- जल्द से जल्द परियोजना पूरी करने का उच्चस्तरीय दबाव और अभियंताओं का अभाव बना दु:खद हादसे का सबब
- सेतु निगम में एई और जेई के 50 प्रतिशत पद कई साल से हैं खाली
- वर्ष 2015 में स्वीकृत सेतु की तीन बार बदली गई डिजाइन, टू-लेन से यह सेतु हो गया फोर-लेन
- पहले सेतु की लम्बाई थी 1,700 मीटर, बाद में हो गई 2,260 मीटर कडीएम और एसएसपी पर क्यों नहीं हुई कार्रवाई?
शैलेन्द्र यादव
लखनऊ। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में निर्माणाधीन सेतु का उद्घाटन हर हाल में लोकसभा चुनाव के पहले करने के लिये बनाये गये उच्चस्तरीय दबाव के नीचे १५ जिंदगियों ने असमय दम तोड़ दिया। दोषियों को किसी भी कीमत पर न छोडऩे की मुद्रा में शासन-प्रशासन मैदान में कूदा और कार्यदायी संस्था उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के अधिकारियों पर निलंबन का चाबुक चलाकर हादसे के कई अन्य प्रमुख कारणों पर पर्दा डाल दिया। वीवीआईपी क्षेत्र की इस सेतु निर्माण परियोजना पर कार्य कर रहे अभियंताओं पर उच्चस्तरीय दबाव और निगम में अभियंताओं का अभाव भी इस हादसे के प्रमुख कारणों में एक है। साथ ही शासन की उच्चस्तरीय जांच में स्थानीय प्रशासन को भी कटघरे में खड़ा किया गया है। बावजूद इसके स्थानीय प्रशासन को क्लीन चिट थमा दी गई। आखिर जनपद के सम्पूर्ण विकास और सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की है, उन्हें सरकार ने क्यों अभयदान दे दिया यह सवाल चर्चा का विषय है।
जानकारों की मानें तो वाराणसी में कैंट रेलवे स्टेशन के सामने निर्माणाधीन सेतु वर्ष 2015 में स्वीकृत हुआ था। वर्ष 2017 तक इस परियोजना पर 20 प्रतिशत निर्माण कार्य हुआ। इस बीच तीन बार डिजाइन बदली गई। स्वीकृत पुल टू-लेन से फोर-लेन का हो गया। इसकी लंबाई और लागत भी बढ़ गई। ऐसे में सेतु निगम के अभियंताओं पर डेढ़ साल में पुल का काम पूरा करने का दबाव था। वे पुल पर बीम डालते हुये आगे बढ़ रहे थे। अब इन्हें क्रॉस बीम से जोड़ा जा रहा था जबकि यह काम तुरंत किया जाना चाहिये था। शासन भले ही दावा कर रहा हो कि चौकाघाट उपरिगामी सेतु का निमाण तय मियाद में पूरा करने के लिये कोई दबाव नहीं बनाया गया। पर, जानकारों की मानें तो लगभग एक माह पूर्व एक उच्च स्तरीय बैठक में सेतु निगम के तत्कालीन मुख्य परियोजना प्रबंधक एचसी तिवारी से इस्तीफा लिखवा लिया गया था। इसी बैठक में सेतु निगम अधिकारियों ने साइट पर हैवी ट्रैफिक के बाबत आवाज भी उठाई थी। शासन-प्रशासन के आला हुक्मरानों ने जिला प्रशासन के माध्यम से डायवर्जन करने के निर्देश भी दिये थे। पर, स्थानीय पुलिस प्रशासन कुंभकर्णी नींद में खर्राटे लेता रहा।
