- जुलाई तक लगाने थे 95 हजार पानी मीटर, दावा सिर्फ 20 हजार लगाने का
- घरों में मीटर लगाने के लिए जल निगम ने की थी कवायद
- जनता का सहयोग न मिलने से मीटर लगाने की रफ्तार सुस्त
- मीटर लगता तो रूकती पानी की बर्बादी
लखनऊ। राजधानी में पानी की बर्बादी रोकने के लिए और राजस्व बढ़ाने के लिए घर- घर मीटर लगाने की योजना तैयार की गयी थी। भीषड़ गर्मी के समय जब लोग पानी की बर्बादी कर रहे थे, तब काफी चिंतन के बाद मीटर लगाने की योजना की तरफ जल निगम बढ़ा। लेकिन लक्ष्य को पाना इतना आसान तो था नहीं, लेकिन सुस्त कार्यशैली व लचर रवय्यै के चलते इस योजना पर भी अधिकारियों की नजर लग गयी और योजना ठाक के तीन पात कर दी गयी। घरों में पानी मीटर लगाने की योजना का खाका खींचा गया और इसे शुरू करते हुए घरों में मीटर लगानेे का कार्य तो शुरू हुआ लेकिन अंत नहीं किया गया, हां गुजरते वक्त के साथ मीटर लगाने की कवायद जरूर सुस्त पड़ गई। बेशक इसकी वजह रही जनता का सहयोग न मिलना, लेकिन अधिकारियों का क्या दायित्व बनता है?
विभाागीय सूत्र बताते है कि जल निगम मीटर लगाना चाहता है, लेकिन जनता की ओर से कोई रिस्पांस नहीं मिल रहा है। जलनिगम की ओर से शासन को इन सारी परिस्थितियों से अवगत करा दिया गया है। यदि वाकई में जनता का सहयोग नहीं मिल रहा था, तो जनता को संतुष्ठï करने का दायित्व तो किसी को संभालना चाहिए था।
मिली जानकारी के अनुसार, महकमे की ओर से शहर में करीब 95 हजार घरों में पानी के मीटर लगाए जाने थे। इस साल की शुरुआत में इंदिरानगर व गोमतीनगर में पानी मीटर लगाने की शुरुआत भी की गई। कवायद शुरू होते ही सिर्फ दस फीसदी जनता ने ही अच्छा रिस्पांस दिया। जैसे- जैसे दिन गुजरे, पानी मीटर लगाने को लेकर जनता का विरोध बढ़ता गया, और अधिकारी चुप्पी साधे बैठे रहे। जिसके बाद धीरे-धीरे स्थिति खराब होती गई और अंतत: पानी के मीटर लगाने का काम लगभग बंद हो गया। जल निगम के आंकड़ों की मानें तो 95 हजार लक्ष्य के सापेक्ष अभी तक सिर्फ बीस हजार घरों में ही पानी के मीटर लगने का दावा हैं। जनता का सहयोग न मिलने के कारण पानी मीटर के लक्ष्य को अभी तक हासिल नहीं किया जा सका है। जबकि जलनिगम की ओर से लक्ष्य हासिल करने का समय जून- जुलाई माह रखा गया था। अब यह वर्ष समाप्त होने को है, लेकिन पानी मीटर लगाने की दिशा में रफ्तार मंद सी पड़ चुकी है। जल निगम के अधिकारियों ने आराम से चुप्पी साध ली और इसके लिए कोई ठोस योजना तैयार ही नहीं की।
इसलिए कर रहे विरोध
जल निगम के अधिकारियों की मानें तो जब टीम पानी के मीटर लगाने किसी के घर जाती है तो सबसे पहले भवन स्वामी यही पूछता है कि इसके पैसे लगेंगे क्या? जब उन्हें नि:शुल्क सुविधा के बारे में बताया जाता है तब वह साफ कह देते हैं कि उनके घर में सबमर्सिबल लगा हुआ है, मीटर की जरूरत नहीं है। चूंकि जल निगम के पास ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी के घर में जबरदस्ती पानी का मीटर लगाया जाए तो ऐसी स्थिति में टीम को बैरंग लौटना पड़ता है।
कई साल पुरानी है योजना
2007-08 में जवाहर लाल अर्बन रीन्यूवल मिशन आई थी और तब भी पानी कनेक्शन लगाए जाने थे, लेकिन जलकल महकमे ने 2013 में मैकेनिकल मीटर लगाने का विरोध कर दिया था और तत्कालीन जलकल महाप्रबंधक राजीव वाजपेयी का तर्क था कि मैकेनिकल मीटर उपयोगी नहीं है और इलेक्ट्रानिक्स मीटर लगने चाहिए। इसके बाद मीटर लगाने की योजना वापस हो गई थी। मार्च में राज्य सरकार ने मीटर लगाने की योजना को हरी झडी दी थी और टेंडर से एक मीटर व उसे लगाने की कीमत 25 सौ रुपये तय की गई थी।
रूक सकती थी बर्बादी
भूगर्भ जल विभाग के आंकड़ों से पहले ही साफ हो चुका है कि भूगर्भ जल का स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले सालों में जनता को पानी के लिए तरसना पड़ेगा। इन सब बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए ही जल निगम की ओर से पानी के मीटर लगाने संबंधी योजना तैयार की गई थी। निश्चित रूप से पानी के मीटर लगने के बाद न सिर्फ पानी की बर्बादी रुकती, बल्कि हर घर से बिल भी पानी की खपत के हिसाब से लिया जाता, लेकिन अधिकारियों के लचर रवय्यै के चलते सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। पानी के मीटर न लग पाने से पानी की बर्बादी भी नहीं रोकी जा सकती है।
इतने का था प्रोजेक्ट
वाटर मीटर कनेक्शन के लिए जेएनएनयूआरएम योजना के तहत 23 करोड़ का प्रस्ताव तैयार किया गया था। पहले चरण में 90 हजार मीटर लगाए जाने थे। इसके बाद काम की प्रगति देखते हुए आगे का काम किया जाना था। काम की पूरी देखरेख जल निगम के अधिकारियों को सौंपी गई थी। इसमें नगर निगम और जल कल का भी सहयोग लिया जाना था।
मीटर लगाने की योजना बनारस और लखनऊ में ट्रायल बेस पर शुरू किया था। लखनऊ की जानकारी थोड़ा कम है, आप जीएम से पूछिए मुझे इस कार्य की गति का अंदाजा कम है।
ए.के श्रीवास्तव, एमडी, उ.प्र जल निगम