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0001, 0786 वीआईपी नंबरों की कीमत होगी एक लाख

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वीआईपी नंबरों की अधिक मांग पर परिवहन विभाग कर रहा कीमत बढ़ाने की तैयारी

शासन को भेजा दोनों नंबरों की कीमत की मंजूरी का प्रस्ताव

लखनऊ। वीआईपी नंबरों की ऑनलाइन बोली प्रक्रिया में भी सेंधमारी के बाद अब परिवहन विभाग ने अधिक डिमांड वाले नंबरों की कीमत बढ़ाने का प्रस्ताव बनाया है। इस प्रस्ताव को अगर मंजूरी मिली तो वीआईपी नंबरों की ख्वाहिश रखने वालों को ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ेगा। 346 वीआईपी नंबरों में गत चार बार की ऑनलाइन ई-नीलामी बोली में 0001 व 0786 नंबरों की मांग सबसे अधिक रही। ऐसे में अधिक डिमांड वाले इन दोनों नंबरों की कीमत 15000 हजार रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये करने की तैयारी है। जिसके बाद इन दोनों नंबरों पर बोली लगाने के लिए तिहाई हिस्सा जमानत धनराशि के रूप में जमा करना होगा। तभी आवेदक बोली लगा पाएंगे। ऊंची बोली लगाने के बाद भी अगर नंबर नहीं लिया गया तो जमानत धनराशि जब्त कर ली जाएगी। इस संबंध में परिवहन विभाग ने प्रस्ताव बनाकर शासन को मंजूरी के लिए लिए भेजा है। लोकसभा चुनाव बाद प्रस्ताव पर निर्णय लिए जाने की बात सामने आ रही है। परिवहन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ई-नीलामी के जरिए चार अलग-अलग श्रेणियों के 346 नंबरों पर ऑनलाइन बोली लग रही है। जिसमें 15000, 7500, 6000 व 3000 कीमत के नंबर शामिल हैं। इनमें एक श्रेणी के 0001 व 0786 नंबरों की कीमत 15 हजार से बढ़ाकर एक लाख रुपये होगा। जहां आवेदक ई-नीलामी में एक लाख रुपये से ऊपर सबसे ऊंची बोली लगाकर नंबर हासिल कर सकेंगे।

वीआईपी नंबरों की ई-नीलामी में आवेदक ऊंची बोली लगाकर नंबर नहीं ले रहे हैं। इस तरह का मामला संज्ञान में आने के बाद जिन नंबरों की मांग अधिक है उनकी कीमत एक लाख रुपये तक करने की तैयारी है। ताकि ई-नीलामी में वही आवेदक हिस्सा लें जिन्हें वास्तव में नंबर चाहिए होगा।
अरविंद कुमार पांडेय, अपर परिवहन आयुक्त (राजस्व)

