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औचक निरीक्षण के बाद ताले में उपस्थिति रजिस्टर

  • निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य डॉ. मधु सक्सेना के औचक निरीक्षण में अपर निदेशक मिली गैरहाजिर
  • इस दौरान चार संयुक्त निदेशक भी पाये गये अनुपस्थित
  • निदेशक ने पहले किया गैरहाजिर, फिर चेतावनी देकर हस्ताक्षर करने की दी इजाजत
  • मातहतों ने पहले से नहीं दी औचक निरीक्षण की सूचना तो आग-बबूला हुई अपर निदेशक

123शैलेन्द्र यादव

लखनऊ। सरकारी व्यवस्था में जुगाड़ तंत्र की जड़ें कितनी गहरी हैं इसकी बानगी स्वास्थ्य विभाग के राज्य स्वास्थ्य संस्थान में बखूबी देखी जा सकती हैं। तमाम अनियमितताओं के लिये पहचाने जाने वाले इस संस्थान में 25 सितम्बर को निदेशक, चिकित्सा स्वास्थ्य ने औचक निरीक्षण किया। इस दौरान संस्थान की अपर निदेशक डॉ. सुषमा सिंह के अलावा चार-चार संयुक्त निदेशक गैरहाजिर मिले। पहले इन सभी को उपस्थिति रजिस्टर में गैरहाजिर किया गया। लेकिन फिर रजिस्टर में उपस्थिति हस्ताक्षर करने की इजाजत दे दी गई।

राज्य स्वास्थ्य संस्थान में व्याप्त तमाम अनियमितताओं की शिकायत जब निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य डॉ. मधु सक्सेना को हुई, तो 25 सितम्बर को वह संस्थान का औचक निरीक्षण करने पहुंची। इस दौरान संस्थान की अपर निदेशक डॉ. सुषमा सिंह, संयुक्त निदेशक डॉ. अजय साहनी, डॉ. लालमणि, डॉ. निरुपमा सिंह और संस्थान की अपर निदेशक के पति डॉ. एपी सिंह गैरहाजिर मिले। निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य डॉ. सक्सेना ने पहले उपस्थिति रजिस्टर में इन सभी को अनुपस्थित किया। जब दोपहर 12 बजे के लगभग यह सभी कार्यालय पहुंचे, तो चेतावनी देते हुये इन सभी को उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर करने की अनुमति दे दी गई। इस उपस्थिति रजिस्टर में 25 सितम्बर को अनुपस्थिति किये गये सभी संयुक्त निदेशकों और रजिस्टर के सबसे निचले पायदान पर अपर निदेशक डॉ. सुषमा सिंह के हस्ताक्षर मौजूद हैं। संस्थान के सूत्रों की मानें तो अपर निदेशक मातहतों पर आग बबूला भी हुई कि औचक निरीक्षण की पहले से जानकारी होने के बावजूद उन्हें समय रहते क्यों नहीं बताया गया।

सूत्रों की मानें तो इस औचक निरीक्षण के बाद अब राज्य स्वास्थ्य संस्थान में एक नई व्यवस्था ने जन्म लिया है। इस व्यवस्था के तहत भविष्य में होने वाले किसी औचक निरीक्षण के दौरान उपस्थिति रजिस्टर में अपनी और अपनों की गैरहाजिरी लगने से बचाने के लिये संस्थान की अपर निदेशक डॉ. सुषमा सिंह एहतियातन अनुपस्थिति रजिस्टर अब ताले में बंद करके जाती हैं। ताकि यदि अब कभी औचक निरीक्षण हो, तो कम से कम रजिस्टर में चहेतों की अनुपस्थिति न लग सके। इस नई व्यवस्था के तहत अपर निदेशक जब कार्यालय पहुंचती है, तो उसके बाद ही यह उपस्थिति रजिस्टर ताले से बाहर निकालता है और तब सभी संयुक्त निदेशक इस रजिस्टर में उपस्थिति वाले हस्ताक्षर बनाते हैं।

गौरतलब है कि प्रदेश के होटल, शराब फैक्ट्री, गेस्ट हाउस, प्रतिष्ठान, चिकित्सा विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय, कालेज, स्कूल, आइसक्रीम फैक्ट्री आदि में जल परीक्षण के नाम पर उत्तर प्रदेश राज्य स्वास्थ्य संस्थान में उगाही का सिलसिला खुलेआम चल रहा है। ऐसा नहीं है कि इस काले कारनामें के खिलाफ किसी ने आवाज नहीं उठाई, शासन-प्रशासन के सर्वोच्च स्तर पर इसकी शिकायतें हुई, पर हुआ कुछ नहीं। पेयजल में आर्सेनिक या विषैले तत्वों की मात्रा कैंसर जैसे घातक रोगों का कारक है। यह एक चिकित्सक से बेहतर कोई और नहीं समझ सकता। पर, जब राज्य स्वास्थ्य संस्थान में तैनात चिकित्सकों को ही पेयजल के परीक्षण की दलाली राश आने लगे, तो यह स्थिति अत्यधिक चिंतनीय है।

अब हुई जल परीक्षण शुल्क की सूची चस्पा करने की रस्म अदायगी
बीते अंक में बिजनेस लिंक ने राज्य स्वास्थ्य संस्थान में जल परीक्षण के एवज में की जा रही धांधली की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी। राज्य स्वास्थ्य संस्थान प्रबंध तंत्र ने अब जल परीक्षण शुल्क की सूची संस्थान की दीवारों पर चस्पा करने की रस्म अदायगी की है। गौरतलब है कि राज्य स्वास्थ्य संस्थान प्रबंध तंत्र की मनमानी का आलम यह है कि इसे पानी की दलाली पीने से भी परहेज नहीं है। पहले पानी की जांच फेल करना और फिर मनचाही वसूली कर पानी के उसी नमूने की रिपोर्ट पर संतोषप्रद की मुहर लगाना यहां की कार्यशैली में रच-बस चुका है। सरकार-ए-सरजर्मी लखनऊ में खुलेआम पानी की दलाली का यह धंधा स्वास्थ्य संस्थान में सुनियोजित रूट संचालित हो रहा है। शासन-प्रशासन के सर्वोच्च स्तर पर शिकायतों के बावजूद इस प्रकरण पर किसी का ध्यान न जाना बहुत कुछ बयां करता है।

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