बिजली हुई गुल तो जिम्मेदारी किसकी?
विधायक निवास ओसीआर में लगने हैं 150-200 प्रीपेड मीटर
प्रीपेड मीटर के रीचार्ज के लिए अतिरिक्त धनराशि का भुगतान भी बड़ी समस्या
राज्य सम्पत्ति विभाग को तय करनी है जिम्मेदारी
समय से बिजली बिलों का भुगतान न होने के चलते प्रीपेड मीटर लगाने की बनायी गयी है योजना
लखनऊ। राजधानी के सरकारी दफ्तरों व भवनों में प्रीपेड बिजली मीटर लगाने की योजना में बड़ा पेंच फंस रहा है। जिसका समाधान करने के बाद ही सरकारी भवनों में प्रीपेड मीटर लगाने का रास्ता साफ हो सकेगा। दरअसल, सरकारी भवनों में प्रीपेड मीटर के जरिये बिजली उपलब्ध कराने की योजना में बड़ा पेंच यह फंस गया है कि अगर रीचार्ज खत्म होने पर बिजली गुल हुई तो जिम्मेदारी किसकी होगी? बिजली गुल होने पर इसकी जिम्मेदारी राज्य सम्पत्ति विभाग की होगी या विद्युत विभाग। जिसके बाद राज्य सम्पत्ति विभाग अब तक यह तय नहीं कर पायाा है कि आखिरकार जिम्मेदार कौन होगा। अब विद्युत विभाग राज्स सम्पत्ति विभाग के जवाब के इंतजार में बैठा हुआ है। जिम्मेदारी तय हो तो सरकारी भवनों में प्रीपेड मीटर लगाए जाने का काम आगे बढ़े। इस बाबत अधीक्षण अभियंता सर्किल-1 वीबी राय ने बताया कि ओसीआर और दारूलशफा समेत अन्य सरकारी भवनों में प्रीपेड मीटर लगाया जाना है। ओसीआर में करीब 150-200 मीटर लगाये जाने हैं। जिनका पैसा राज्य सम्पत्ति विभाग की ओर दिये जाने के बाद मीटर मंगा भी लिये गये हैं। अब प्रीपेड मीटरों को लगाये जाने में बड़ा रोड़ा बिजली गुल होने पर जिम्मेदारी का फंस गया है। राज्य सम्पत्ति विभाग को यह तय करना है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। विभाग की ओर से राज्य सम्पत्ति विभाग को यह सुझाव भी दिया गया कि एक महीने तक ट्रायल के तौर पर प्रीपेड मीटरों के जरिये बिजली का उपभोग किया जाय। इससे यह आसानी से पता चल सकेगा कि एक महीने में कितने रुपये की बिजली का उपभोग किया जा रहा है। ऐसे में प्रीपेड मीटरों के रिचार्ज के लिए अतिरिक्त धनराशि का भुगतान कर यह व्यवस्था लागू की जा सकती है। जिसके बाद रीचार्ज खत्म होने पर बिजली गुल होने जैसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। हालांकि प्रीपेड मीटर के रीचार्ज के लिए अतिरिक्त धनराशि का भुगतान किस प्रकार होगा यह बड़ा सवाल है। हाल फिलहाल ठंड का मौसम होने के चलते गर्मियों में एक महीने में होने वाली खपत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। लिहाजा यह योजना अभी कशमकश में उलझी दिखायी पड़ रही है। बताते चलें कि लखनऊ विद्युत सम्पूर्ति प्रशासन लेसा ने सरकारी अधिकारियों, कर्मियों और सरकारी भवनों में रहने वाले पत्रकारों, वकीलों से बिल वसूली के लिए प्रीपेड मीटर लगाने की योजना बनायी थी। जिसके तहत 53 सरकारी कॉलोनियों में प्रीपेड मीटर लगाया जाना था। सरकारी भवनों में प्रीपेड मीटर लगाने की योजना समय से बिजली बिलों का भुगतान न होने के चलते बनायी गयी थी। सिंगल फेज प्रीपेड मीटर के लिए 6500 और थ्री फेज प्रीपेड मीटर के 12000 रुपये जमा करने पड़ते हैं।
समय से नहीं होता बिजली बिलों का भुगतान
ओसीआर, दारुलशफा सहित अन्य विधायक आवासों के बिजली बिलों का भुगतान समय से नहीं होता। वहीं पूरे बिजली बिलों का भी भुगतान नहीं किया जाता। ऐसे में राज्य सम्पत्ति विभाग पर भी सरकारी भवनों के बिजली बिलों का भुगतान करने का हमेशा दबाव बना रहता है। प्रीपेड मीटर लग जाने से राज्य सम्पत्ति विभाग पर से यह दबाव कम हो जायेगा। दूसरी ओर विद्युत विभाग का भी सरकारी भवनों पर बकाया नहीं रहेगा।
चाहिए 20 करोड़ से ज्यादा का बजट
राज्य सम्पत्ति विभाग की 53 से ज्यादा कॉलोनियों के अलावा सिंचाई, कृषि, रेडियो सिटी, पुलिस लाइन समेत कई विभागों को मिलाकर 10 हजार से ज्यादा कनेक्शन हैं। इन सभी जगह प्रीपेड मीटर लगने हैं। इन सभी जगहों पर प्रीपेड मीटर लगाने के लिए 20 करोड़ रुपये से ज्यादा का बजट आने के बाद ही शत प्रतिशत काम हो पाएगा।
यहां लगने थे प्रीपेड मीटर
बटलर पैलेस, डालीबाग, टिकैतराय कॉलोनी, ऐशबाग पीली कॉलोनी, ऐशबाग मोतीझील कॉलोनी, लॉ प्लास, अलीगंज, केन्द्रांचल, कानपुर रोड, इंदिरा नगर-ए ब्लॉक, मुंशी पुलिया।
शहर में दो सौ से ज्यादा सरकारी दफ्तर
नगर निगम, एलडीए, केजीएमयू, पीजीआई, हाई कोर्ट, लोक निर्माण, कृषि, सिंचाई, सचिवालय, जवाहर भवन, इंदिरा भवन, मंडी परिषद, पुलिस मुख्यालय, पशु पालन, एचएएल, राज्य सूचना आयोग समेत छोटे-बड़े मिलकार राजधानी में ही दो सौ से ज्यादा दफ्तर है। लेसा अधिकारियों के अनुसार प्रीपेड मीटर में खर्च पता चलने से अधिकारियों पर भी दबाव रहेगा।
प्रीपेड मीटर से बिजली देने में एक बड़ा पेंच यह है कि अगर रीचार्ज खत्म होने पर बिजली गुल हुई तो जिम्मेदारी किसकी होगी। इसके लिए राज्य सम्पत्ति विभाग से एक महीने की बिजली खपत के आंकलन के लिए ट्रायल बेस पर प्रीपेड मीटरों को लगवाने को कहा गया है। इसके अलावा रीचार्ज के लिए अतिरिक्त धनराशि का भी भुगतान कर इस समस्या का हल निकाला जा सकता है।
विनय भूषण राय, अधीक्षण अभियंता सर्किल-1