- परियोजना विस्तारीकरण के लिये कार्ययोजना नहीं बना पाया निगम तंत्र
- तत्कालीन कृषि उत्पादन आयुक्त के निर्देशों के बावजूद बरकरार रही उपेक्षा
- प्रबंध तंत्र की उपेक्षित कार्यशैली से उत्तर प्रदेश भूमि विकास निगम का बंद होना तय
- अब तक निगम ने सुधारी चार लाख हेक्टेयर ऊसर भूमि, सात लाख किसान हुये लाभान्वित
- विश्व बैंक सहायतित परियोजना की अवधि पूरी होते ही खत्म हो जायेगा निगम का वजूद
लखनऊ। प्रदेश सरकार के उद्देश्यों में प्रमुख रोजगार और किसानों की आय दोगुनी करने में उपयोगी भूमिका निभाने वाला उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम बंद होने की कगार पर है। बंदी तय मान चुका निगम प्रबंध तंत्र इस विपरीत परिस्थिति के समक्ष घुटनों पर पड़ा है। प्रदेश की ऊसर भूमि को सुधारने के उद्देश्य से वर्ष 1978 में स्थापित भूमि विकास निगम ने अब तक लगभग सात लाख हेक्टेयर ऊसर भूमि उपजाऊ बनाकर लाखों किसानों को लाभांवित किया है। पर, आज उसी निगम का वजूद खतरे में हैं। रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके अधिकतर कर्मचारियों को बेरोजगारी का डर सता रहा है। जानकारों की मानें तो इस विपरीत परिस्थिति का मूलकारण प्रबंध तंत्र की उपेक्षित कार्यशैली है। हालांकि, विभागीय राज्यमंत्री ने इसे सिरे से नकारा है।
बता दें कि विश्व बैंक के वित्त पोषण से वर्तमान में निगम द्वारा उत्तर प्रदेश सोडिक लैण्ड रिक्लेमेशन-तृतीय परियोजना संचालित है, जिसकी अवधि 29 दिसम्बर 2018 को समाप्त होनी है। लेकिन, योजना अवधि विस्तारीकरण या अन्य प्रोजेक्ट हासिल करने के प्रति निगम प्रबंध तंत्र का उपेक्षित रवैया बरकरार रहा। इस उपेक्षित कार्यशैली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अधिकारियों ने विश्व बैंक के पास न कोई नया प्रोजेक्ट भेजा और न राज्य सरकार के हिस्से का धन पाने के लिये अनुपूरक बजट में भी कोई प्रस्ताव भेजा।
जानकारों की मानें तो 27 फरवरी 2018 को कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में संपन्न हुई निगम के निदेशक मण्डल की 115वीं बैठक में विश्व बैंक साहयतित परियोजना की अवधि पूरी होने से पूर्व निगमहित में वाह्य सहायता से संचालित कृषि आधारित नयी परियोजना के संबंध में कांसेप्ट पेपर पर अनुमोदन प्रदान करते हुये विश्व बैंक को भेजने पर निदेशक मण्डल ने सहमति प्रदान की। इस परियोजना संचालन की अवधि वर्ष 2018-19 से 2024-29 तक प्रस्तावित की गयी थी। लेकिन, इस योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका।
जानकारों की मानें तो निगम प्रबंधन का ध्यान इससे अधिक अपनी प्रतिनियुक्ति की अवधि बढ़वाने में लगा रहा। लिहाजा, निगम का बंद होना तय माना जा रहा है। इससे मुख्यालय, परियोजना कार्यालयों सहित क्षेत्र में कार्य कर रहे लगभग 1000 लोगों को रोजगार छिनने का डर सता रहा है। इसमें उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम के कर्मचारी, वर्ष 1994 से निगम में कांट्रैक्ट पर तैनात कर्मचारी और निगम की परियोजनाओं को क्रियान्वित करने वाले एनजीओ में कार्यरत कॢमयों के समक्ष बेराजगारी खड़ी होने वाली है। साथ ही विभिन्न विभागों से प्रतिनियुक्ति पर आये काॢमक भी परेशान हैं।
बहरहाल, इनके समक्ष मूल विभाग में वापसी का विकल्प है लेकिन अपने जीवन का लम्बा समय जिस कार्य में खफाया, उसका अंधकारमय भविष्य इनकी पीड़ा का सबब है। योजना समाप्त होने में महज कुछ दिन शेष हैं। दिसम्बर के अंत में निगम में तालाबंदी तय मानी जा रही है। उत्तर प्रदेश भूमि सुधार निगम के अध्यक्ष प्रभात कुमार का भी कहना है कि इस संबंध में अब कुछ नहीं हो सकता। यह प्रोजेक्ट बन्द होने जा रहा है।
विश्व बैंक से पोषित भूमि सुधार निगम की ओर से प्रदेश में सोडिक लैंड रिक्लेमेशन-3 परियोजना के तहत ऊसर-बीहड़ सुधार का कार्य हो रहा है। प्रदेश में अभी भी बड़े पैमाने पर ऊसर-बंजर-बीहड़ व जलमग्न भूमि है, जिसे खेती लायक बनाने की जरूरत है। इसी को ध्यान में रखकर सोडिक लैंड रिक्लेमेशन-3 की समाप्ति के बाद प्रदेश की ऊसर, बंजर व बीहड़ भूमि के साथ-साथ जलमग्न भूमि को सुधारकर उसे खेती लायक बनाने के लिए एक योजना को केन्द्र सरकार ने इस वर्ष के प्रारम्भ में हरी झंडी दी थी। उम्मीद थी कि सोडिक-3 की समाप्ति के बाद इसके अभिलेखों के प्रतिवेदन की अवधि चार माह में समाप्त होते ही अगले वर्ष अप्रैल से नई योजना शुरू हो जाएगी। लेकिन कोई नया प्रोजेक्ट मंजूर नहीं होने तथा सरकार से आॢथक सहायता नहीं मिल पाने से उत्तर प्रदेश भूमि विकास निगम बंद होने की कगार पर है और तैनात कर्मचारी बेरोजगारी के मजधार में हैं।
ऊसर सुधारते-सुधारते खुद हुआ बंजर
ऊसर भूमि को सुधारने के उद्देश्य से वर्ष 1978 में स्थापित उप्र भूमि विकास निगम ने वर्ष 1993 में विश्व बैंक के सहयोग से 10 और यूरोपियन यूनियन के सहयोग से पांच जनपदों में योजना लागू की। प्रथम चरण वर्ष 1993-1999 में एक लाख हेक्टेयर भूमि सुधारी गई और लगभग 2.50 लाख किसान लाभांवित हुये। द्वितीय चरण 1999-2007 में यह योजना प्रदेश के 18 जनपदों में लागू कर 1.50 लाख हेक्टेयर ऊसर भूमि सुधारी गई और तीन लाख किसान लाभांवित हुए। इस सफलता को देखते हुये तृतीय चरण वर्ष 2009-2018 में इस योजना को प्रदेश के 30 जनपदों में लागू किया गया। अब तक 1.30 लाख हेक्टेयर ऊसर भूमि सुधारी जा चुकी है। 31 दिसम्बर 2018 को योजना की पूर्व निर्धारित अवधि समाप्त होनी है। लेकिन, योजना अवधि विस्तारीकरण या अन्य प्रोजेक्ट हासिल करने के प्रति निगम प्रबंध तंत्र का उपेक्षित रवैया बरकरार रहा।