शैलेन्द्र यादव
- वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने हुआ अवैध कब्जा
- पुलिस बनी भू-माफियाओं की मित्र, खड़े होकर कराया कब्जा
- कायस्थ छात्रावास की बेशकीमती जमीन पर अवैध कब्जा कर रहे चर्चित बिल्डर के पालतू गुर्गे
- बोले वजीरगंज थानाध्यक्ष पंकज सिंह, मामला राजस्व विभाग का निर्णय करेंगे जिलाधिकारी
- राज्यपाल, सीएम, डीजीपी, डीएम, एसएसपी और एसएचओ से गुहार, पर अब तक नहीं मिली राहत
लखनऊ। तुम लोग छात्र हो, हास्टल खाली कर दो। नहीं तो मार दिये जाओगे या फिर तुम्हारा नाम भू-माफियाओं की सूची में दर्ज हो जायेगा। यह डायलॉग किसी फिल्म के नहीं, बल्कि एंटी भू-माफियाा स्क्वायड का वादा कर उत्तर प्रदेश की सत्ता तक पहुंचने वाली योगी सरकार की राजधानी लखनऊ के नवीउल्ला रोड स्थित कायस्थ छात्रावास की बेशकीमती जमीन पर कब्जा करने वाले भू-माफिया की धमकी है। शहर के इस चर्चित बिल्डर ने हास्टल में रहने वाले छात्रों को यह धमकियां खुलेआम दी हैं, जिसकी रिकॉर्डिंग छात्रों के पास मौजूद है। नवीउल्लाह रोड स्थित कायस्थ छात्रावास के खेल परिसर में कब्जा करने वाले गुर्गों का जमावड़ा है। पर, यह गुर्गे ‘मित्र पुलिस’ को दिखाई नहीं देते।
राजधानी में कानून-व्यवस्था का इकबाल बुलंद करने वाले वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय के निकट स्थित कायस्थ छात्रावास परिसर को कब्जाने में दबंगों की गुंडागर्दी खुलेआम देखी जा सकती है। कायस्थ छात्रावास की इस समिति का पंजीकरण आज का नहीं, बल्कि वर्ष 1927 का है और वर्ष 2020 तक नवीनीकृत है। पर, बीते दिनों इस सोसाइटी से मिलती-जुलती नाम की दूसरी सोसाइटी और राजधानी के एक चर्चित बिल्डर के गठजोड़ ने हास्टल की जमीन पर टीन शेड लगाकर कब्जा कर लिया। विरोध करने पर छात्रों को पहले जगह खाली करने के लिए समझाया गया। फिर न मानने पर डराया-धमकाया गया। जब इससे भी बात न बनी तो पैसे का लालच और दबंगई का खौफ दिखाकर जबरन भगाया गया।
होगी सख्त कार्यवाही : पाठक
कायस्थ छात्रावास की जमीन पर हुए कब्जे के बाबत जब स्थानीय विधायक और प्रदेश के विधायी एवं न्याय मंत्री ब्रजेश पाठक से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने कहा, अवैध कब्जे को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। छात्रावास की जमीन पर कब्जा नहीं होने दिया जायेगा। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को तत्काल कार्रवाई करने को कहता हूं।
गौरतलब है कि राजधानी के नवीउल्ला रोड स्थित कायस्थ छात्रावास ‘दि हरगोविन्द दयाल कायस्थ सोसाइटी’ द्वारा संचालित है। इस सोसाइटी को पांच नवम्बर 1934 में पंजीकृत पट्टा द्वारा छह बीघा भूमि मिली थी। वर्ष 1934 के बाद इस भूमि पर 40 कमरे बनवाये गये, जिनमें लगभग 80 छात्र रह रहे हैं। जानकारों की मानें तो छात्रावास की जमीन हड़पने के लिए वर्ष 1982 में इस सोसाइटी के नाम से मिलती-जुलती दूसरी सोसाइटी ‘हरगोविन्द दयाल कायस्थ हॉस्टल सोसाइटी’ का पंजीकरण कराया गया। डिप्टी रजिस्ट्रार ने मिलते-जुलते नाम की वजह से रजिस्ट्रेशन एक्ट की व्यवस्था के तहत 12 फरवरी 2001 को इस समिति का पंजीकरण निरस्त कर दिया। निरस्त सोसाइटी के सचिव नरेश शंकर श्रीवास्तव ने उच्च न्यायालय से 28 फरवरी 2001 को स्थगनादेश प्राप्त किया, जो वर्तमान में भी विचाराधीन है। समिति रजिस्ट्रेशन का विवाद उच्च न्यायालय में लंबित है। इसमें समिति की सम्पत्ति का कोई विवाद नहीं है।
बावजूद इसके विवादित समिति के सचिव और उसके गुर्गों ने ‘दि हरगोविन्द दयाल कायस्थ हॉस्टल सोसाइटी’ द्वारा संचालित कायस्थ छात्रावास की भूमि पर टीनशेड की घेराबंदी करके कब्जा कर लिया। विडंबना है कि राजधानी की सडक़ों को अतिक्रमणमुक्त कराकर निर्बाध यातायात के लिए आवश्यक और सराहनीय अभियान में जुटे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कलानिधी नैथानी और जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा भू-माफियाओं के इस अतिक्रमण को रोककर कायस्थ छात्रावास के वजूद को बचाने में अब तक असमर्थ और असहाय बने हुए हैं।
बोले वजीरगंज थानाध्यक्ष ‘मैं व्हाट्सअप वाला दरोगा नहीं हूं’
कायस्थ छात्रावास की जमीन पर हुए कब्जे के बाबज जब प्रभारी निरीक्षक वजीरगंज पंकज सिंह से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने पहले इसे सिरे से खारिज कर दिया। कब्जे के साक्ष्य उनके व्हाट्सअॅप नम्बर पर भेजने के लिए नम्बर देने पर कहा, ‘मैं व्हाट्सअॅप वाला दरोगा नहीं हूं।’ कहना गलत न होगा कि दरोगा साहब तकनीकि और कानून- व्यवस्था के पालन दोनों में ही फिसड्डी हैं।