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निविदा शर्तों में खेल, शासन की मंशा फेल

  • पांच बार प्रकाशित निविदा अब निरस्त करने की तैयारी में कृषि विभाग प्रबंध तंत्र
  • सरकारी निविदाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद समाप्त करने के लिये लागू ई-निविदा विभाग में तोड़ गई दम
  • वर्ष 2015 के बाद से नर्ही खुली मुद्रण कार्य की निविदा
  • निविदा खुलवाने वाले कृषि निदेशक का दावा साबित हुआ हवा-हवाई
  • गोस्पेल-विश्वा-प्रकाश, कृषि विभाग प्रबंध तंत्र को आये रास

krishi nideshalai copyबिजनेस लिंक ब्यूरो

लखनऊ। सरकारी निविदाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार, एकाधिकार और भाई-भतीजावाद को समाप्त करने के लिये लागू ई-निविदा व्यवस्था कृषि विभाग में दम तोड़ गई है। वित्तीय वर्ष 2015-16 में एक वर्ष के लिये जिन फर्मों को मुद्रण कार्य मिला था, विभागीय प्रबंध तंत्र उन्हीं फर्मों पर अब तक मेहरबानी लुटा रहा है। विभागीय अधिकारियों ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिये निविदा प्रकाशित नहीं कराई। वित्तीय वर्ष 2015-16 में जिन फर्मों को काम मिला था, आलम्बरदारों ने उन्हीं की झोली में करोड़ों के कार्य डाल दिये। वित्तीय वर्ष 2017-18 में विभागीय प्रबंध तंत्र ने निविदा प्रकाशित कराई, लेकिन वित्तीय वर्ष 2018-19 के चौथे माह तक इस निविदा को फाइनल नहीं कर सका है। इस दौरान सात बार संशोधित शर्तों के साथ निविदा प्रकाशित कराकर निरस्त कराई जाती रही और मोटे कमीशन की चाहत में चहेतों पर मेहरबानी लुटाई जा रही है।

वित्तीय नियमों के अनुसार जो उचित होगा, उसी के अनुरूप चार रंगों में मुद्रण कार्यों के लिये आमंत्रित तकनीकि निविदा पर कार्रवाई की जायेगी।
सोराज सिंह, कृषि निदेशक, उप्र

विभागीय जानकारों की मानें तो रंगीन मुद्रण कार्य के लिये वित्तीय वर्ष 2015-16 में जो शर्तें निधारित थी, उन शर्तों के मुताबिक स्वीकृत निविदा 31 मार्च 2016 तक ही मान्य थी। इतना ही नहीं विशेष परिस्थितियों में आगामी वित्तीय वर्ष में निविदा की स्वीकृत की तिथि तक यह मान्य थी। पर, विभागीय आलम्बरदारों ने वित्तीय वर्ष 2016-17 में रंगीन मुद्रण कार्य के लिये निविदा प्रकाशित ही नहीं कराई। विशेष परिस्थितियों का हवाला देते हुये इस वर्ष मुद्रण कार्य चहेती फर्मों की झोली में डाल दिया। वित्तीय वर्ष 2017-18 में इस कार्य के लिये विभागीय प्रबंध तंत्र ने निविदा जरूर प्रकाशित कराई, लेकिन निविदा खुलने के ठीक पहले इसे निरस्त कर नई निविदा संशोधित शर्तों के साथ प्रकाशित कराई जाती रही। इतना ही नहीं इस दौरान प्रकाशित निविदाओं में चहेती फर्मों का एकाधिकार बनाये रखने के लिये नई-नई शर्तें जोड़ी और हटाई जाती रही। नई-नई निविदा शर्तों की इसी फेहरिस्त में विभागीय तंत्र ने एक शर्त जोड़ी कि संबंधित फर्म का प्रेस लखनऊ में स्थापित होना अनिवार्य है। साथ ही प्रेस में 28इंचx40इंच साईज की एक फोर कलर प्रिंटिंग मशीन अथवा 23इंचx36इंच साईज की फोर कलर की दो प्रिंटिंग मशीन अथवा 18इंचx23इंच की चार फोर कलर प्रिंटिंग मशीन एवं बाइंडिंग तथा फोल्डिंग का सेटअप होना अनिवार्य है।

बीते दिनों प्रकाशित निविदा के संबंध में जब उत्तर प्रदेश के कृषि निदेशक सोराज सिंह से जानकारी की गई, तो उनका दावा था कि ‘विभिन्न तकनीकि कारणों से पूर्व में निविदा निरस्त की गई। पर, कृषि साहित्य आदि की चार रंगों में मुद्रण कार्यों की तकनीकि निविदा इस बार नियत तिथि पर अवश्य खोली जायेगी।’ यह बात अलग है कि कृषि निदेशक का यह दावा भी हवा-हवाई साबित हुआ और बीतते समय के साथ ही उनका बयान भी बदल गया। सूत्रों की मानें तो अब विभागीय प्रबंध तंत्र इस निविदा को ही निरस्त कराने के लिये सक्रिय हो गया है। जल्द ही यह निविदा निरस्त कराकर चहेती फर्मों को फिर से मालामाल और निविदा में प्रतिभाग करने वाली अन्य फर्मों को बेहाल किया जाना तय है।

निविदा निरस्त की जायेगी या नहीं। इस संबंध में कोई जानकारी फाइल देखकर ही दी जा सकती है। मैं अभी बाहर हूं।

रामशब्द जसवारा, अपर निदेशक, प्रचार-प्रसार

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