शैलेन्द्र यादव
- 50 करोड़ के सालाना नुकसान पर हुडको से क्यों लिया जा रहा कर्ज
- राष्ट्रीयकृत बैंक हुडको से कम ब्याज दरों पर दे सकती है कर्ज
- अभी तक पंचम एवं छठे वेतनमान का अवशेष एरियर का भुगतान नहीं हुआ
लखनऊ। कामयाबी के शिखर पर काबिज राजकीय निर्माण निगम सरकारी फरमान से बेहाल है। सरकार के इस फरमान के मुताबिक, निर्माण निगम को अपने कार्य के विपरीत सडक़ निर्माण के लिये हाउसिंग एवं अर्बन डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन से 2600 करोड़ रुपये का कर्ज लेकर लोक निर्माण विभाग को देना है। निगम पर थोपा गया यह निर्णय निगम कर्मचारियों को रास नहीं आ रहा है। बीते कुछ दशकों में विभिन्न राज्य सरकारों की वादाखिलाफी से बदहाली के सागर में गोते लगाने को मजबूर हुये सार्वजनिक क्षेत्र के दर्जनों उपक्रमों की स्थिति देख इन्हें निगम के भविष्य की चिंता सता रही है। इन्हें डर है कि भविष्य में यह कर्ज कहीं निगम की बदहाली का मर्ज न बन जाये।
राज्य सरकार के निर्णय के मुताबिक, सरकारी व गैर सरकारी भवनों का निर्माण करने वाला राजकीय निर्माण निगम अपने कार्य के विपरीत 2600 करोड़ का कर्ज सडक़ बनाने के लिये मंहगी ब्याज दरों पर हुडकों से लेगा और लोक निर्माण विभाग को दे देगा। सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीयकृत बैंकों की ब्याज दर 8.5 से 9 फीसदी तक है, जबकि हुडको की ब्याज दर 10 फीसदी है। ऐसे में राष्ट्रीयकृत बैंकों को दरकिनार कर हुडको से कर्ज लेना कितना जायज है।
जानकारों की मानें तो कर्ज लेने के लिये पहले राजकीय निर्माण निगम ने टेंडर जारी किये थे, जिसमें कई राष्ट्रीयकृत बैंकों सहित निजी बैंकों ने टेण्डर भी डाले। इसी बीच हुडको से कर्ज लेने की सरकारी मंशा पर निगम ने बैंकों के टेंडर शासन के पास इस अनुरोध के साथ भेजे कि वह टेंडर खोल कर कम ब्याज दर वाली बैंक का चयन करे। लेकिन, शासन ने उन्हें बिना खोले ही निगम को वापस कर दिया। तब से यह टेंडर निर्माण निगम में धूल खा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण कर्मचारी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष उमाशंकर ने बताया निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों को अभी तक पंचम एवं छठे वेतनमान का अवशेष एरियर का भुगतान नहीं हुआ है, जबकि निगम सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार 207 करोड़ का लाभ अर्जित करने वाला प्रदेश का पहला सरकारी उपक्रम है। ऐसे में निर्माण निगम पर 2600 करोड़ का कर्ज लेकर लोक निर्माण विभाग को देने का दबाव बनाना निगम और कार्मिकों दोनों के भविष्य के लिये घातक होगा।
ऐसी कौन से दैवीय अथवा आर्थिक आपदा आ गयी जिससे निगम को 2600 करोड़ का कर्ज लेने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है। इस कर्ज का वार्षिक ब्याज 291 करोड़ होगा। निगम अपने संसाधनों से इसकी अदायगी किसी भी स्थिति में नहीं कर पायेगा और निगम बंदी की कगार पर पहुंच जायेगा। इससे 4000 परिवारों को भुखमरी का दंश झेलना होगा।
उमाकान्त, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण कर्मचारी संघर्ष मोर्चा
