- तीन साल पहले ही दबा दी गईं थी अवैध निर्माण की 100 फाइलें
- कई फाइलें गुम होने से पूरी नहीं हुई इंजीनियरों के खिलाफ जांच
- आवासीय प्लॉटों पर तेजी से खुल रहीं दुकानें और होटल
- मानक पूरे न पार्किंग की जगह फिर भी एलडीए कर रहा अनदेखी
- सडक़ पर खड़े होते हैं वाहन, लगता है भीषण जाम
लखनऊ। जब चारबाग के होटल में लगी आग में छह मौतें हो गई, प्रशासनिक अमला तब कुंभकर्णी नींद से जागा। अब अवैध निर्माणों की जांच तेज हो गई है। ऐसी ही कवायद तीन साल पहले भी हुई थी। शासन के निर्देश पर गठित पांच सदस्यीय कमिटी ने अवैध निर्माण में इंजिनियरों की भूमिका की छानबीन शुरू की, लेकिन फाइलें न मिलने से जांच पूरी नहीं हो सकी। लिहाजा, कुछ दिन बाद जांच बंद हो गई और अवैध निर्माण के जिम्मेदार इंजीनियर बच गए। अब एक बार फिर ऐसे जिम्मेदार इंजीनियरों और पहले जारी नोटिसों का ब्योरा खंगालना शुरू कर दिया है।
साल 2015 में शहर में अवैध निर्माण वाले भवनों की दो सूची तैयार की गई थी। पहली सूची में 52 और दूसरी सूची में 48 भवन थे। इन भवनों में अवैध निर्माण सामने आने के बाद नोटिस जारी किए गए थे, लेकिन एलडीए के तत्कालीन अफसरों ने कार्रवाई नहीं की। इस मामले में एलडीए के एक अफसर की रिपोर्ट का संज्ञान लेकर शासन ने जांच के लिए 20 अगस्त 2015 को पांच सदस्यीय कमिटी गठित की। तत्कालीन अपर आवास आयुक्त आरपी सिंह के नेतृत्व में बनी कमिटी में हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी आरके अग्रवाल व एसके श्रीवास्तव समेत पांच लोग शामिल थे। कमिटी की प्राथमिक जांच में ही कई इंजीनियरों की गर्दन फंसती नजर आ रही थी। कमिटी ने अवैध निर्माण वाली इमारतों की फाइलें खंगालनी शुरू की।
तत्कालीन वीसी सत्येन्द्र सिंह ने फाइलें कमिटी के सदस्यों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी तत्कालीन एई अनूप शर्मा को सौंपी थी। जांच कमिटी से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि उस समय जिम्मेदार अफसरों ने जांच में सहयोग नहीं किया। कमिटी को आधी-अधूरी फाइलें ही दी गईं। इस कारण जांच पूरी नहीं हो सकी और इंजिनियर बचने में कामयाब हो गए। सूत्रों के मुताबिक, इस मामले में इंजिनियरों की भूमिका सामने आती तो एलडीए के कई अफसरों की भी गर्दन फंसती। फिलहाल, एलडीए वीसी पीएन सिंह ने उन सभी फाइलों का ब्योरा तलब कर कार्रवाई शुरू करवा दी है, जिन भवन स्वामियों को अवैध निर्माण का नोटिस तो भेजा गई, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई थी।
आवासीय इलाके में खुल गए हैं व्यावसायिक प्रतिष्ठान
एलडीए की अनदेखी के कारण कपूरथला चौराहे और आसपास के इलाके चारबाग-नाका जैसे हो गये हैं। आवासीय प्लॉटों पर कमर्शल इमारतें बनती जा रही हैं। कई जगह छोटे-छोटे होटल भी खुल गए हैं। इन जगहों पर न एलडीए के मानक पूरे हैं, न फायर सेफ्टी या किसी दूसरे विभाग के। ऐसे में यहां कोई छोटी-सी भी घटना चारबाग होटल अग्निकांड जैसा विकराल रूप ले सकती है। कपूरथला चौराहा शहर के रिहायशी इलाकों में शुमार है, लेकिन पिछले कुछ साल से यहां तेजी से कमर्शल इमारतें बनती जा रही हैं। हर दूसरे मकान में दुकान खुल गई है। दुकानें बढऩे से सडक़ें और सर्विस लेन धीरे-धीरे पाॢकंग में तब्दील होने लगी हैं। कपूरथला चौराहे से सेक्टर-डी अलीगंज तक कई जगह बहुमंजिला इमारतें बन चुकी हैं। इन इमारतों के बाहर गाडिय़ों का जमावड़ा लगता रहता है। इससे सर्विस लेन चोक रहती है। ऐसे अवैध निर्माण रोकने के लिए एलडीए में प्रवर्तन का पूरा दस्ता है, लेकिन मिलीभगत के कारण जिम्मेदार इन इलाकों में कार्रवाई नहीं करते।
नहीं है विभागों की एनओसी
कपूरथला चौराहे से सेक्टर-डी तक आवासीय से कमर्शल में तब्दील हुईं ज्यादातर इमारतों और दुकानों में न फायर सेफ्टी के मानक पूरे हैं, न विद्युत सुरक्षा निदेशालय से एनओसी ली गई है। ऐसे में धड़ल्ले से अवैध रूप से पनप रहीं इन इमारतों में कोई हादसा होने पर आपदा प्रबंधन के इंतजाम फेल होने की आशंका है।
शहर में ऐसे भवनों को चिह्नित किया जा रहा है, जहां रेजीडेंशियल आवासों में कमर्शल गतिविधियां चल रही हैं। सभी जगह कार्रवाई की जा रही है।
मंगला प्रसाद, सचिव एलडीए
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