- चौकीदारों की माली हालत बेहद खराब - बढ़े अपराध फिर भी याद न आये अंधेरी गलियों में नजर रखने वाले - घटती संख्या के चलते शहरों से ज्यादा गांवों के हालात खराब धीरेन्द्र अस्थाना
लखनऊ। कुछ साल पहले तक हम आप निश्चिंत होकर सो जाया करते थे, क्योंकि हमारे कानों में आवाज आती थी जागते रहो… जागते रहो…। लेकिन जब से ऐसी आवाज आना बंद हुई है तब से रातों की नींद हराम हो चुकी है। अगर आप भी कुछ साल पीछे चलेंगे तो याद आयेगा कि हां रात में कुछ ऐसी व्यवस्था थी, जिसकी आवाज सुनकर हम निश्चिंत हो जाते थे और चैन की नींद सो जाया करते थे। वो रात में पैदल आता था और प्रत्येक दरवाजे पर जागते रहो- जागते रहो चिल्लाकर आगे बढ़ जाता था। हम उसका चेहरा तब देख पाते थे, जब वह महिने की शुरुआत में चन्द पैसों के लिये दिन में दरवाजे-दरवाजे पहुंचता था। आज वो कहां विलुप्त हो गए? बिजनेस लिंक ने करीब एक महीने तक इसकी पड़ताल की तो पता चला कि शहर में एक आदमी भी नहीं, जिसने ये कहा कि उसके घर के बाहर चौकीदार आता है और रात में वे चैन की निंद सो पाते है।
लंबी खोज के बाद कुछ जानकारियां हासिल हुई कि कुछ महीने पहले लखनऊ जिला प्रशासन ने ग्राम चौकीदारों के खाली पदों को भरने के लिए गृह विभाग से सिफारिश भी की थी, लेकिन नतीजा सिफर रहा। हाल ही में ग्रामीण क्षेत्रों में क्राइम का ग्राफ बढ़ा तो पुलिस और जिला प्रशासन को फिर इस भर्ती की याद आई थी। यही नहीं डीएम की अध्यक्षता में बैठक के दौरान चौकीदारों के खाली पदों को भरने की चर्चा हुई। लेकिन योजना पर किसी आलाधिकारी ने सुचारू रूप से कार्य ही नहीं किया। सूत्रों के मिली जानकारी के मुताबिक जिला प्रशासन ने गृह विभाग से इनके खाली पदों को भरने की सिफारिश की थी। यही नहीं पुलिस अफसरों को भी ग्राम चौकीदारों के साथ बेहतर तालमेल बिठाने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया गया था। एक ग्राम चौकीदार को हर महीने 1500 रुपये वेतन मिलता है। प्रदेश सरकार की तरफ से इन्हें एक साईकिल और एक टॉर्च भी दी गई है। लेकिन फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में भी ये पूरी तरह गायब हो चुके है। बात शहरों की करे तो कुछ खास कोठियों तक चौकीदार सीमित है। शहर की गलियों की सुरक्षा पहले इनके हवाले ही रहती थी और ये मुस्तैदी से चन्द पैसे से कमाते थे और अपराध काफी नियंत्रण था। हालांकि चौकीदारों की माने तो उनकी विलुप्त होने का कारण साफ है कि सरकारों ने उनके पर कोई ध्यान नहीं दिया और जो गली- मोहल्लों में निजी चौकीदारी करते थे, अपराध होने पर पुलिसिया डंडा अलग झेलने को मजबूर होते थे। यूपी में करीब १ लाख चौकीदारों के अच्छे दिन आ सकते हैं। लेकिन सरकार की रूचि और कायरता के चलते इनका उद्धार न हो सका। ये लोग लंबे समय से चतुर्थ श्रेणी दर्जे के लिए आंदोलन भी करते रहे हैं। जबकि बिहार में इन्हें चतुर्थ श्रेणी दर्जा प्राप्त है और गुजरात में भी राज्य कर्मचारी का दर्जा मिला हुआ है। चौकीदारों का आरोप है कि उत्तर प्रदेश सरकार ग्रामीण चौकीदारों के पेट पर लात मार रही है। इस तरह सरकार चौकीदारों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। वेतन तय न करके राज्य सरकार ने मानदेय पर रखा है। इससे चौकीदारों को दो जून की रोटी तक नसीब नहीं हो पाती है। थानों पर उन्हें जब चाहे तब ड्यूटी कराई जाती है, लेकिन इस बारे में विचार नहीं किया जाता है। चौकीदारों ने राज्य कर्मचारी का दर्जा देने और प्रतिमाह का मानदेय 6061 रुपया करने की मांग की है। जिससे उनका जीवन भी हो सके।