जानकारों की मानें तो सेतु निर्माण स्थल पर यह बीम जब पिलर पर चढ़ाई गई थी, उस समय सेतु निगम ने दोनों ओर बैरीकेङ्क्षटग लगवाई थी। अत्यधिक संकरी रोड के चलते निगम के इन सुरक्षा उपायों से जाम की स्थिति बनने लगी। इस पर एसपी यातायात सुरेश चंद्र ने निगम के परियोजना प्रबंधक से बैरीकेंटिंग का दायरा कम करने और पुल के दोनों ओर सॢवस लेन चौड़ी करने का कहा। साथ ही चेताया यदि यह कार्य न हुये तो १९ फरवरी से यातायात पुलिस हटा ली जायेगी। इस पर परियोजना प्रबंधक ने एसपी ट्रैफिक को अवगत कराया कि सॢवस लेन पानी से खराब हो गई है। साथ ही उन्होंने किसी अप्रिय घटना से बचने के लिये स्टेशन के सामने लगे ठेले व अतिक्रमण हटवाने का अनुरोध भी किया। सेतु निगम के एमडी राजन मित्तल ने भी इस जगह पर अप्रिय घटना की आशंका जताते हुए ट्रैफिक डायवर्जन के लिये कई बार एसपी ट्रैफिक से लेकर एसएसपी तक को पत्र लिखे। बावजूद इसके रूट डायवर्जन नहीं किया गया। इन पत्रों की जानकारी वाराणसी के मंडलायुक्त, जिलाधिकारी और एसएसपी को भी थी। इतना ही नहीं जब सेतु निगम तंत्र द्वारा यातायात रोकने के लिये लगाई गई बैरीकेङ्क्षटग नहीं हटाई, तो एसपी ट्रैफिक ने सेतु निगम के परियोजना प्रबंधक के खिलाफ १९ फरवरी को एफआईआर लिखवाई और एफआईआर लिखवाने के बाद फिर से कुंभकर्णी निद्रासन में चले गये। शासन की उच्चस्तरीय जांच कमेटी ने मुख्यमंत्री को जो रिर्पोट सौंपी है, उसमें जिला प्रशासन को भी कटघरे में खड़ा किया है। सेतु निर्माण के चलते ट्रैफिक अव्यवस्थित था। जिला प्रशासन को बैरिकेडिंग लगाकर सुरक्षा के उपाय करने चाहिये थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। बैरिकेडिंग व डायवर्जन में प्रशासन द्वारा सहयोग न किया जाना बड़ी चूक साबित हुई। बावजूद इसके स्थानीय जिला प्रशासन पर कोई कार्यवाई न करके हादसे की सारी जिम्मेदारी सेतु निगम तंत्र पर थोप दी गई।
इंडियन इंस्टीट्यूट ब्रिज इंजीनियर्स के एक कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के महा-प्रबंधक अशोक मेहतो ने निर्माण में खामियों की बात स्वीकारते हुये कहा, प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने की वजह से जिला प्रशासन और अन्य विभागों की ओर से सेतु निगम पर कार्य को जल्छ से जल्द पूरा करने का दबाव डाला गया। इस फ्लाईओवर का निर्माण दिसंबर २०१८ तक पूरा करने की डेडलाइन निर्धारित की गई। उन्होंने हादसे में मौतों के लिये अप्रत्यक्ष रूप से वाराणसी जिला प्रशासन और यातायात पुलिस को जिम्मेदार बताया। उन्होंने २३ फरवरी २०१८ को परियोजना पर कार्यरत प्रबंधक पर वाराणसी पुलिस द्वारा दर्ज करवाई गई एफआईआर का हवाला देते हुये कहा, जब सेतु निर्माण साइट पर यातायात रोका गया, तो हमारे अधिकारियों के खिलाफ ट्रैफिक जाम की वजह बनने का आरोप लगाते हुये एफआईआर दर्ज करवा दी गई। यहां सवाल उठना लाजिमी है कि यदि जनपद की यातायात व्यवस्था बाधित थी, तो सेतु निगम के अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर लिखाने के बाद स्थानीय प्रशासन कुंभकर्णी नींद में क्यों सो गया? क्यों इस पर संजीदगी से कार्यवाई नहीं की गई।
बैरीकेङ्क्षटग लगाकर यातायात रोकने के लिये निगम के अधिकारियों ने पहल की थी, लेकिन स्थानीय प्रशासन का यहयोग नहीं मिला। उल्टा पीएम पर एफआईआर करा दी। अब जांच एक तरफा हो रही है। सरकार दो दिनों में एक पुल बनाने की बात कर रही है। लेकिन, जनशक्ति के अभाव में सेतु निगम यह लक्ष्य पूरा नहीं कर पायेगा। संघ लगातार अभियंताओं के रिक्त पद भरे जाने की मांग कर रहा है।
श्रीप्रकाश गुप्ता, अध्यक्ष, डिप्लोमा इंजीनियर संघ
