शैलेन्द्र यादव
- पूर्व सरकारों की राह पर आगे बढ़ रही योगी सरकार
- सरकार-दर-सरकार बढ़ रहा सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों का कर्ज
- वर्ष 2011-12 में 35,952 करोड़ रुपये कर्ज का ग्राफ 2015-16 में बढक़र हो गया 75,950 करोड़ रुपये
- योगी सरकार ने सत्ता संभालते ही सुना दिया 16,580 करोड़ रुपये का और कर्ज लेने का फरमान
- सरकार ने श्वेत पत्र-2017 में माना 10 वर्षों में ढाई गुना बढ़ी प्रदेश की ऋण ग्रस्तता
लखनऊ। प्रदेश के सार्वजनिक क्षेत्र के निगम व उपक्रम कर्ज से कराह रहे हैं। सूबे को विकास गति देने के नाम पर पूर्ववती सरकारों ने भी बढ़-चढ़ कर कर्जा लिया और वर्तमान सरकार भी उसी कर्ज पथ पर तेजी से आगे बढ़ रही है। वर्ष 2011-12 में निगमों का कर्ज 35952.78 करोड़ रुपये था, जो वर्ष 2015-16 आते-आते बढक़र 75,950.27 करोड़ रुपये हो गया। बढ़ती ऋणग्रस्तता के लिये पूर्ववती सरकारों पर आरोप लगाने वाली वर्तमान सरकार ने 10 निगमों को 16,850 करोड़ का कर्ज लेने का फरमान सुनाया है।
बीते दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश सरकार का श्वेत पत्र-2017 जारी करते हुए कहा विगत 15 वर्षों में निगमों की स्थिति अत्यधिक खराब हुई है। प्रदेश के कार्यरत पीएसयू की वर्ष 2011-12 में 6,489.58 करोड़ रुपये की हानियां वर्ष 2015-16 में बढक़र 17,789.91 करोड़ रुपये हो गई है। राज्य के पीएसयू की संचित हानियां 2011-12 में 29380.10 करोड़ रुपये से अधिक थीं, जो 2015-16 में बढक़र 91,401.19 करोड़ रुपये हो गई। वर्ष 2011-12 में पीएसयू के ऋण जहां 35952.78 करोड़ रुपये था, वह 2015-16 में बढक़र 75,950.27 करोड़ रुपये हो गया। इसमें वर्तमान सरकार के योगदान को जोड़ दिया जाये, तो यह कर्ज 92,530.27 करोड़ रुपये से कहीं अधिक हो गया है।
वर्तमान राज्य सरकार ने अवस्थापना सुविधाओं के विस्तार के लिये वित्तीय वर्ष 2017-18 में 16,850 करोड़ रुपये का कर्ज लेने का फरमान सुनाया है। लोक निर्माण, आवास एवं शहरी नियोजन, नगरीय रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन, ग्राम्य विकास, ऊर्जा तथा औद्योगिक विकास विभागों के प्रशासनिक नियंत्रणाधीन निगम, संस्थायें और प्राधिकरण 16,850 करोड़ रुपये का कर्ज लेगें। इस निर्णय के मुताबिक, उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस-वे एवं औद्योगिक विकास प्राधिकरण को 3500 करोड़, उत्तर प्रदेश ग्रामीण आवास परिषद को 3000 करोड़ और उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को 2600 करोड़ रुपये का कर्ज लेना है।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग प्राधिकरण को 2500 करोड़, उत्तर प्रदेश ट्रांसमिशन कार्पाेरेशन को 1020 करोड़, उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम, उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद और सूडा को 1000-1000 करोड़, उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन को 800 करोड़ एवं उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम को 160 करोड़ रुपये का कर्ज लेना है। सूबे की तत्कालीन और वर्तमान राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के त्वरित विकास के नाम पर लिये गये कर्ज से निगमों की ऋणग्रस्तता बढ़ी है।
इतिहास गवाह है कि निगम और निगम कर्मचारियों के लिये भाजपा सरकार की कार्यप्रणाली घातक रही है। निगमों की बदहाली की शुरुआत तत्कालीन कल्याण सरकार से शुरू हुई, जो अब तक अनवरत जारी है। निगमों का कर्ज दिन पर दिन बढ़ा। पर, आज भी कई निगमों में चौथा व पांचवां वेतनमान लागू है। इस ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
एस.ए.एच. जैदी, संरक्षक, उत्तर प्रदेश निगम महासंघ
लगातार बढ़ रहा है सूबे का कर्ज
31 मार्च 2007 को सरकार की ऋणग्रस्तता 1,34,915 करोड़ रुपये थी, जो 31 मार्च 2017 को बढक़र 3,74,775 करोड़ रुपये हो गई। इस प्रकार 10 वर्षों की अवधि में प्रदेश की ऋणग्रस्तता ढाई गुना बढ़ गई। वित्तीय वर्ष 2009-10 में पूंजीगत परिव्यय 25,091 करोड़ रुपये था जो वर्ष 2010-11 से 2012-13 में घटकर क्रमश: 20,272 करोड़ रुपये, 21,574 करोड़ रुपये तथा 23,834 करोड़ रुपये हो गया।
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क्या बोले मुख्यमंत्री
सार्वजनिक उपक्रमों के संचालन में वित्तीय अनुशासनहीनता और भरपूर घोटाले किये गये। पूर्ववर्ती सरकारों की त्रुटिपूर्ण नीतियों, वित्तीय नियमों की अनदेखी और अनुपयोगी व्यय के कारण प्रदेश की वित्तीय स्थिति में असन्तुलन उत्पन्न हुआ। मुख्यमंत्री ने कहा एक तरफ राज्य सरकार ने स्वयं के कर राजस्व में वृद्धि के प्रयास नहीं किये। वहीं दूसरी ओर राजस्व व्यय में अत्यधिक वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप सरकार के पूंजीगत परिव्यय में गिरावट आयी।
सबने रोया खाली राजकोष का रोना
विडंबना है कि सूबे की सत्ता संभालने वाले प्रत्येक दल के मुख्यमंत्री सार्वजनिक मंच पर यह कहते हुये सुने गये कि जब हमने सत्ता संभाली, तो राजकोष खाली था। तत्कालीन समाजवादी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने कार्यकाल के दौरान सैकड़ों बार कहते सुने गये कि पूर्ववती पत्थर वाली सरकार ने प्रदेश का राजकोष खाली कर दिया था। अब यह दावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं। बीते दिनों उन्होंने कहा जब भाजपा सरकार ने कार्यभार सम्भाला तो उस समय राजकोष खाली हो चुका था। राज्य सरकार की ऋणग्रस्तता अत्यधिक बढ़ चुकी थी।
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