बेगूसराय। लॉकडाउन से उत्पन्न हालात के कारण देश के विभिन्न शहरों से लाखों प्रवासियों के बिहार आ जाने के बावजूद अभी भी प्रवासी श्रमिकों के घर वापसी का सिलसिला कम नहीं रहा है। अंतर बस इतना हुआ है कि पहले लोग पैदल भी अपने घर की ओर चल पड़े थे और अब सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्पेशल ट्रेन के माध्यम से आ रहे हैं। हालांकि गांव में काम नहीं मिलने पर परदेस जाने का सिलसिला फिर तेज हो गया है। लेकिन सारे हालातों के मद्देनजर अभी भी दिल्ली, आसाम, मुंबई, राजस्थान एवं पश्चिम बंगाल से प्रवासी कामगारों और श्रमिकों के घर वापस आने वालों की संख्या अधिक है।
अब तो ढ़ेर सारे लोग प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महत्वाकांक्षी योजना आत्मनिर्भर भारत निर्माण के लिए अपने गांव आ रहे हैं। इस योजना के शुरू होने पर वर्षों से परदेस में रह रहे प्रवासी सब कुछ छोड़ कर गांव आ रहे हैं। किसी ने नौकरी छोड़ दी, तो किसी ने अपना दुकान बंद कर दिया। कई लोग तो अब यहां स्वरोजगार की संभावना देख गांव एवं समाज को उन्नत बनाने, प्रगतिशील बनाने तथा बिहार को सशक्त बनाने के लिए आ रहे हैं। आने वाले श्रमिक जो दर्द बयां करते हैं वह बता रहा है कि दिल्ली, मुंबई, राजस्थान, कोलकाता, पश्चिम बंगाल, असम आदि राज्य सरकार ने लॉकडाउन में भाषण के अलावा कुछ नहीं किया। मदद पहुंचाई भी तो अपने राज्य के स्थाई नागरिकों को।
जब बिहार के श्रमिक वहां बदहाल हो गए, रोटी पर पहाड़ टूट पड़ा, बड़ी संख्या में घर वापसी हुई तो वहां के उद्योगपति बेचैन हो गए। उन्होंने श्रमिकों को रोकने के लिए अधिक मजदूरी देने का प्रलोभन दिया, ढ़ेर सारी बातें की गई। लेकिन बिहार के श्रम साधकों ने जो जलालत झेलनी, वह भूल नहीं पा रहे हैं।
सोमवार की सुबह भी जब बेगूसराय स्टेशन से प्लेटफार्म संख्या-एक पर जब गुवाहाटी से चलकर मुंबई जाने वाली लोकमान्य तिलक टर्मिनल स्पेशल एक्सप्रेस ट्रेन रुकी तो पूर्वोत्तर के राज्यों घर आने वाले सैकड़ों श्रमिक और कामगार यहां उतरे। यहां से बस और निजी वाहन द्वारा उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों की ओर प्रस्थान किया। घर वापसी करने वालों की इस भीड़ में कई लोग ऐसे थे जिन्होंने असम में वर्षों से बसा-बसाया अपना सब कुछ छोड़ दिया। शंभू कुमार, अवधेश राय तथा रामू महतों गुवाहाटी के सदर बाजार में व्यवसाय करते थे। दुकान बंद हो गया और आने का कोई साधन नहीं था तो वहीं किसी तरह रह रहे थे।
लॉकडाउन समाप्त होने के बाद जब कोरोना का संक्रमण बढ़ने लगा तथा प्रधानमंत्री द्वारा गरीब कल्याण रोजगार अभियान एवं आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया गया तो लोगों ने भी अपना सब कुछ वहीं बेच दिया। सिर्फ जरूरी कपड़ा और बच्चों के लिए कुछ सामान लेकर घर आ गए। 1995 चमथा हाई स्कूल से इंटर पास करने वाले शंभू कुमार ने यहां रोजगार के लिए काफी कोशिश किया था। लेकिन जब काम नहीं मिला तो गुवाहाटी चले गए, उसी के गांव के रहने वाले अवधेश और रामू जनरल स्टोर तथा श्रृंगार का दुकान चलाते थे। इन लोगों ने शंभू की काफी मदद की तथा फल एवं जूस का ठेला लगवा दिया, अच्छी आय हो रही थी, तीनों एक जगह ही रह रहे थे। लेकिन लॉकडाउन के दौरान इन लोगों ने जो जलालत झेेेली, वहां की सरकार और प्रशासन की उपेक्षा से मनोबल टूट गया। यह आर्थिक ही नहीं शारीरिक और मानसिक रूप से ही परेशान हो गया।
इस बीच प्रधानमंत्री के विशेष अभियान की जानकारी मिलते ही सब कुछ बेच दिया और गांव आ गए। अब यहां तीनों मिलकर स्वरोजगार करेंगे, यहां लघु उद्योग शुरू करने का मन बना कर गांव आए हैं। शंभू ने बताया कि लघु उद्योग से हमारे परिवार ही नहीं, आसपास के लोगों को भी रोजगार मिलेगा। कम से कम सौ लोग इस रोजगार में लगेंगे तो एक हजार से अधिक लोगों को फायदा होगा। शंभू ने बताया कि हम बिहार के धरतीपुत्र, पूरे देश के श्रम नायक हैं। हम बिहारियों के श्रम शक्ति से पूूूरा देश विकसित हुआ है। लेकिन इस आफत में सबने हमें ठुकरा दिया-भुला दिया, अब कैसा अपनापन, अपना गांव-अपनी धरती जिंदाबाद।