सूक्ष्म एवं मझोले उद्योग सर्वाधिक संभावना वाले क्षेत्र हैं। कम पूंजी और जोखिम में सर्वाधिक लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार इसी सेक्टर में मिला है। देश की जीडीपी में इस सेक्टर का योगदान करीब 29 फीसद है। उप्र में एमएसएमई की सर्वाधिक औद्योगिक इकाईयां हैं। कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन का सर्वाधिक असर इसी सेक्टर पर पड़ा, पर यही कोरोना उनके लिए स्वर्णिम अवसर भी लेकर आ रहा है। निवेशकों का भरोसा चीन से उठा है। कई निवेशक थाइलैंड, बांग्लादेश और भारत में निवेश की संभावना तलाश रहे हैं। उप्र के लिए इनको आकर्षित करने का एक सुनहरा अवसर हो सकता है। यह कहना है उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन का। यूपी कैडर से 1978 बैच के आईएएस अधिकारी आलोक रंजन उत्तर प्रदेश सरकार में मुख्य सचिव का पद संभालने के बाद 1 जुलाई 2016 को सेवानिवृत्त हुए। मुख्य सचिव रहते अपने कुशल नेतृत्व में प्रदेश के विकास को गति देने वाले आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे का रिकार्ड समय में निर्माण पूरा कराया। सिविल सेवा रैंकिंग में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने वाले श्री रंजन ने औद्योगिक विकास आयुक्त रहते हुए उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया। साथ ही कृषि उत्पादन आयुक्त सहित प्रदेश सरकार में कई महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन सफलता पूर्वक किया। आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए और दिल्ली विश्वविद्यालय से इकोनॉमिक्स की शिक्षा ग्रहण कर देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में अपनी अनुकरणीय सेवायें दी हैं। स्माल इंडस्ट्रीज मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन, सीमा के मुख्य संरक्षक का दायित्व संभाल रहे पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन का मानना है कि प्रदेश के औद्योगिक विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि प्रशासनिक अमला त्वरित निर्णय ले। बिजनेस लिंक के वरिष्ठ संवाददाता ने औद्योगिक विकास के कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर उनसे विस्तृत बातचीत की। पेश है वार्ता के महत्वपूर्ण बिंदु।
प्रश्न : लघु उद्योगों की बेहतरी के लिए केंद्र सरकार के विशेष वित्तीय पैकेज को आप कैसे देखते हैं?
उत्तर : हमारा औद्योगिक वातावरण पूरी तरह से स्माल और मध्यम इंडस्ट्री पर निर्भर है। उत्तर प्रदेश में इनकी सर्वाधिक संख्या है। देश की जीडीपी का करीब 29 प्रतिशत इस सेक्टर से मिलता है। ये सेक्टर रोजगार देने में सबसे आगे है। कोविड-19 महामारी की वजह से लॉकडाउन में ये उद्योग बंद हुए। अनलॉक-1.0 में अब धीरे-धीरे यह शुरू हो रहे हैं। इनके सामने समस्या प्रतिस्पद्र्धी बनकर आगे बढऩे और सुचारू संचालन की है। इसी मकसद से केंद्र सरकार ने पिछले दिनों इस सेक्टर के लिए विशेष वित्तीय पैकेज की घोषणा की है। इसके तहत केंद्र ने लघु, सूक्ष्म एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) के लिए तीन लाख करोड़ रुपये की क्रेडिट गारंटी दी है। यानी कि इतना क्रेडिट बैंकों या अन्य वित्तीय संस्थाओं के जरिए एमएसएमई सेक्टर की इकाईयों को मिलेगा। खुद में यह बहुत बड़ा कदम है।
प्रश्न :चाइना से जो कंपनियां अपनी औद्योगिक इकाईयां हटा रही हैं, उन्हें उत्तर प्रदेश में कैसे लाया जा सकता है?
उत्तर : उम्मीद है कि कोरोना के बाद चीन से इन्वेस्टमेंट हटेगा। निवेशक अपना पूरा निवेश चीन में रखने को इच्छुक नहीं हैं। वे वियतनाम, थाइलैंड, बांग्लादेश और भारत में विकल्प तलाश रहे हैं। इनमें से अधिकांश निवेश उप्र में आएं इसके लिए सरकार के पास यह सुनहरा मौका है। निर्भर करता है कि तुलनात्मक रूप से प्रदेश सरकार उनको कैसा वातावरण दे रही है, राजनीतिक स्थिरता कितनी है? बुनियादी सुविधाएं और नीतियां क्या हैं। इसको देखते हुए ही वह निवेश करते हैं। इसके लिए शासन-प्रशासन में त्वरित निर्णय लेने की क्षमता सर्वाधिक जरूरी है। औद्योगिक भूमि की अनुपलब्धता उप्र की बड़ी समस्या रही है। नोएडा की जमीन हो या यूपीएसआईडीसी की, वह औरों के मुकाबले महंगी पड़ती है। औद्योगिक भूमि सस्ती कैसे की जाय, इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
प्रश्न : उत्तर प्रदेश में बड़ा निवेश लाने में आपका कोई अनुभव?
