- वैक्सिन कितने समय तक सुरक्षा देगी, बूस्टर डोज क्या होगा, तय नहीं
- मुकम्मल दवा के लिए करना होगा अभी साल-दो साल इंतजार
- कोरोना से डरें नहीं, सिस्टम पर भरोसा रखें और मानकों का पालन करें
- फोटो- राम उपाध्याय सीइओ लैक्साई लाइफ साइंस और मुख्य वैज्ञानिक ओम ओन्कोलॉजी
गिरीश पांडेय
लैक्साई लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड(हैदराबाद) के सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) और अमेरिका के ओएम ऑन्कोलॉजी के मुख्य वैज्ञानिक राम उपाध्याय मेडिसिनल केमेस्ट्री में पीएचडी हैं। वह एक दशक से अधिक समय तक स्वीडन (स्टॉकहोम) के उपशाला विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे हैं। इसके अलावा वह मैक्स प्लैंक जर्मनी (बर्लिन) और मेडिसिनल रिसर्च कॉउंसिल ब्रिटेन (लंदन) जैसी नामचीन संस्थाओं में भी काम कर चुके हैं। कई जरूरी दवाओं की खोज में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ऐसी दवाओं में से करीब पेटेंट हो चुकी हैं।लैक्साई और सीएसआईआर (कॉउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्री रिसर्च )से मिलकर कोविड की दवा खोजने पर भी काम कर रहे हैं। मूलत: आगरा के रहने वाले और अमेरिका, यूरोप एवं स्कैंडिनेवियन देशों में कंपनी के विस्तार के लिए स्वीडन में रह रहे राम अपने प्रदेश के लिए भी कुछ करना चाहते हैं। पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश।
कोरोना के बारे में आम लोगों की सोच
कोरोना के बढ़ते संक्रमण और इससे होने वाली मौतों से पूरी दुनिया के चिंतित हैं। लोग अपने, परिवार और सबको इंतजार है एक ऐसी दवा या वैक्सीन का जो कोरोना के संक्रमण के रोकथाम या संक्रमण होने पर मुकम्मल इलाज हो। दुनिया भर की सरकारें, उनके शोध संस्थान, दवा अनुसंधान से जुडी कंपनियां और इनसे जुड़े वैज्ञािनक इसके लिए दिन-रात एक किए हुए हैं।
लोगों में कोरोना से डर का जो माहौल उसके लिए क्या करें?
वैक्सिन या दवा न आने तक मान लें कि हमें कोरोना के साथ ही रहना है। लिहाजा सिस्टम पर भरोसा रखें। रोग को छिपाएं नहीं। उसका हर कदम आपकी सुरक्षा के लिए है। सिस्टम भी लोगों को यह अहसास दिलाए। पहले से गंभीर रोगों के नाते जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, उम्र दराज लोगों, बच्चों और एनिमिक (खून की कमीं) लोगों के लिए खास सतर्कता की जरूरत है। रोजी-रोटी के लिए जिनका बाहर जाना जरूरी है वह भी घर से कार्यस्थल तक ही खुद को सीमित रखें। सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइजेशन और अन्य मानकों का अनुपालन करें। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए डॉक्टर की सलाह पर आयुर्वेद, होम्योपैथ या एलोपैथ की दवाएं लें। विटामिन सी, डी और बी काम्पलेक्स ले सकते हैं।
वैक्सीन या दवा को लेकर क्या प्रगति है?
अगले साल की पहली तिमाही में वैक्सीन आ सकती है, पर यह कितनी कारगर होगी इससे बचाव की अविध कितनी होगी, यह नहीं कहा जा सकता। अगर वायरस के मौजूदा स्वरूप पर यह कारगर हुई भी तो स्वरूप बदलने पर इसका क्या असर होगा? वायरस के बदलते स्वरूप के अनुसार समय-समय पर इसको अपडेट करने में कितना समय लगेगा? ये सारे सवाल हैं।
रही बात दवाओं के खोज की तो एक वैज्ञािनक के रूप में जो चल रहा है उससे मैं संतुष्ट नहीं हूं। सबको बाजार में अपनी दवा लाने की जल्दी है। लिहाजा जो पहले से किसी वै िक्टरिया या वायरस के प्रभावी दवाओं में कुछ फेर-बदल कर नयी दवा लाने का प्रयास जारी है। ऐसे में मूल शोध पर कम लोगों का ही ध्यान है। ऐसी कुछ दवाएं भी अगले साल के पहले या दूसरी तिमाही में आ सकती हैं। मूल दवा जो वायरस के प्रोटीन और उसके आरएनए को टारगेट करे या वायरस के खोल को नष्ट कर दें, उसके आने में साल -दो साल तक का समय लग सकता है। उनकी कंपनी अमेरिका की कंपनी ए 2 ए के साथ मिलकर ऐसी ही दवा विकसित करने के लिए काम कर रही है। वायरस के बदलते स्वरूप के साथ इस दवा के साथ भी चुनौती आएगी पर ऐसा 10 या 20 साल बाद होगा।
आप उप्र के हैं। अपने अनुभव का लाभ यहां के लिए देना चाहेंगे?
मैं मूलत: मॉलिक्यूलर ऑन्कोलॉजी का विशेषज्ञ हूं। मेरी इच्छा उप्र में एक ऐसे शोध संस्थान के स्थापना की है जिसमें हर तरह के कैंसर की टारगेटेड थिरैपी की दवाओं पर शोध हो। साथ ही यह संस्थान वैक्टिरीया और वायरस पर भी शोध करे। तुरंत तो मैं वहां प्लाज्मा आधारित एक ऐसे एयर प्यूरीफायर की यूनिट लगाना चाहता हूं जो तय क्षेत्र में वायरस और वैक्टिरीया काे खत्म कर दे। सरकार के जिम्मेदार लोगों से मेरी इस संबंध में सकारात्मक बात भी हो चुकी है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्म निर्भर भारत अभियान और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की निवेश नीति का कायल हूं। ऐसे में अगर सरकार से सहयोग मिले तो अपने सूबे के लिए जो भी बन पड़ेगा करूंगा।
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