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सफाई में नगर निगम का पूरा सिस्टम फेल

लखनऊ। शहर की सफाई भले ही न हो रही हो, कार्यदायी संस्थाओं की जेब जरूर भर रही है। महापौर सफाई कर्मियों की पाठशाला लगा रही हैं। नगर निगम के अफसर निरीक्षण कर रहे हैं। सफाईकर्मी अपनी समस्याओं को लेकर राग अलाप रहे हैं। शहर है कि गंदा है। जगह जगह कूड़े के ढेर लगे हैं।

हाईकोर्ट के आदेश पर वार्ड अधिकारियों को निरीक्षण में कर्मचारी गायब मिल रहे हैं मगर कार्यदायी संस्थाओं के खिलाफ कार्रवाई करने में अफसरों को पसीना आ रहा है। हाल यह है कि कार्यदायी संस्थाओं से रखे गए श्रमिक पार्षद, पूर्व पार्षद व अफसरों के घरों में काम कर रहे हैं। जनता के पैसे से उसे छोड़ हर कोई मौज कर रहा है। हाउस टैक्स देने के बाद न उसके मोहल्ले में झाड़ू लग रही है और न ही जनसुविधाओं का लाभ मिल रहा है।

हाल यह है कि सफाई कर्मचारियों का आरोप है कि पार्षद और अफसरों के घर काम करना पड़ रहा है। ऐसे में मौके पर न पहुंचे तो गैर हाजिर होने पर कार्रवाई का डर, पार्षद व अफसर के घर न जाए तो भी कार्रवाई तय है। इस स्थिति में शहर की साफ-सफाई पटरी से उतरना तय है। कार्यदायी संस्था के माध्यम से नगर निगम में श्रमिकों की आपूर्ति की जाती है। कम्प्यूटर आपरेटर से लेकर सफाई के काम के लिए श्रमिक रखे गए हैं। यही संस्थाएं अफसरों के लिए भी कमाई का जरिया बन चुकी है।

नगर निगम में लगभग 75 संस्थाएं पंजीकृत हो चुकी हैं। इनमें ज्यादातर को नगर निगम के अधिकारियों, बाबुओं व सफाई कर्मचारी नेताओं का संरक्षण प्राप्त हैं। कागज पर जितने कर्मचारियों की आपूर्ति दिखाई जा रही है फील्ड में उसके आधे भी तैनात नहीं हैं। ऐसे में शहर को साफ सुधरा रखने का प्रयास सिर्फ दिखावा ही साबित हो रहा है।

सफाईकर्मियों की फौज

नगर निगम में लगभग सात हजार सफाई कर्मचारियों की फौज है। इनमें लगभग 2500 नियमित, 1500 नगर निगम सदन से संविदा पर नियुक्त व 3000 कार्यदायी संस्था के हैं। इतनी बड़ी फौज के बावजूद 110 वार्डों को साफ करने में नगर निगम के पसीना छूट रहा है। सड़कों पर न तो ठीक से झाड़ू लग पा रही है और न ही नालियों की सफाई। जगह- जगह कूड़े के ढेर व बजबजाती नालियां शहर की पहचान बनती जा रही है। पिछले साल स्वच्छता की रैंकिंग में 269वें स्थान पर आने के पीछे सबसे बड़ा कारण यही रहा।

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यह स्थिति तब है जब इनके जिम्मे सिर्फ झाड़ू लगाना व नालियों की सफाई है। घर-घर कूड़ा उठाने के लिए एक अलग संस्था ईको ग्रीन लगाई गई है। वह लोगों से अलग यूजर चार्ज वसूल रही है। नगर निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों मिलीभगत से जितने कर्मचारियों का भुगतान हो रहा है उतने कर्मचारी फील्ड पर तैनात नहीं है। इसकी कई बार पोल भी खुल चुकी है।

सफाई को लेकर सरकार की सख्ती हुई तो कई मामले पकड़ में आना शुरू हुए। कुछ दिन पूर्व इस्माईलगंज द्वितीय वार्ड में एक कर्मचारी अपनी पत्नी की जगह ड्यूटी कर रहा था, जबकि उसकी तैनाती गोमतीनगर में थी। अकेले इंदिरानगर में एक संस्था 20 कर्मचारियों की जगह 10 की आपूर्ति कर रही थी। मामला उछला तो संस्था से लगभग छह लाख की वसूली हुई थी। यही हाल लगभग सभी जोन में संस्था में लगाए गए कर्मचारियों का है।

सारी तकनीकी हो गई फेल

कार्यदायी संस्थाओं की धांधली रोकने के लिए चेक के माध्यम से भुगतान की व्यवस्था बनाई गई। इसके अलावा बायोमैट्रिक हाजिरी फिर टै्रकिंग वॉच की व्यवस्था भी लागू की गई। पार्षदों से कर्मचारियों की उपस्थिति का प्रमाण पत्र भी लिया गया। इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश पर शपथ पत्र भी लिया गया। इन सबके बाद भी सुधार नहीं दिख रहा है।

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