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14 साल बाद दर्ज हुई महाघोटाले की रिपोर्ट

  • हुसैनगंज कोतवाली में दर्ज हुई रिपोर्ट, आरोपित कर्मचारी हो चुका हैं रिटायर
  • उप्र राज्य सहकारी ग्राम्य विकास बैंक का ईपीएफ घोटाला

gram vikas bankबिजनेस लिंक ब्यूरो

लखनऊ। वर्ष 2003 में उत्तर प्रदेश राज्य सहकारी ग्राम्य विकास बैंक में करोड़ों के ईपीएफ घोटाले की विभागीय जांच में पाया गया कि गंभीर अनियमिततायें हुई हैं। जांच रिपोर्ट में इस प्रकरण की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश भी की गई। घोटाले के इस प्रकरण पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य सतर्कता समिति की बैठक में कर्मचारी भविष्य निधि ट्रस्ट में हुये करोड़ों के घोटाले की जांच आॢथक अपराध अनुसंधान शाखा से कराने का निर्णय भी लिया गया। शासन ने एलडीबी प्रबंधन को इस मामले में तत्काल एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश भी दिये। पर, अधिकारी वर्षों तक मामला दबाये रहे। आखिरकार, उत्तर प्रदेश राज्य सहकारी ग्राम्य विकास बैंक के ईपीएफ घोटाले में 14 साल बाद हुसैनगंज कोतवाली में एफआईआर दर्ज हुई है।

ताज्जुब की बात है कि मुकदमा तब दर्ज कराया गया, जब आरोपित सचिव सेवानिवृत्त हो चुका हैं। इंस्पेक्टर हुसैनगंज के मुताबिक, इस प्रकरण में विभागीय जांच हो चुकी है। इसके बावजूद रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई थी। अब वर्षों बाद पुलिस को तहरीर दी गई है, जिसके आधार पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है और इसकी जांच ईओडब्ल्यू से कराने के लिए पत्र लिखा गया है। हुसैनगंज एसएसआई के मुताबिक, उत्तर प्रदेश राज्य सहकारी कृषि एवं ग्राम्य विकास बैंक के ईपीएफ ट्रस्ट सचिव राजकुमार यादव की तहरीर पर वर्ष 2010 में सेवानिवृत्त हो चुके गोंडा निवासी कर्मचारी मजहर हुसैन के खिलाफ धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई है।

सहकारी बैंक की समिति कर्मचारियों के ईपीएफ के धन को विभिन्न कंपनियों में निवेश कर ब्याज कमाती हैं। वर्ष 2003 में लगभग 12 कंपनियों में करीब 17 करोड़ रुपये निवेश किया गया था। आरोप है कि तत्कालीन सचिव मजहर हुसैन ने मध्य प्रदेश की एमपीएसआईडीसी कंपनी को बिना अनुमोदन के करोड़ों रुपये दे दिये।

जानकारों की मानें तो तत्कालीन मुख्य महाप्रबंधक ने मामले की जांच में पाया था कि विभिन्न कंपनियों को एजेंटों के जरिये रकम दी गई, जिसमें अधिकारियों ने कमीशन खाया। कंपनी द्वारा मूलधन के 68 लाख रुपये व ब्याज के करोड़ों रुपये का भुगतान नहीं किया गया। विभागीय अनियमितता कर सरकारी धन का गबन किया गया। शासन के स्पष्टï निर्देशों के बावजूद एलडीबी प्रबंध तंत्र धृष्टतापूर्वक शासन के निर्देशों को वर्षों तक ताक पर रखे रहा।

एलडीबी के तत्कालीन एमडी रामजतन यादव ने इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं होने दी। क्योंकि इस घपले में वे खुद भी लिप्त थे। इतना ही नहीं सूत्रों की मानें तो तत्कालीन एमडी ने मामले को रद्द करने के लिए शासन को पत्र लिख डाला। शासन ने यादव के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। पर, मामला यथावत रहा। न एफआईआर हुई और न जांच आगे बढ़ी। नतीजतन, घोटालेबाजों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा और उनकी हरकतें जारी रही। एलडीबी में यह खेल लम्बे समय से चल रहा है, लेकिन सत्ता-व्यवस्था को इसकी कोई फिक्र नहीं।

जांच अधिकारियों ने भी माना, यह घोटाला इतना बड़ा है कि इसकी जांच सीबीआई ही कर सकती है। पर, सीबीआई जांच के बजाय एलडीबी को बंद करने की कोशिशें तेज हैं। योगी सरकार के सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा एलडीबी का अस्तित्व समाप्त कर अरबों-खरबों के घोटाले का पटाक्षेप करने पर आतुर हैं।

