï्रीय महासचिव समाजवादी विचार व पार्टी को बढ़ाने के लिए उत्तर प्रदेश के बाहर के प्रांतों की अनवरत व अनगिनत यायावरी करते रहे हैं, चाहे वे बाबू कपिलदेव हों या मोहन सिंह, परिणामस्वरूप नेताजी की सफल सभाएं होती थी और सपा के प्रत्याशी कर्नाटक, महाराष्टï्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में निर्वाचित होते रहे। आपने अन्य प्रदेशों का प्रवास तो मीलों दूर, उत्तर प्रदेश के भी सभी जिलों की यात्रायें नहीं की। वह प्रवाह व परम्परा कुंद व कुंठित हो गई। क्या यह सच नहीं है कि आज पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं के ऊपर आप द्वारा पोषित दल-बदल की विधा के सिद्धपुरुष पूंजीपतियों का एक गिरोह काबिज हो चुका है। यह सत्य है कि गत सात-आठ वर्षों में जैसे-जैसे दल में आप मजबूत होते गए, वैसे-वैसे दल कमजोर होता गया। आपने (रामगोपाल) कहा, अखिलेश चाहे भी तो राष्टï्रीय अध्यक्ष पर नहीं छोड़ सकते। छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र जी का कद नेताजी से बड़ा था। यह कथन स्वयं नेताजी का है। राष्टï्रीय उपाध्यक्ष जनेश्वर जी ने भी कभी राष्टï्रीय अध्यक्ष नेताजी के नाम को मीडिया में उस तरह से नहीं लिया जिस तरह से आप भाई अखिलेश जी का लेते है।
आपका लहजा प्रतिबिम्बित करता है गोया राष्टï्रीय अध्यक्ष जी आपके कर-कंदुक हों। महासचिव का काम अध्यक्ष का गुरुत्व व गरिमा बढ़ाना है न कि उसकी सर्वोच्चता का अवमूल्यन करना जो आप बार-बार करते रहे हैं। शिवपाल जी ने आपको शकुनि की संज्ञा दी। नेताजी ने भी शिवपाल जी के कथन पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई, लेकिन मुझे आपको शकुनि की उपाधि देने पर घोर आपत्ति है, शकुनि ने कभी भी पिता-पुत्र के पवित्र रिश्ते के मध्य रार-दरार पैदा करने का कुत्सित षडयंत्र नहीं किया।
कैसे मसीहा हो, बीमार का ख्याल अच्छा है, सब बिगड़ा जाता है कहते हो हाल अच्छा है।