गिरीश पांडेय
लखनऊ। बात उन दिनों की है जब राम मंदिर आंदोलन शुमार पर था। कांग्रेस बिना अल्पसंख्यकों का नाराज किए मंदिर बनाने का श्रेय भी लेना चाहती थी। उस समय वीरबहादुर सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और महंत अवेद्यनाथ मंदिर आंदोलन के शीर्षस्थ नेताओं में से एक। संयोग से दोनों गोरखपुर के थे। दोनों के रिश्ते भी अच्छे थे। ऐसे में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कहने पर वीरबहादुर ने अवेद्यनाथ से मिलने की इच्छा जतायी। दोनों की लखनऊ में ही मुलाकात मुकर्रर हुई। वीरबहादुर सिंह सारा प्राेटोकॉल तोड़कर अपने सुरक्षा अधिकारी देवेंद्र राय को लेकर उनकी ही कार से महानगर स्थित पूर्व आयकर अधिकारी मोहन सिंह के घर पहुंचे। वहां अवेद्यनाथजी पहले से मौजूद थे।
वीरबहादुर ने बताया कि राजीव गांधी चाहते हैं कि बिना विवादित ढा़चे को क्षति पहुंचाएं सोमनाथ की तर्ज पर केंद्र सरकार अयोध्या में मंदिर बनाए। इस निर्माण से भाजपा और विश्व हिंदू परिषद से कोई मतलब नहीं होगा। इस प्रस्ताव पर अवेद्यनाथजी हंसे। पूछा कि इसका सारा श्रेय तो कांग्रेस को जाएगा। वीएचपी और भाजपा को क्या मिलेगा? तय हुआ कि अवेद्यनाथ इस बावत वीहिप के नेताओं से बात करेंगे, पर इसकी उन्होंने किसी से चर्चा तक नहीं की। बाद में देवेंद्र राय ने अपने कुछ पत्रकार साथियों को यह बात बतायी। मालूम हो कि छह दिसंबर 1992 में जब विवादित ढ़ॉचा ढहाया गया तो राय ही फैजाबाद के एसएसपी थे। बाद में त्यागपत्र देकर वह भाजपाई हुए। वह सुल्तानपुर से सांसद भी रहे।
दरअसल राम मंदिर आंदोलन के हर महत्वपूर्ण पडाव पर गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ की बेहद सशक्त भूमिका रही है। मंदिर आंदोलन के हर घटनाक्रम पर गाेरक्षपीठ की महत्वपूर्ण भूमिका रही। अजब इत्तफाक है कि पांच अगस्त को जब इसके निर्माण के लिए जब भूमि पूजन होगा तब उसी पीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के हाथ में उत्तर प्रदेश की कमान है। अगर इसको व्यापक संदर्भ में देखेंगे तो रामचिरत मानस की ये लाइनें राम काज कीन्हें बिना मोहि कहां विश्राम अयोध्या, मंदिर आंदोलन और वहां जन्मभूमि पर भव्य राममंदिर के निर्माण के संदर्भ में देखेगें तो रामचरित मानस की उक्त लाइनें गोरक्षपीठ पर हुबहू लागू होतीं हैं।
1949 में रामलला के प्रकटीकरण के समय मौजूद थे महंत दिग्विजयनाथ
मसलन 22-23 दिसंबर 1949 को जब विवादित ढांचे के पास रामलला का प्रकटीकरण हुआ तो पीठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर महंत दिग्विजय नाथ कुछ साधु-संतों के साथ वहां संकीर्तन कर रहे थे। यू तो राम मंदिर को लेकर कई संघर्ष हुए। सैकडों लोगों ने कुर्बानी दी, पर आंदोलन का असली राजनीतिकरण उसी समय से हुआ।
1986 में ताला खुलने के समय महंत अवेद्यनाथ थे अयोध्या में मौजूद
उनके शीष्य ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ 1984 में गठित श्रीरामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के आजीवन अध्यक्ष रहे। उनकी अगुआई में अक्टूबर 1984 में लखनऊ से अयोध्या तक धर्मयात्रा का आयोजन हुआ। उस समय लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में एक बडा सम्मेलन भी हुआ था। एक फरवरी 1986 में जब फैजाबाद के जिला जज कृष्ण मोहन पांडेय ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा अर्चना के लिए ताला खोलने का आदेश दिया उस समय भी अवेद्यनाथजी वहीं थे। इत्तफाकन जज साहब भी गोरखपुर के ही थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह भी गोरखपुर के ही थे।
22 सितंबर को 1989 दिल्ली में आयोजित विराट हिंदू सम्मेलन जिसमें जिसमें नौ नवंबर को जन्मभूमि पर शिलान्यास कार्यक्रम की घाेषणा की गई उसके अगुआ भी अवेद्यनाथजी ही थे। तय समय पर दलित समाज के कामेश्वर चौपाल से मंदिर का शिलान्यास करवाकर उन्होंने बहुसंख्यक समाज को सारे भेदभाव भूलकर एक होने का बडा संदेश दिया। हरिद्वार के संत सम्मेलन में उन्होंने 30 अक्टूबर 1990 से मंदिर निर्माण की घोषणा की। 26 अक्टूबर को इस बाबत अयोध्या आते समय पनकी में उनको गिरफ्तार कर लिया गया। 23 जुलाई 1992 को मंदिर निर्माण के बाबत उनकी अगुआई में एक प्रतिनिधिमंडल तबके प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिला था। सहमति न बनने पर 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली की धर्म संसद में छह दिसंबर को मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा की घोषणा कर दी। उसके बाद के घटनाक्रम से हर कोई वाकिफ है।
और मंदिर निर्माण के भूमिपूजन के समय सूबे के कमान योगीजी के हाथ
12 सितंबर को अवेद्यनाथ के ब्रहमलीन होने पर बतौर पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने इस जिम्मेवारी को बखूबी संभाली। पर नाथ पंरपरा में दीक्षित होने के पहले ही वह वह महंत अवेद्यनाथ से खासे प्रभािवत रहे। यही वजह है कि 1993 में मुरादाबाद में आयोजित धर्मसम्मेलन में जब अवेद्यनाथ दिल के दौरे के बाद एम्स दिल्ली में भर्ती थे तो योगी जी उस समय के अजय सिंह विष्ट खुद को रोक नहीं सके और मिलने पहंच गये। सितंबर 2014 में पीठाधीश्वर बनने के बाद दिए गये इंटरब्यू में उन्होंने कहा था कि गुरुदेव के सम्मोहन ने संन्यासी बना दिया। एक बार संन्यास ग्रहण के बाद उन्होंने अपने गुरु के सपनों का अपना बना लिया। उत्तरािधकारी, सांसद, पीठाधीश्वर और अब मुख्यमंत्री के रूप में भी।