अभियंताओं की कमी पर शासन मौन
उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम में सहायक अभियंता सिविल के १८४ पद सृजित हैं, लेकिन तैनाती महज ९५ पदों पर है और ८९ पद लम्बे समय से रिक्त हैं। सहायक अभियंता यांत्रिक के ५६ पदों के सापेक्ष महज २६ पदों पर तैनाती हैं और ३० पद लम्बे समय से खाली पड़े हैं। इसी प्रकार अवर अभियंता सिविल के २७२ पदों के सापेक्ष ११५ पदों पर जेई तैनात हैं, जबकि १५७ पद रिक्त हैं। सेतु निगम में अवर अभियंता यांत्रिक के १३० पद हैं। तैनाती ८७ पदों पर है और ४३ पद खाली पड़े हैं। विभागीय अधिकारियों की मानें तो सेतु निगम में सहायक अभियंता और अवर अभियंताओं के पदों पर आखिरी बार सीधी भर्ती 2007 में हुई थी। इंजिनियरों की कमी को देखते हुये अखिलेश सरकार ने 10 अगस्त 2013 को दोनों पदों पर भर्तियों का विज्ञापन निकाला था। इसमें जेई सिविल के 96, एई सिविल के 28 और एई यांत्रिक के सात पदों पर भर्ती होनी थी, लेकिन भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी।
सेतु निगम में भुलाया नहीं जा सकता ‘मित्तल का योगदान’
उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक राजन मित्तल भले ही आज इस हादसे के आरोप का सामना कर रहे हो, लेकिन सेतु निगम प्रबंध निदेशक रहते हुये उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। राजन मित्तल पहली बार एक जून २०१४ से २० अगसत २०१५ तक सेतु निगम के प्रबंध निदेशक रहे। इस दौरान सेतु निगम ने रिकार्ड आॢथक उन्नति दर्ज की। निगम का टर्नओवर १७०० करोड़ के ग्राफ को छूने लगा। तो कई ऐसी निर्माण परियोजनायें भी पूरी हुई, जो बीते कई वर्षों से अधर में लटक रही थी। लेकिन इसी बीच राजन मित्तल राजनैतिक उठापटक का शिकार हुये और उन्हें निगम के एमडी पद से हटा दिया गया। अपने बेहतरीन कार्यों के दम पर राजन मित्तल को दूसरी बार ११ जुलाई २०१७ को यह दायित्व मिला, तो निगम की तमाम परियोजनायें तेजी से आगे बढऩे लगी। पर, इस हादसे के चलते उन्हें निगम के एमडी पद से हटा दिया गया है।
वाराणसी फ्लाईओवर पर कार्य कर रहे अभियंताओं पर कार्य पूरा करने का अत्यधिक दबाव था। निगम में अभियन्ताओं की कमी है। एक-एक जेई तीन-तीन पुल देख रहे हैं। फिर भी निर्माण कार्य की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होता है। लेकिन, जल्दबाजी का दबाव किसी भी स्थिति में अच्छा नहीं होता। संघ जल्द बैठक कर निर्णय लेगा कि अभियंता जल्दबाजी के दबाव में कार्य नहीं करेंगे।
अशोक तिवारी, अध्यक्ष, सेतु निगम अभियंता संघ
ईमानदार और काबिल अधिकारी के रूप में पहचाने जाते हैं ‘सूदन’
तत्कालीन परियोजना प्रबंधक केआर सूदन उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के ईमानदार और काबिल अधिकारी के रूप में पहचाने जाते हैं। सेतु निगम की तमाम ऐसी परियोजनायें हैं, जो १५ से २० वर्षों से अधर में थी। कई अधिकारी परियोजना प्रबंधक बनाकर भेजे गये, लेकिन उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी। पर, जब निगम प्रबंध तंत्र ने केआर सूदन को परियोजना प्रबंधक बनाकर भेजा, तो वर्षों से बाधित परियोजनायें समय से पूरी हुई। ऐसी परियोजनाओं में बिहार राज्य के भागलपुर में गंगा नदी पर बनाया गया सेतु, सैदपुर सेतु और जमुनियां सेतु प्रमुख हैं। निगम मुख्यालय में चर्चा है कि इसमें कोई दो-राय नहीं कि यह प्रकरण अत्यंत दु:खद है। पर, इस प्रकरण ने निगम को नई पहचान देने वाले तत्कालीन प्रबंध निदेशक राजन मित्तल और केआर सूदन आदि जैसे अधिकारियों के मन में सदा के लिये एक टीस दे दी हैं।
