- मुकदमा के बावजूद ठंडे बस्ते में राजधानी स्थित अमौसी औद्योगिक क्षेत्र में निर्माणा प्रकरण की जांच
- कानपुर के कल्याणपुर थाने में दर्ज है ट्रांसगंगा सिटी में भी निर्माण कार्यों में हुये फर्जी भुगतान की एफआईआर
- किसी भी दोषी पर नहीं पड़ी जांच की आंच, मुकदमा लिखाने के बावजूद निगम प्रशासन ने ओढ़ी खामोशी की चादर
- अब फिर पीटी जा रही भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई की ढपली
- क्या अनियमित तरीके से भू-उपयोग परिवॢतत करने वाले अफसर इस बार नपेंगे
लखनऊ। एक बार फिर चर्चा तेज है कि उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम में हुये भ्रष्टाचार के सूत्रधारों पर सख्त कार्रवाई होगी। घोटालों के दोषियों को अब दंड मिलेगा। उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण, यूपीसीडा में विलय के बाद शासन ने यूपीएसआईडीसी में हुए गोलमाल को लेकर एक बार फिर कार्रवाई के संकेत दिये हैं। इससे पूर्व भी कई बार शासन-प्रशासन निगम में हुये घोटालों के सूत्रधारों पर चाबुक चलाने का ऐलान कर चुका है। कुछ प्रकरणों में कई माह पूर्व एफआईआर भी दर्ज कराई गई हैं। पर, शासन-प्रशासन की इस कसरत के बावजूद निगम में भ्रष्टाचारमुक्त और पारदर्शी व्यवस्था की सेहत पर अब तक कोई खाश अन्तर दिखाई नहीं देता है।
उत्तर प्रदेश के नवनियुक्त मुख्य सचिव डॉ. अनूप चन्द्र पाण्डेय के पदग्रहण करने के साथ ही हुये प्रशासनिक फेर-बदल में उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम के प्रबंध निदेशक का दायित्व मुरादाबाद के आयुक्त रहे राजेश सिंह को सौंपा गया है। इसी के साथ एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है कि निगम में हुये घोटालों के दोषियों पर अब कार्रवाई होगी। जानकारों की मानें तो काॢमक अनुभाग ने नियमितीकरण में हुये फर्जीवाड़ा, भर्ती घोटाला, निर्माण कार्यों में हुई अनियमितताओं, भूखण्डों का समायोजन सहित बिना कार्य कराये चहेते ठेकेदारों को करोड़ों का भुगतान करने आदि जैसे गंभीर प्रकरणों से जुड़ी फाइलों को निकालना शुरू कर दिया है। ये फाइलें नवनियुक्त प्रबंध निदेशक और संयुक्त प्रबंध निदेशक के सामने रखी जायेंगी, जिन निर्माण कार्यो में अनियमितता की जांच पूरी नहीं हुई है, उन्हें जल्द पूरा करने के लिये कहा गया है।
जानकारों की मानें तो वित्तीय वर्ष 2008-09 में हुई भर्ती में भी घोटाला हुआ। फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे लोगों को भर्ती किया गया। जांच जरूर पूरी करने का दावा किया गया, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम के अब तक के कार्यकाल में निलंबित मुख्य अभियंता अरुण कुमार मिश्रा पर कई आरोप लगे हैं। मसलन, उच्च न्यायालय इलाहाबाद इन्हें बर्खास्त करने तक का निर्णय दे चुका है। पर, जोड़-तोड़ में माहिर मिश्रा हर बार स्टे का प्रसाद प्राप्त कर बचते ही नहीं रहे, बल्कि पहले से बड़े कारनामों को सुनियोजित रूट से अंजाम देते रहे। अरुण मिश्रा ही नहीं निगम के कई अधिकारियों व कर्मचारियों पर अत्यधिक गंभीर आरोप हैं। औद्योगिक क्षेत्रों में भू-उपयोग परिवर्तन करने का