कर्मचारी संघर्ष मोर्चा ने सूबे के राज्यपाल, मुख्यमंत्री और प्रबंध निदेशक को इस सरकारी फरमान के खतरे से अवगत भी कराया। शासन स्तर पर हुये पत्राचार में संघर्ष मोर्चा को कागजी आश्वासन तो जरूर मिले। पर, शासन स्तर से अब तक इस पत्राचार के सार्थक परिणाम नहीं मिले हैं। संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष ने कहा उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम प्रदेश सरकार के नियंत्रण में जरूर है पर सरकार निगम को किसी कार्य के लिये सीधे बजट नहीं देती है। सरकार निगम को सरकारी विभागों में निर्माण कार्य कराने के लिये कार्यदायी संस्था नामित करती है।
उन्होंने बताया निर्माण कार्य कराने पर ग्राहक से मिलने वाले 12.50 प्रतिशत सेन्टेज चार्ज से निगम अपने समस्त व्यय करता है। साथ ही लाभांश से 11 प्रतिशत अंशदान सरकार को देता है। निगम किसी भी कार्य को कराने के लिये न तो सरकार से कोई ऋण लेता है और न ही अन्य किसी वित्तीय संस्था से ऋण प्राप्त करता है। निगम ग्राहक द्वारा संबंधित कार्य का धन उपलब्ध कराने पर ही निर्माण कार्य प्रारम्भ करता है। ऐसे में हुडकों से 2600 करोड़ का कर्ज लेकर लोक निर्माण विभाग को देना निगम की कार्यप्रणाली, कंपनी एक्ट और आरबीआई गाइड लाइन के विरुद्ध है।
उन्होंने बताया हुडको की ब्याज दर राष्ट्रीयकृत बैंकों से अधिक है। ऐसे में हुडको से कर्ज लेने में सरकार को ब्याज में ही लगभग प्रतिवर्ष 50 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने अवस्थापना सुविधाओं के विस्तार के लिये वित्तीय वर्ष 20147-18 में लोक निर्माण विभाग, आवास एवं शहरी नियोजन विभाग, नगरीय रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन विभाग, ग्राम्य विकास विभाग, ऊर्जा विभाग तथा औद्योगिक विकास विभाग के प्रशासनिक नियंत्रणाधीन निगमों, संस्थाओं और प्राधिकरणों को 16,580 करोड़ का कर्ज लेने का फरमान सुनाया है।
सूबे के त्वरित विकास के नाम पर लिये जाने वाले इस कर्ज में 6100 करोड़ का कर्ज लोक निर्माण विभाग के नियंत्रण में आने वाले उपक्रम सेतु निगम, निर्माण निगम और उपसा को लेना है। यह संस्थायें कर्ज लेकर पीडब्ल्यूडी देंगी। इससे पीडब्ल्यूडी की माली हालत तो सुधरेगी, पर भविष्य में यदि अपट्रान प्रकरण में अपनाई गई सुस्त व उपेक्षित कार्य पद्धति राज्य सरकार ने अपनाई तो इन निगमों की हालत खराब होनी तय है।
बीते कुछ दशकों में तत्कालीन राज्य सरकारों ने कई निगमों को अपनी गारंटी पर विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से कर्ज दिलाया। पर, उस कर्ज की अदायगी में निगमों को सरकार का साथ नहीं मिला। नतीजतन, निगम बंद हो गये या बंदी की कगार पर पहुंच गये हैं। ऐसे में इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में राजकीय निर्माण निगम के साथ ऐसा नहीं होगा।
इं. हरिओम शर्मा, महासचिव, ग्रेजुएट इंजीनियर्स एसोसिएशन
निगमों का गम कभी न हुआ कम
सूबे में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों व निगमों की दुर्दशा छिपी नहीं है। यह निगम जब कामयाबी के शिखर पर होते हैं, तो राज्य सरकारें इन पर बखूबी अपना हक जताती आई हैं। पर, सार्वजनिक क्षेत्र के यही उपक्रम जब बदहाली के सागर में गोते लगाने का दंश झेलने का विवश हुये तो विभिन्न राज्य सरकारों ने इनकी सुध नहीं ली। अपट्रान, यूपीडीपीएल, यूपी एग्रो सहित दर्जनों निगमों की बदहाली इसका प्रमाण है।
…तो नहीं मिलेगा महंगाई भत्ता
