- बेटे-चचेरे भाई ने नेताजी का सारा दांव उन्हीं पर उलट दिया, शिवपाल ने नहीं छोड़ा साथ
- शिवपाल ने की समाजवादी सेक्युलर मोर्चा गठन की घोषणा, अध्यक्ष होंगे मुलायम
- नई पार्टी गठन का ऐलान अभी इतिश्री नहीं, संभव है मुलायम का कोई दांव अभी शेष हो
महेन्द्र सिंह
लखनऊ। सुनने में आता है कि वरिष्ठ समाजवादी नेता शिवपाल सिंह यादव ने शुरुआत में ही मंशा व्यक्त की थी कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अखिलेश की बजाय खुद मुलायम सिंह यादव संभालें। फिलहाल ऐसा नहीं हो पाया। बड़े भाई के आदेश पर शिवपाल को चुप्पी साध लेनी पड़ी। शायद शिवपाल को अंदेशा था कि बहुमत की सरकार होने के बावजूद अंदरखाने क्या दिक्कतें होने वाली थीं। आखिरकार जो हुआ वह भारतीय राजनीति के लिए यादगार हो गया। मानो मुलायम के लिए उन्हीं का इतिहास खुद को दोहराने लगा है। अपनी ही समाजवादी पार्टी में मुलायम बेगाने हो गए। बेटे और चचेरे भाई ने नेताजी का सारा दांव उन्हीं पर उलट दिया है। छोटे भाई शिवपाल भी संघर्ष के लाठी डंडे खाने के बाद सपा के लिए अस्पृश्य घोषित कर दिए गए हैं।
सारा घटनाक्रम यादव परिवार की उन्नति और पतन का अभिलेख रच रहा है। जिन्हें ऊंगली पकड़ाकर मुलायम राजनीति की मुख्यधारा में लाये। वही अब बुजुर्ग नेता को सठियाया साबित करने में जुटे हैं। इसमें सबसे अहम और प्रेरक भूमिका शिवपाल यादव की रही। शिवपाल ने आदर्श भाई की तरह मुलायम का कन्धा थामे रखा, गहन संवेदना के नाते अखिलेश के विरुद्ध भी वैसा बर्ताव नहीं कर पाये जैसा कि प्रचलित राजनीति में होता आया है। शिवपाल इस तरह की राजनितिक छमता का लोहा पूर्व में मनवा भी चुके हैं। 2003 में जब खुद मुलायम भी आस छोड़ चुके थे उस समय शिवपाल ने ही बसपा को तोड़ सपा सरकार का गठन और नेता जी को मुख्यमंत्री बनवाया था। खैर, अब सपा टूटकर ससेमो यानि समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बन चुकी है। शिवपाल ने घोषणा भी की है कि मोर्चा के अध्यक्ष मुलायम होंगे।
सपा के बिखराव की सार्वजानिक तस्दीक उस समय हुई जब तत्कालीन काबीना मंत्री शिवपाल ने कहा कि अफसर उन्हें यूं ही नजरअंदाज करते रहे तो वे इस्तीफा दे देंगे। इस पर मुलायम ने अखिलेश को आगाह भी किया कि शिवपाल ने कहीं पार्टी छोड़ी तो आधे विधायक उनके साथ बाकी मेरे पीछे चले आएंगे। बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश इस चेतावनी से तिलमिला गए लेकिन गुस्से को पी गए। इसके बावजूद अंदर ही अंदर अखिलेश अपना बंकर बुनते रहे और अफसरों को चाचा की अवहेलना के लिए उकसाते रहे। मतभेद धीरे-धीरे मनभेद में बदलने लगा। इस बीच अखिलेश पिता की चेतावनी को लेकर खुद को मजबूत भी करते रहे। अंतत: खेमे को मजबूत कर अखिलेश ने फ्री-स्टाइल खेलना शुरू कर दिया। आपसी लड़ाई की अहम् तारीख 13 सितंबर 2016 बनी। मुलायम ने अखिलेश को सपा के प्रदेश अध्यछ पद से हटाकर भाई शिवपाल को पदासीन कर दिया। जवाबी हमला करते हुए इसी दिन अखिलेश ने चाचा शिवपाल के तीन अहम् विभाग छीन लिए और जांचों का सिलसिला सा चला दिया।