अधिकार उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण यूपीसीडा बोर्ड को है, लेकिन बगैर यूपीसीडा बोर्ड की अनुमति के अपनी मनमर्जी से कई भू-उपयोग बदले गये हैं। इतना ही नहीं कन्सलटेन्सी मद में चहेते ठेकेदारों को करोड़ों का मनमाना भुगतान भी किया गया है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम और घोटालों का साथ चोली-दामन की तरह रहा है। राज्य में सरकार चाहे किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, निगम के आलम्बरदारों की दिलचस्पी उद्योग स्थापना से अधिक घोटाले के उद्योग स्थापित करने में रहा है। एक नहीं, दर्जनों भ्रष्टाचार के प्रकरण इसके गवाह हैं। कई प्रकरण ऐसे हैं जो शासन-प्रशासन के सर्वोच्च पदों पर विराजमान महानुभावों के संज्ञान में थे और हैं भी। बावजूद इसके भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश और भ्रष्टाचारियों को जेल की सलाखों के पीछे डालने का दावा करने वाली सरकार के कार्यकाल में भी अब तक इन अनियमितता के शूरमाओं का बाल भी बाका नहीं हुआ, बल्कि भ्रष्टïाचारियों पर महज सख्त कार्रवाई करने की ढपली लगातार पीटी जाती रही। अब एक बार फिर से वहीं राग अलापा जा रहा है। अब यह देखना यह है कि क्या इस बार घोटाला सरताजों पर कार्रवाई होगी या फिर यह भी महज कोरा दावा साबित होगा।
मनमानी की पराकाष्ठ नियमितीकरण फर्जीवाड़ा
सूूत्रों की मानें तो 2010 से पहले जो भी प्रबंध निदेशक बना उसने अपनों को मस्टर रोल पर रखा। इस तरह मस्टर रोल पर 482 कॢमयों को तैनात किया गया। 2010 में ऐसे कॢमयों को नियमित करने के लिये शासन ने सूची मांगी, तो तत्कालीन प्रबंध निदेशक, संयुक्त प्रबंध निदेशक और काॢमक अनुभाग में तैनात अफसरों ने 482 की जगह 528 नाम भेज दिये। इन नामों को मंजूरी भी मिल गई। 2011 में जब नियमित करने का कार्य शुरू हुअ, तो पता चला कि जो 46 गलत नाम भेजे गये थे, उनमें चार ऐसे लोगों का नाम भी था, जो पहले से ही नियमित हो चुके थे। इतना ही नहीं इस सूची में तीन नाम ऐसे थे जिनकी मौत हो चुकी थी। कुछ काॢमकों के नाम सूची में दो-दो बार शामिल थे, तो कुछ ऐसे काॢमकों के नाम भी थे जो यूपीएसआईडीसी में कभी तैनात ही नहीं थे।
रणवीर की विदाई, राजेश बनें प्रबंध निदेशक
प्रदेश में नये मुख्य सचिव डॉ. अनूप चंद्र पांडेय ने कार्यभार ग्रहण करते ही शासन स्तर पर बड़ा प्रशासनिक फेरबदल किया है। 25 आईएएस अफसरों के तबादले में मुरादाबाद मंडल के आयुक्त राजेश कुमार सिंह को यूपीएसआईडीसी का नया प्रबंध निदेशक बनाया गया है। साथ ही प्रमुख सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास और प्रमुख सचिव रेशम, हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग का प्रभार सौंपा गया है। साथ ही प्रमोद कुमार पांडेय को संयुक्त प्रबंध निदेशक यूपीएसआईडीसी के साथ ही विशेष सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास, संयुक्त प्रबंध निदेशक पिकप, संयुक्त अधिशासी निदेशक उद्योग बंधु की जिम्मेदारी दी गई है। वहीं यूपीएसआईडीसी के निवर्तमान प्रबंध निदेशक रणवीर प्रसाद को सचिव नगर विकास के पद पर तैनाती दी गई है।