उत्तर : जब सैमसंग को उप्र में लाने का प्रयास हो रहा था, तब उसके प्रबंधतंत्र ने बताया कि हमें तेलंगाना और तमिलनाडु भी बुला रहे हैं और वह जमीन भी बहुत सस्ती दे रहे हैं। ऐसे में त्वरित निर्णय लेकर एक रास्ता निकाला गया था और उसे कैबिनेट से मंजूर कराया गया था, जिस कारण सैमसंग का 15 हजार करोड़ का निवेश उत्तर प्रदेश में हुआ था। हमें इसी प्रकार की रणनीति अपनानी होगी। हर बड़े निवेशक से अलग-अलग बात करनी होगी। उन्हें क्या वातावरण चाहिए? क्या पॉलिसी चाहिए? ऐसे में प्रशासनिक निर्णय लेने की क्षमता बहुत आवश्यक होगी, क्योंकि पॉलिसी देने की बात आती है तो प्रशासनिक अधिकारी बाद में अपने ऊपर उंगली उठने या जांच से घबराने लगते हैं। अगर हालात ऐसे ही रहे तो हम चीन से हटने वाले निवेशकों को उप्र में नहीं ला पाएंगे। खुले मन से निर्णय लेकर निवेशकों को रियायतें और सहूलियतें देनी होंगी, जिससे वह उत्तर प्रदेश में अपना उद्योग स्थापित करें।
प्रश्न : एमएसएमई के लिए घोषित तीन लाख करोड़ के पैकेज को कैसे देखते हैं?
उत्तर : यह पैकेज अच्छा है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में विशेष सावधानी बरतनी होगी, क्योंकि अभी भी बैंकों में लोगों के प्रोजेक्ट लोन की मंजूरी के लिए लटके रहते हैं। ऐसा हुआ तो पैकेज का अधिकांश हिस्सा कागजों में ही रह जाएगा। भारत सरकार क्रेडिट गारंटी के लिए कह रही है। पर, मेरा प्रशासनिक अनुभव कहता है कि ऐसा नहीं है कि कोई लोन एनपीए हो जाएगा तो भारत सरकार उसका भुगतान करेगी। ऐसे में सरकार पड़ताल करवाती है कि लोन एनपीए क्यों हुआ? क्या बैंकों ने सही तरीके से प्रोजेक्ट रिपोर्ट का मूल्यांकन नहीं किया? अगर उसमें कोई कमी रह गई है तो यह बैंकों और उनके अधिकरियों पर सवाल खड़े करेगा। ऐसे में भरोसा कायम करना होगा। अधिकारियों को विश्वास दिलाना पड़ेगा। ये वातावरण पैदा करना पड़ेगा। तभी बैंक लोन स्वीकृत करेंगे। यदि वे घबराए हुए तरीके से काम करेंगे तो लोन मंजूर नहीं करेंगे। खासतौर से छोटे उद्योगों को तो बिल्कुल नहीं करेंगे। हमारे यहां 99 प्रतिशत माइक्रो इंडस्ट्रीज में 25 लाख से एक करोड़ की इन्वेस्टमेंट करते हैं, उन्हीं को पूंजी की सर्वाधिक जरूरत भी है। प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनवाने से लेकर लोन मंजूर कराने में इनको ही सर्वाधिक दिक्कत होती है। सरकार और बैंकों के सामने ये चुनौती है कि ऐसी कार्यप्रणाली बनाएं और उसे सही तरीके से लागू करें, जिससे भारत सरकार द्वारा घोषित विशेष वित्तीय पैकेज का उदï्देश्य पूरा हो सके।
प्रश्न : निवेशकों की दृष्टिï से क्या आवश्यक है?
उत्तर : निवेशक देखते हैं कि जिस जगह वह निवेश करने जा रहे हैं वहां इज ऑफ डूइंग बिजनेस का स्तर क्या है? स्वीकृतियां मिलने में कितना समय लगेगा। ये ऑनलाइन हैं या इनके लिए विभाग-विभाग चक्कर लगाना होगा। सिंगल विंडो सिस्टम है कि नहीं? सरकार कौन-कौन सी रियायतें दे रही है। इन्वेस्टर के मन में सबसे बड़ा डर ये होता है कि आज जिस नीति के तहत सहूलियत मिली हैं, कल को दूसरी सरकार आने पर वह नीति बदल देती है तो उसको वह सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। इससे लोग बहुत घबराते हैं। ऐसा उत्तर प्रदेश में ही नहीं, कई अन्य प्रदेशों में भी हुआ है कि एक सरकार ने किसी विशेष नीति के तहत निवेशकों को कुछ रियायतें देकर इन्वेस्टमेंट कराया। बाद में दूसरी सरकार ने वह सुविधाएं रोक दी। निवेशक कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाते रह गए। ये समस्या अत्यधिक गंभीर है।
प्रश्न : आपने कई सरकारों में कार्य किया है, आप वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया की कार्यशैली को कैसे देखते हैं?