इसी 13 सितंबर को नौकरशाह और मुख्यसचिव रहे दीपक सिंघल भी सुॢखयों में आये। सिंघल को शिवपाल और अखिलेश का खास माना जाता था। दिल्ली में एक पार्टी में शिवपाल, अमर सिंह और मुलायम भी शामिल हुए। वहां जो चर्चायें और टिप्पणियां हुईं वह अखिलेश को नागवार गुजरीं। नतीजे में बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश ने दीपक सिंघल को मुख्य सचिव पद से रवानगी का परवाना थमा दिया। दरार बढ़ती रही और सुलह की नाकाम कोशिशें होती रहीं। 15 सितंबर 2016 को मुलायम अपने बेटे अखिलेश और भाई शिवपाल से अलग-अलग मिले। खबर आई कि यादव परिवार में शांति जगह पा गई। अखिलेश ने पिता के दबाव में चाचा को छीना गया पोर्टफोलियो वापस कर दिया। हकीकत यह रही कि मुलायम परिवार में शांति 24 घंटे भी नहीं ठौर पा सकी।
शिवपाल ने तीन एमएलसी जो अखिलेश के खास कहे जाते थे। सुनील साजन, संजय लाठर और आनंद भदौरिया को पार्टी से 6 साल के लिए निष्काषित कर दिया गया। आरोप यह रहा कि तीनों ही कमांडरों ने पारिवारिक कलह के बीच नेता जी को अपशब्द और समर्थकों से उनके पोस्टर कुचलवाये थे। अमन मणि त्रिपाठी को पार्टी से टिकट और कौमी एकता दल के विलय की घोषणा कर दी गई। इससे अखिलेश फिर असहज हुए। तैश में अखिलेश ने ये तक कह डाला कि वह अकेले चुनाव लडऩे और जीतने में सक्षम हैं। इस पर मुलायम ने नया संशय का शिगूफा छोड़ दिया। कहा, अगला मुख्यमंत्री कौन होगा यह विधायक तय करेंगे। इसके जवाब में अखिलेश ने नेताजी के नजदीकी कहे जाने वाले तत्कालीन मंत्री गायत्री प्रजापति और राजकिशोर को कैबिनेट से बाहर कर दिया। इस पर मुलायम ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम गोपाल को 6 साल के लिए निकाल दिया।
आजम की मध्यस्थता में रामगोपाल की वापसी तो हो गई लेकिन पलटते ही उन्होंने ऐसा व्यूह रचा कि पार्टी ही दो फाड़ हो गई। इसी बीच अखिलेश ने विधान सभा चुनावों के लिए 403 प्रत्यशियों की सूचि जारी कर दी। जवाब में मुलायम ने 325 प्रत्याशियों की असली सूचि जारी की। साथ ही अखिलेश और रामगोपाल को कारण बताओ नोटिस जारी कर 6 साल के लिए पार्टी से बेदखल कर दिया। पलटवार करते हुए रामगोपाल ने पार्टी की आपातकालीन बैठक बुलाई और मुलायम को अध्यक्ष पद व शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से रुखसत कर दिया। इसी की परिणति है कि अब शिवपाल ने लंबे इंतजार के बाद समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने की घोषणा कर दी है। बताया जा रहा है कि मुलायम इसके अध्यक्ष होंगे। पूरे राजनीतिक मायाजाल की थाह लें तो नई पार्टी का गठन भी अभी घटनाओं की इतिश्री नहीं है। संभव है मुलायम का कोई दांव अभी शेष हो।