एक जेई के हवाले तीन- तीन सेतुओं की जिम्मेदारी
गौरतलब है कि निगम में एमडी से लेकर उप परियोजना प्रबंधक तक के 120 पद स्वीकृत हैं। प्रबंध निदेशक, संयुक्त प्रबंध निदेशक सिविल और यांत्रिकी के दोनों पदों के साथ ही जीएम के दोनों पद प्रतिनियुक्ति से भरे जाते हैं। ज्यादातर इन पदों पर लोक निर्माण विभाग से प्रतिनियुक्ति पर आये इंजिनियरों की ताजपोशी होती है। मुख्य परियोजना प्रबंधक के आठ पदों, परियोजना प्रबंधकों के 26 पदों के साथ उप-परियोजना प्रबंधकों के 67 पद विभागीय इंजिनियरों के पद पदोन्नति से भरे जाते हैं। लेकिन निगम में सबसे ज्यादा इंजिनियरों की कमी है। निगम में सहायक अभियंताओं (एई) से लेकर अवर अभियंताओं (जेई) तक के 50 प्रतिशत से ज्यादा पद पिछले कई सालों से खाली हैं। स्थिति यह है कि जहां एक पुल निर्माण में तीन जेई की तैनाती होनी चाहिये, वहां तीन से चार पुलों की जिम्मेदारी एक जेई के कंधों पर है। ऐसे में हाल ही में सरकार द्वारा तय दो दिन में एक पुल बनाने का लक्ष्य सेतु निगम कैसे पूरा करेगा, यह बड़ा सवाल है।
वाराणसी फ्लाईओवर हादसा अत्यंत दु:खद है। लोकसभा चुनाव से पूर्व इस परियोजना का निर्माण कार्य पूरा करने के लिये सेतु निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों पर उच्चस्तरीय दबाव था, इस दु:खद घटना के प्रमुख कारणों में इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। वहीं निगम में सृजित पदों के सापेक्ष कर्मचारियों व अभियंताओं की कमी से आखिर कैसे समय से निर्माण पूरे होंगे। सेतु निर्माण परियोजनाओं पर सुरक्षा के उचित प्रबंध किये जाने चाहिये। इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।
इशरत जहां, अध्यक्ष, सेतु निगम इम्पलाईज यूनियन
जांच समिति को मिलीं यह खामियां
निर्माण कार्य में प्रयुक्त ड्राईंग का सक्षम विभागीय अधिकारी द्वारा अनुमोदित न होना। कॉलम के बीच में ढाली गयी बीम को क्रॉस बीम से टाई नहीं किया जाना। बैच मिक्स प्लांट का रिकार्ड निर्माण इकाई द्वारा मेनटेन नहीं किया जाना, जिससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि बीम ढालने में प्रयुक्त सीमेंट सैंड एवं ग्रिट का अनुपात निर्धारित मानक के अनुसार था या नहीं और उसको समय-समय पर सक्षम अधिकारियों द्वारा चेक किया गया या नहीं। कार्य स्थल पर ढाली गई कंक्रीट की चेकलिस्ट का निर्माण इकाई के पास उपलब्ध न होना। विभिन्न निरीक्षणकर्ता अधिकारियों द्वारा निरीक्षण के बाद निरीक्षण की टिप्पणियां जारी नहीं करना। कार्य कराते समय कार्य स्थल पर वैकल्पित मार्ग की व्यवस्था न होना आदि जैसे कई बिन्दुओं को जांच सिमिति ने अपनी आख्या में शामिल किया है।