सार्वजनिक उद्यम अनुभाग-1 द्वारा निर्गत आदेश के मुताबिक, जिन सार्वजनिक उद्यमों ने राज्य सरकार की गारण्टी पर वित्तीय संस्थाओं से ऋण लिया है और उस ऋण की वापसी में उन्हें डिफाल्ट किया गया है उनके कार्मिकों को मंहगाई भत्ता तब तक अनुमन्य नहीं होगा जब तक ऋण की वापसी का भुगतान नियमित न हो जाये और डिफाल्ट की स्थिति समाप्त न हो जाये। इसके मुताबिक संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष ने चिंता व्यक्त करते हुये कहा भविष्य में निगम में मंहगाई भत्ता और 7वां वेतनमान मिलने की संभावना न के बराबर है।
कैसे मिलेगा 7वां वेतनमान
राजकीय निर्माण निगम में 5वें वेतनमान का दस साल का और छठें का छह साल का एरियर बकाया है। 7वें वेतनमान से वंचित निर्माण निगम के कार्मिकों का तर्क है कि अगर 2600 करोड़ रुपये का यह कर्ज लिया गया तो निगम की बैलेंस शीट घाटे में आ जाएगी और फिर नफे-नुकसान के आधार पर वेतनमान तय करने वाली इम्पावर्ड कमेटी सातवें वेतनमान का लाभ देने में बाधक बन जायेगी।
लोक निर्माण विभाग के इन निगमों को लेना है 6100 करोड़ का कर्ज
सरकार की मंशा के अनुरुप लोक निर्माण विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में आने वाले उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को 2600 करोड़, उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग प्राधिकरण को 2500 करोड़ और उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम को 1000 करोड़ का कर्ज लेना है। यह निगम 6100 करोड़ का कर्ज लेकर आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोक निर्माण विभाग को मालदार करेंगे। कर्ज के लिए राज्य सरकार गारंटी लेगी। वहीं कर्ज के ब्याज की अदायगी के लिए लोक निर्माण विभाग के बजट में व्यवस्था की जायेगी।
आरबीआई की गाइड लाइन के अनुसार कर्ज लेकर दूसरे को देने का प्रावधान नहीं है। कम्पनी एक्ट के तहत निगम कर्ज सिर्फ अपने कामकाज के लिये ही ले सकते हैं, कर्ज लेकर किसी और विभाग को नहीं दिया जा सकता। निगम कर्मचारियों से सरकार हमेशा छलावा करती रही है। आखिर हुडकों से महंगी ब्याज दरों पर कर्ज क्यों लिया जा रहा है।
इं. एसडी द्विवेदी, अध्यक्ष, डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ
गवर्नर की मिल चुकी मंजूरी
अपर मुख्य सचिव सदाकांत ने 22 अगस्त को पीडब्ल्यूडी के विभागाध्यक्ष को पत्र लिख जानकारी दी कि हुडको से 6100 करोड़ का कर्ज लेकर लोक निर्माण विभाग के कार्यों पर खर्च किये जाने की राज्यपाल द्वारा स्वीकृति मिल गई है। पत्र में कहा गया है कि वित्त विभाग से लिये गये निर्णयों व हुडको द्वारा मिली प्रशासनिक मंजूरी के तहत कर्ज पीडब्ल्यूडी के अधीन तीन संस्थाओं द्वारा लिया जाएगा।
निर्माण निगम में विरोध शुरू
सरकार के इस निर्णय का राजकीय निर्माण निगम में विरोध शुरू हो गया है। डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ के महासचिव एसडी द्विवेदी का कहना है कि इसका असर निगम पर पड़ेगा। फायदे में चल रहे निर्माण निगम और सेतु निगम घाटे में चले जाएंगे। कर्ज लेकर उसे हस्तांतरित करना भारतीय रिजर्व बैंक की गाइड लाइस के खिलाफ है। जब सभी विभागों में ई-टेंडङ्क्षरग के आदेश हो गये हैं, तो कर्ज लेने के लिये बैंकों से ई-टेंडरिंग क्यों नहीं करवाई जा रही है। आखिर मंहगी ब्याज दरों पर कर्ज क्यों लिया जा रहा है।