वीआईपी नंबरों की बोली प्रक्रिया में भी सेंधमारी

एक ही मेल आईडी से दो बार वीआईपी नंबर की बुकिंग

लखनऊ। परिवहन विभाग ने वीआईपी नंबरों की ऑनलाइन बुकिंग में दलालों की सेंधमारी पर अंकुश लगाने के लिए बोली प्रक्रिया शुरू किया था। लेकिन परिवहन विभाग की वीआईपी नंबरों की बोली प्रक्रिया में भी सेंधमारी हो गयी। सेंधमारी करने वालों ने बोली प्रक्रिया में अधिक डिमांड वाले नंबरों पर नजर गड़ाया हुआ है। उनके खेमे के अलावा अधिक डिमांड वाला नंबर कोई और बुक न करा ले, इसके लिए उस नंबर की बोली लाखों रुपए में पहुंचा दे रहे हैं। लेकिन लाखों रुपए बोली लगाने वाले अंतत: पीछे हट जा रहे हैं और लाखों रुपए की बोली लगने वाला वही वीआईपी नंबर हजारों रुपए में बुक हो जा रहा है। कुछ इस तरह का ही लुकाछिपी का खेल मौजूदा समय में परिवहन विभाग और वीआईपी नंबरों की ऑनलाइन बोली में हिस्सा लेने वाले लोगों के बीच चल रहा है। एक ओर जहां पारदर्शी व्यवस्था के लिए परिवहन विभाग अपनी सभी सेवाओं को ऑनलाइन करता जा रहा है तो वहीं हाईटेक हो रहे सिस्टम को तोडऩे वाले मास्टरमाइंड लोग विभागीय विशेषज्ञों से दो कदम आगे निकल गए। इसका नमूना हाल-फिलहाल लखनऊ आरटीओ में 0001 वीआईपी नंबर की ऑनलाइन बोली प्रणाली में देखने को मिला। इस बोली प्रक्रिया में जो पहली ऑनलाइन तीन बोलियां लगायी गईं, उसमें से पहले और तीसरे नंबर की बोली लगाने वाला व्यक्ति एक ही था। गत 13 अप्रैल को उक्त वीआईपी नंबर की ऑनलाइन बोली प्रक्रिया शुरु हुई, जिसमें सर्वाधिक बोली रिकॉर्ड 11.50 लाख रुपये की लगी। इस पहले बिडर की तरफ से जब कोई मैसेज नहीं आया तो उसकी सिक्योरिटी मनी जब्त कर ली गई और दूसरे आवेदक जिसने 11 लाख रुपये की बोली लगायी थी, उसे मौका दिया गया। उसने भी कहीं न कहीं हाथ खड़े कर दिए तो फिर तीसरे के लिए जद्दोजहद शुरू हुई। जिसने वीआईपी नंबर 0001 के लिए 22 हजार की बोली लगायी थी। जब तीसरे आवेदक के विवरण को खंगाला गया तो परिवहन विभाग की टीम को सारा गड़बड़झाला समझ में आया। इसका खुलासा तब हुआ जब सर्वाधिक बोली लगाने के बाद पहले और तीसरे व्यक्ति के विवरण को खंगाला गया तो उसकी मेल का नाम वही निकला जो पहले बिडर का था। यानि एक ही व्यक्ति ने एक ही नाम वाली मेल आईडी से दो बार वीआईपी नंबरों की ऑनलाइन बोली प्रणाली में भाग लिया। हैरानी तो तब हुई जब यह गड़बड़ी शुरूआती चरण में न तो विभागीय जानकारों और न ही आईटी कंपनी के लोग पकड़ सके जो इन सारी तकनीकी व्यवस्थाओं को आकार दे रहें और क्रियान्वित कर रहे हैं।

तय समय पर नहीं पहुंच रहे डीएल, आवेदक परेशान

परिवहन विभाग ने नई कंपनी के साथ मुख्यालय से डीएल प्रिंट होने का किया है करार

10 दिन में आवेदक के पते पर डीएल पहुंचाने का था दावा

लखनऊ। परिवहन विभाग मुख्यालय से आवेदकों के ड्राइविंग लाइसेंस भेजे जाने की व्यवस्था कारगर नहीं साबित हो रही है। आवेदकों को 10 दिन के भीतर डीएल मिल जाने का दावा भी हवा-हवाई साबित हो रहा है। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदक आरटीओ व परिवहन विभाग के बीच झूल रहे हैं। डीएल न मिल पाने की शिकायत लेकर आवेदक मुख्यालय तक पहुंच रहे हैं। ऐसे में यह व्यवस्था अपने उद्देश्य से भटकती नजर आ रही है। इंद्रानगर के रहने वाले मो. इलियास ने चार अप्रैल को जबकि राजाजीपुरम निवासी दयानंद तिवारी ने 29 मार्च को अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया था। लेकिन इन दोनों का ही लाइसेंस अब तक डाक के माध्यम से घर नहीं पहुंचा। डीएल न पहुंचने की शिकायत महज इन दोनों की ही नहीं है बल्कि मौजूदा समय में ऐसे शिकायतकर्ताओं की लिस्ट लंबी है। राजधानी के ही आरटीओ कार्यालय में बहुत सारे लोग डीएल न पहुंचने की शिकायत को लेकर भटक रहे हैं। दरअसल, परिवहन विभाग ने डीएल स्मार्ट कार्ड की प्रिंटिंग की नई व्यवस्था शुरु की है। जिसके तहत डीएल आरटीओ कार्यालय की बजाय परिवहन विभाग मुख्यालय से आवेदकों के पते पर भेजे जाने हैं। इसके तहत स्मार्ट चिप कंपनी को ठेका दिया गया है। इस कंपनी के साथ 10 दिन के भीतर आवेदक के दिए गए पते पर डीएल पहुंचाने का अनुबंध किया गया है। जिसके बाद लखनऊ आरटीओ कार्यालय में 29 मार्च से बनने वाले डीएल का डाटा परिवहन विभाग मुख्यालय भेजा जा रहा है। जिसके बाद से ही डीएल न पहुंचने की शिकायत बढ़ गयी है। वहीं प्रदेश भर से बड़ी संख्या में परिवहन विभाग मुख्यालय पहुंचे डीएल में साइन का इशू पेंच फंसा दिया है। हजारों की संख्या में डीएल ऐसे पहुंचे हैं जिनमें साइन ही नहीं है अथवा अन्य दिक्कतें हैं। जिसके चलते ही ऐसे आवेदकों के डीएल को नहीं भेजा जा सका है।

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