मानदेय बढ़ाने का था प्रस्ताव
– ग्रामीण चौकीदारों का मानदेय बढ़ाने से पिछले साल वित्त विभाग ने इनकार कर दिया था।
– जानकारी के मुताबिक गृह विभाग ने 2015- 16 के अनुपूरक बजट में चौकीदारों को मानदेय 100 रुपए प्रतिदिन करने का प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजा था।
– वित्त विभाग ने 10 अगस्त 2015 को वित्तीय नियमों का हवाला देते हुए ग्रामीण चौकीदारों को 100 रुपए प्रति माह की दर से मानदेय भुगतान किए जाने से इनकार करते हुए कहा था कि इसके लिए बजट व्यवस्था किए जाने का औचित्य प्रतीत नहीं होता।
139.10 करोड़ का अतिरिक्त बोझ
तब वित्त विभाग ने कहा था कि ग्रामीण चौकीदारों को 100 रुपए प्रतिमाह मानदेय दिए जाने से बजट में 139.1040 करोड़ व्यवस्था कराया जाना समीचीन प्रतीत नहीं होता, लेकिन उसके बाद एक बार फिर पूर्व चीफ सेके्रटरी आलोक रंजन ने इस पर प्रमुख सचिव गृह से रिपोर्ट भी मांगी थी, लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ सका।
यूपी में 1 लाख चौकीदार
ग्रामीण चौकीदार यूनियन के जितेन्द्र यादव की माने तो यूपी में लगभग एक लाख चौकीदार कार्यरत हैं। इसके अलावा ढेर सारी ग्राम सभाओं के अलग होने से नई ग्राम सभाएं बनी हैं। इस तरह प्रदेश में लगभग एक लाख २० हजार चौकीदारों के पद हैं। यदि सरकार ध्यान दे तो इस व्यवस्था में काफी बदलाव की दरकार है और इससे अपराध को रोकने में कामयाबी बेहतर तरीके से मिल सकती है।
चौकीदारों की खास बातें
– पुलिस एक्ट के अनुसार, चौकीदारों का नियुक्ति प्राधिकारी जिलाधिकारी होता है।
– ग्रामीण चौकीदार गांव और थानों के बीच पुलिस की मदद के लिए अंग्रेजों के जमाने से काम करते आए हैं।
– ये पुलिस की गांव की कानून-व्यवस्था से संबंधित सूचनाएं देते हैं।
उपेक्षा का शिकार
वर्तमान में यूपी में चौकीदारों की हालत बंधुआ मजदूरी जैसी है। 50 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी के हिसाब से चौकीदार काम करता है। महंगाई बढऩे से कई परेशानी सामने खड़ी हो गई है। कई परिवार भुखमरी के कगार पर आ गए हैं। चौकीदारों की मांग है कि बिहार के तर्ज पर यूपी के सभी ग्रामीण चौकीदारों को चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी मानते हुए राज्य कर्मचारी का तत्काल दर्जा दिया जाए। इसके अलावा शारीरिक दुर्घटना बीमा कराए जाने, ग्रामीण चौकीदारों को जाड़ा, गर्मी और बरसात में रहने के लिए अलग से कमरे की व्यवस्था करने, चौकीदारों को साइकिल, टार्च और रिपेयरिंग का पैसा खाते में भेजने की मांग की है। चौकीदारों का कंप्यूटराइज पहचान पत्र बनाया जाए। इसके साथ ही मैनुअल के अनुसार दिन में कार्य कराया जाए।
सुरक्षा पर लखनऊ बेहाल
थाना गांव चौकीदार खाली पद
बीकेटी 59 46 13
इटौंजा 66 63 03
मलिहाबाद 105 60 45
माल 81 55 26
काकोरी 73 40 33
मोहनलालगंज 53 41 12
गोसाईंगंज 109 48 61
नगराम 47 47 0०
निगोहां 53 46 ०7
सरोजनीनगर 15 10 ०5