ईपीएफ घोटाले पर एक नजर
ईपीएफ ट्रस्ट द्वारा प्रदेश के बाहर की 12 कम्पनियों में धनराशि के विनियोजन में अनियमितताओं की शिकायत पर बैंक के तत्कालीन मुख्य महाप्रबन्धक प्रेम शंकर ने जांच आख्या 29 मई 2003 को तत्कालीन प्रबन्ध निदेशक को सौंपी। इस जांच रिपोर्ट के अनुसार, ट्रस्ट के तत्कालीन अध्यक्ष दामोदर सिंह, मुख्य महाप्रबन्धक वित्त एवं तत्कालीन सचिव मजहर हुसैन द्वारा महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश सरकार के निगमों में लगभग 17 करोड़ रुपये के विनियोजन में अपनायी गयी कार्य प्रणाली दोषपूर्ण बताते हुए बड़े वित्तीय घोटाले की आशंका जाहिर की गई। साथ ही इस प्रकरण की सीबीआई जांच कराने सिफारिश की गई। इसी क्रम में 23 मार्च 2012 को तत्कालीन प्रमुख सचिव, सहकारिता ने प्रबन्ध निदेशक को अवगत कराया कि इस जॉच आख्या के आधार पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित राज्य सतर्कता समिति की 8 दिसम्बर 2011 को सम्पन्न हुई 143वीं बैठक में कर्मचारी भविष्य निधि ट्रस्ट में करोड़ो रुपये के घोटाले की जॉच आॢथक अपराध अनुसंधान शाखा से कराये जाने का निर्णय लिया गया है। जॉच आख्या के आधार पर एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश भी दिये। बावजूद इसके अधिकारियों ने मामला दबाये रखा।

अनियमित मिला तीन करोड़ का विनियोजन
जांच अधिकारी द्वारा रैण्डम आधार पर प्रदेश के बाहर महाराष्ट्र सरकार के निगमों व अन्य प्रदेशों की 12 कम्पनियों में ट्रस्ट की धनराशि के किये गये विनियोजन में से एक कम्पनी ‘मध्य प्रदेश स्टेट इण्डस्ट्र्यिल डेवलपमेन्ट कार्पोरेशन, भोपाल’ में विनियोजित की गयी तीन करोड़ की धनराशि का विनियोजन अनियमित पाया गया, जिस कारण 31 मार्च २०16 तक ट्रस्ट को 4.16 करोड़ की ब्याज हानि हई। साथ ही मूलधन में से 68,57,140 रुपये अवशेष है। इसके लिये तत्कालीन सचिव, मजहर हुसैन को बैंक प्रबन्धन ने दोषी ठहराया। इस अनियमित विनियोजन पर बैंक की प्रबन्ध समिति ने 3 अक्टूबर 16 को मध्य प्रदेश इण्डिस्ट्रियल डवेलपमेन्ट कार्पोरेशन में किये गये विनियोजन एवं पुनर्निवेश के लिये ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव मजहर हुसैन को दोषी मानते हुये उनके विरूद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने के लिये ट्रस्ट के सचिव को अधिकृत किया।

ऐसा बेवजह तो नहीं करते हैं गोस्वामी!
एलडीबी के तत्कालीन एमडी श्रीकांत गोस्वामी ने भी ईपीएफ घोटाले में एफआईआर दर्ज नहीं कराई। गोस्वामी की खूबी है कि जब वे पद पर नहीं होते हैं, तो घपले-घोटाले पर सख्त कार्रवाई के लिये खूब लिखा-पढ़ी करते हैं और जब वह खुद पद पर आते हैं तो घोटालों की फाइल दबा कर बैठ जाते हैं। ऋण घोटाले में लखीमपुर खीरी के तत्कालीन जिलाधिकारी की शिकायत पर निबंधक ने सहकारिता विभाग के संयुक्त निबंधक रहे श्रीकांत गोस्वामी को जांच के लिए कहा, गोस्वामी ने जांच के बाद एलडीबी के तत्कालीन एमडी आलोक दीक्षित को दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश दिया। बावजूद इसके मामला दबा रह गया। जब गोस्वामी खुद एलडीबी के एमडी बनें, तो वह भी इन तमाम घोटालों की फाइलें दबा कर बैठे रहे।

चर्चित रहा ब्याज घोटाला!
जानकारों की मानें तो अधिक ब्याज दर पर नाबार्ड से मिलने वाली बड़ी रकमों को कम ब्याज दर पर बैंक में फिक्स करने का एलडीबी अधिकारियों का खेल अत्यधिक नुकसानदायक रहा। ब्याज-घोटाले के कारण एलडीबी को महज 13 दिनों में 6,47,05,543.84 करोड़ रुपये की हानि पहुंचाई गई है। लेन-देन के इस खेल को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्राम्य विकास बैंक को हुये नुकसान की गहरी खाई कितनी भयानक है।

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