उत्तर : जब से उत्तर प्रदेश में वर्तमान सरकार आई है, वह प्रदेश के विकास के लिए नित नए कदम उठा रही है। प्रदेश में औद्योगिक निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए निवेश अनुकूल नीतियों को लागू करने के साथ ही विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू किया जा रहा है। इन्वेस्टर समिट-2018 में हुए 4.68 लाख करोड़ रुपये के एमओयू और ग्राउंड बे्रकिंग सेरेमनी के दोनों संस्करणों के माध्यम से इसमें से आधे से अधिक निवेश को जमीन पर उतारना प्रदेश के विकास को और आगे ले जाएगा। उत्तर प्रदेश में पहली बार आयोजित हुए डिफेंस एक्सपो से रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में नई उम्मीदें जगी हैं।
प्रश्न : वैश्विक महामारी के इस दौर में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयासों को आप कैसे देखते हैं?
उत्तर : नि:संदेह उत्तर प्रदेश सरकार के नेतृत्व ने कर्मयोग का अनुकरणीय उदाहरण देश ही नहीं विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया है। प्रवासी कामगारों की सुरक्षित घर वापसी हो या उनके भरण-पोषण की जिम्मेदारी। श्रमिकों की स्किल मैपिंग कराकर उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने का प्रयास हो या फिर प्रदेश के 25 करोड़ निवासियों को चिकित्सकीय सुविधाएं मुहैया कराने की पहल, इन सभी में उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार का प्रयास प्रसंशनीय एवं अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय है।
प्रश्न : औद्योगिक निवेश के महाकुंभ इन्वेस्टर समिट-2018 को कैसे देखते हैं?
उत्तर : सरकार ने 4.68 लाख करोड़ के एमओयू किए हैं। अब उसकी सही स्थिति के लिए प्रशासनिक अमले को निर्णय लेना पड़ेगा। शीघ्रता से एक-एक एमओयू को अप्रूव करना होगा। तब ये पूरा इन्वेस्टमेंट धरातल पर उतरेगा। अगर ये फाइलें एक विभाग से दूसरे विभाग जाती रहेंगी। अनिर्णय की स्थिति होगी, तो ये फाइलों पर ही लम्बा चलता रहेगा। मैंने अपने प्रशासनिक अनुभव में देखा है कि नई पॉलिसी के बाद जब कोई प्रपोजल आता है तो विभाग अपनी-अपनी आपत्तियां करना शुरू कर देते हैं। वित्त विभाग अपनी बात कहता है, कोई दूसरा विभाग अपनी। ऐसी स्थितियों में त्वरित और प्रभावी निर्णयों से ही यह पूरा इन्वेस्टमेंट जमीन पर उतरेगा। एमओयू होना तो बहुत आसान है। पर, उनको जमीन पर उतारना उतना ही मुश्किल। ऐसे में एक समेकित निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।
प्रश्न : स्माल इंडस्ट्रीज मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन में आपकी नई भूमिका क्या है?
उत्तर : ये मेरा सौभाग्य है कि प्रदेश के एमएसएमई क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों के लिए कार्य करने वाले औद्योगिक संगठन स्माल इंडस्ट्रीज मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन (सीमा) ने मुझे अपना चीफ पैटर्न बनाया है। मेरा इसमें ये रोल रहेगा कि इनको मार्गदर्शन देता रहूं। सलाह देता रहूं। किस प्रकार उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाए। खासतौर से लघु उद्योगों को। किस प्रकार सरकार की योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ इन लघु उद्योगों तक पहुंचाया जाय? और विभिन्न औद्योगिक समस्याओं का समाधान कराने के लिए उन्हें सरकार तक पहुंचाया जाए। एक तरीके से हम पुल का काम करेंगे।
प्रश्न : उप्र में अधिक से अधिक निवेश आए इसके लिए कोई सुझाव?
उत्तर : निवेश के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक पूरी प्रक्रिया त्वरित गति से पूरी करनी होगी। इसके लिए प्रशासनिक क्षमता, दक्षता व इच्छाशक्ति की अत्यधिक आवश्यकता है।