- इलाज के दौरान बीते दिनों एयरफोर्स से सेवानिवृत्त सैनिक की मौत के बाद हुआ था बवाल
- पीडि़त परिवार ने लगाया था इलाज में लापरवाही का आरोप, अस्पताल प्रशासन ने की थी मारपीट
- दोनों पक्षों ने वजीरगंज थाने में दर्ज कराया मुकदमा, किसी की नहीं हुई गिरफ्तारी
- वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय के समीप स्थित केके हॉस्पिटल का है विवादों से पुराना नाता
बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। एक ओर राज्य सरकार प्रदशवासियों के इलाज के लिये नित नई योजनाओं को अमलीजामा पहना रही है। वहीं दूसरी ओर राजधानी के प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही है। मरीज मरता है तो मरे। तीमारदार बेहाल होते हैं, तो हो। निजी अस्पताल संचालकों को इससे कोई लेना-देना नहीं। इन्हें मतलब है तो महज अपने बिल से। राजधानी में ऐसी विवादित कार्यशैली के लिये केके अस्पताल अक्सर सुॢखयों में रहता है। बीते दिनों सेना के एक सेवानिवृत्त सैनिक के इलाज में लापरवाही का मामला प्रकाश में आया। सेना में ही कार्यरत बेटे ने आपत्ति दर्ज की, तो केके हास्पिटल के संचालकों की शह पर कर्मचारियों ने सीआरपीएफ में तैनात मृतक मरीज के बेटे से मारपीट की। मामला, पुलिस के संज्ञान में है। जांच प्रगति पर है। पर, मनमानी का यह सिलसिला है कि रुकने का नाम नहीं ले रहा है।
बीते दिनों वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय के समीप स्थित केके हॉस्पिटल में सीआरपीएफ और आईटीबीपी का एक जवान एयर फोर्स से रिटायर बीमार पिता हनुमान सिंह का इलाज कराने आठ अप्रैल को पहुंचा। इलाज के दौरान अस्पताल प्रशासन की लापरवाही से उसके पिता की मौत हो गई। तीमारदारों का आरोप है कि डॉक्टर के स्थान पर नॢसंग स्टाफ इलाज कर रहा था, जिससे उनके पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद हॉस्पिटल के मालिक केके सिंह ने अपने स्टाफ के साथ मिलकर मृतक मरीज के बेटे विमलेश सिंह, हरमेश पासी सहित अन्य को हॉस्पिटल के अंदर बंद कर पीटा जिससे फौजी जवानों को गंभीर चोटें भी आई। मामले में दोनों पक्षों की तरफ से पुलिस ने मुकदमा दर्ज किये। यह बात दूसरी है कि दोनों ही पक्षों से किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई।
पीडि़त परिवार ने का आरोप है कि केके हॉस्पिटल डॉक्टर केके सिंह, डॉक्टर जयनारायण और कंपाउंडर नीरज त्रिपाठी आदि की घोर लापरवाही से मेरे पिताजी की मौत हुई है। जब मैंने यह कहा तो इन लोगों ने मुझे मारना शुरू कर दिया और कहां साले पासी जाति के हो नेता गिरी करते हो भाग जाओ नहीं तो तुम्हारे पिता की तरह तुम भी मर जाओगे। जब मेरे भाई विमलेश कुमार और भतीजे आदित्य ने बीच-बचाव किया तो अस्पताल प्रशासन ने एक सलाह होकर गेट में ताला बंद कर दिया और हमारे साथ मारपीट की। थाना वजीरगंज में नामजद एफआईआर दर्ज कराई। पर, किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। पीडि़तों का कहना है कि डॉ. केके सिंह ने जो एफआईआर दर्ज कराई है उसमें कहा गया है कि इनके पिता कोमा में थे, जबकि हकीकत यह है कि वह कोमा में नहीं थे। अगर मेरे पिताजी कोमा में थे तो साबित करें। अस्पताल में लगे सीसीटीवी कैमरों से झूठ और सच सामने आ जायेगा।
सीआरपीएफ में तैनात मृतक के बेटे का कहना है कि वह अपना घर-परिवार छोडक़र देश की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहते हैं लेकिन देश के अंदर जवानों के साथ ऐसा बर्ताव हो रहा है इससे जवानों का मनोबल भी टूटता है और प्रशासन पर सवाल भी खड़े होते हैं कि देश की सीमा के रक्षक देश के अन्दर कितने सुरक्षित हैं। प्रशासन को अस्पताल और डॉक्टर के ऊपर सख्त कार्रवाई करनी चाहिये ताकि इनकी इस मनमानी कमाऊ कार्यशैली से किसी अन्य को नुकसान न उठाना पड़े। जानकारों की मानें तो केके हॉस्पिटल अक्सर विवादों के घेरे में रहता है। कई बार तो अस्पताल सीज भी हो चुका है। अस्पताल सीज होने के साथ ही अस्पताल के मालिक केके सिंह व उनकी डॉक्टर पत्नी जेल यात्रा भी कर चुकी हैं। लेकिन फिर भी पैसे और रसूख के दम पर मरीजों के जान के साथ खिलवाड़ यहां अब तक बंद नहीं हुआ है।