- शहर ही नहीं सूबे के कई महानगरों में पार्क का निकल चुका है दम
- केवल लखनऊ की बात करे तो अब भी सैकड़ों पार्कों को नसीब नहीं हुआ सौन्दर्यीकरण
- नगर निगम और एलडीए अधिकारियों के लापरवाह रवैये के चलते बेजान हैं पार्क
- शहर के छोटे पार्क तो बेहाल है, बड़े और चॢचत पार्कों का और भी बुरा हाल
धीरेन्द्र अस्थाना
लखनऊ। पार्कों को संवारने के लिए निगम की ओर से हर साल भारी भरकम बजट स्वीकृत किया जाता है, इसके बावजूद करीब 40 से 45 फीसदी पार्कों को अभी संजीवनी की जरूरत है। मतलब यह है कि इन पार्कों की स्थिति बेहद खराब है। जिससे जनता इनका उपयोग नहीं कर पा रही है। वहीं अगर एलडीए के पार्कों की बात की जाए तो यहां भी स्थिति बेहतर नहीं है। करीब पच्चीस से तीस फीसदी पार्कों की हालत दयनीय है। हैरानी की बात तो यह है कि निगम के जिम्मेदारों की ओर से इन पार्कों पर कोई ध्यान भी नहीं दिया जा रहा है। नगर निगम क्षेत्रों के पार्क का आलम तो इतना खराब है कि वहां लोगों की पार्किंग बन गयी है। कई पार्कों में तो तबेले या कब्जे तक नगर निगम को हटवाने पड़ रहे है।
निगम के पार्क हों या एलडीए के। गुजरते समय के साथ मेंटीनेंस के अभाव में दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। पॉश इलाकों से लेकर बस्तियों तक में पार्कों की स्थिति खराब है। जिससे इन इलाके के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लोगों ने इसके बारे में कई बार संबंधित महकमों में शिकायत दर्ज कराई लेकिन उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। पार्कों की स्थिति बदहाल होने से लोगों को सड़क पर टहलने के लिए मजबूर होना पड़ता है। बच्चे भी सड़क पर ही खेलते हैं। परिणामस्वरूप हादसे होने का डर बना रहता है। इसके बावजूद इस समस्या को नजरअंदाज किया जा रहा है।
कटीली झाडिय़ां तो कहीं बना तबेला
निगम और एलडीए के पार्कों की स्थिति पर गौर फरमाए तो अधिकांश पार्कों में कटीली झाडिय़ां उगी हैं। इसके साथ ही कई पार्कों में अवैध कब्जा हो गया है। जिससे जनता इनका यूज नहीं कर सकती। हैरानी की बात तो यह है कि जब इलाके के लोग पार्क में कब्जा करने वालों के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो कब्जेदार की ओर से अभद्र व्यवहार किया जाता है। एक दो पार्कों की स्थिति तो यह है कि उनमें तबेला बन चुका है, जिससे इलाके में गंदगी फैल रही है। बचे- खुचे पार्कों में स्थानीय लोगों ने पार्किंग बना दी है।
पेयजल-सीटिंग की व्यवस्था तो दूर
करीब 20 फीसदी पार्कों में न तो पेयजल के ठीक इंतजाम हैं न ही बैठने के लिए सीटों की व्यवस्था है, और तो और पार्कों की दीवार तक गिर चुकी है। कई पार्क ऐसे भी हैं, जहां लाइट का इंतजाम भी आज तक नहीं करवाया गया है। जिससे अंधेरा होने के बाद यहां कोई नहीं आता। बल्कि शराबी बैठकर शराब का सेवन करते है। इस तरफ भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
गोमतीनगर में स्थिति खराब
एलडीए ने हालही में नगर निगम को एक दर्जन से अधिक कॉलोनी ट्रांसफर की हैं। जिनके अधिकतर पार्क बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। पार्कों की बदहाल स्थिति को देखते हुए नगर निगम ने एलडीए से धनराशि की मांग की है। इस धनराशि के मिलने के बाद ही ट्रांसफर हुई इन कॉलोनियों के पार्कों की स्थिति संवर सकेगी। लेकिन गोमतीनगर के अधिकांश इलाके ऐसे भी है जहां कालोनी ट्रांसफर हुए दशक बीतने को है, लेकिन पार्कों की हालत दयनीय बनी हुई है।
नगर निगम की तस्वीर
कुल पार्क- 1657
500 कर्मचारी कार्यरत
3 से 4 हर पार्क में औसतन कर्मचारी
45 फीसद पार्कों की स्थिति अच्छी नहीं
निगम का बजट
दिसंबर २०17 तक खर्च हुआ 1240.37 लाख
2018-19 के लिए 2500 लाख का व्यय प्रस्ताव
पार्कों के मेंटीनेंस व निर्माण में खर्च होंगे 700 लाख
पार्कों की प्रकाश व्यवस्था में व्यय होंगे 40 लाख रुपये
एलडीए की तस्वीर
कुल पार्क- 290
तैनात कर्मचारी करीब 150
औसतन हर पार्क में एक कर्मचारी तैनात
दयनीय हालत में 30 फीसद पार्क
एलडीए का बजट
सौंदर्यीकरण में 100 पार्कों के लिए 1.80 करोड़ रुपये खर्च होंगे
संत गाडगे पार्क के विकास में खर्च होंगे 1.62 करोड़ रुपये
22 लाख रुपये से होगा लक्ष्मण पार्क का सौंदर्यीकरण
पार्कों के लिए पैसे का अभाव नहीं है। ६० शहरों को अमृत योजना के तहत संवारा जा रहा है। हमारी सरकार बनने के बाद पार्क की स्थितियां पहले से बेहतर हुई है और पार्कों को अतिक्रमण मुक्त कर संरक्षित किया जा रहा है।
गिरीश चंद्र यादव, राज्यमंत्री, नगर विकास
जिन पार्कों में अवैध कब्जे हैं या उनकी स्थिति खराब है, उन्हें तत्काल सुधारा जाएगा। उद्यान अधिकारी से बदहाल पार्कों की लिस्ट मांगी जाएगी। जिससे उनका सौंदर्यीकरण कराया जा सके।
संयुक्ता भाटिया, मेयर