मधुर भट्ट
लखनऊ। हिंदुस्तान विश्व का इकलौता ऐसा देश है जहाँ 25 वर्ष तक के युवाओं की जनसंख्या 50% और 35 वर्ष तक की जनसंख्या लगभग 65% है, इस औसत से हिंदुस्तान विश्व का सबसे युवा देश है। युवा किसी भी देश की सबसे अमूल्य धरोहर होती है, क्योंकि किसी भी राष्ट्र के नवनिर्माण व पुनरुत्थान जैसे आमूलचूल परिवर्तन की ज़िम्मेदारी राष्ट्र के युवाओं के हाथों में होता है।
किसी भी राष्ट्र का भविष्य उस राष्ट्र के युवाओं के साथ ही उसके राजनैतिक बिरादरी की विचारधारा, दूरदर्शिता और योजनाओं के सफल क्रियान्वयन पर निर्भर करता है, जिसके लिए ज़रूरी है कि देश की सत्तारूढ़ दल अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध व विपक्ष सशक्त और ईमानदार हो। साथ ही विपक्ष में होने के बावजूद राष्ट्र की सुरक्षा और राष्ट्रहित जैसे मुद्दों पर सत्तासीन दल का नैतिक तौर पे सहयोग करने का जज़्बा रखना भी जरूरी है।
परन्तु वर्तमान राजनैतिक परिवेश में हिंदुस्तान के राजनैतिक दलों की स्थिति बिल्कुल ही विपरीत है। ज्यादातर राजनैतिक पार्टियां विचारधारा विहीन हो चुकी हैं और हर स्तर पर देशहित को दरकिनार कर अपने व्यक्तिगत लाभ/हानि के मानकों पर दूसरे दलों का सहयोग या विरोध करती नजर आती हैं। इस सोंच को बदलना होगा।
हमारे देश मे आज़ादी के 72 सालों में हजारों- लाखों करोड़ो की योजनाओं के बावजूद भी सत्तारूढ़ दल इस देश से ग़रीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, सड़क, बिजली, पानी, चिकित्सा, शिक्षा आदि जैसे मूलभूत समस्याओं का निराकरण नहीं कर पाई, जो कि प्रश्नचिन्ह है दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर।
दुनिया चाँद पर पहुँच गयी, कारखानों में मजदूरों की जगह स्वचालित मशीनों और रोबोट ने ले लिया, अंतर्देशीय चिट्ठी की जगह ई- मेल और वाट्सएप्प व मोबाइल फोन ने ले लिया। बच्चों के हाथों में क्रिकेट के बैट-हॉकी की जगह मल्टीमीडिया मोबाइल पर पबजी आदि जैसे खेलों ने ले लिया, पर साहब हमारी सरकारें आज भी हमारे नौनिहालों को प्राथमिक विद्यालयों में फटी टाट से बेंच-डेस्क पर नहीं ला सकी! प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा से ज्यादा मिड-डे मील (एक वक्त का घटिया व दोयम दर्जे की खिचड़ी) पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। और तो और किसी भी क्षेत्र में दिन ब दिन सुधार और तरक्क़ी का पैमाना होता है पर हमारे देश में शिक्षा जो कि समाज के निर्माण व मानव सभ्यता का सबसे अहम पहलू व जरूरत है यहां शिक्षकों की जगह उनसे कम क़ाबिल लोगों (शिक्षामित्रों) ने ले लिया है। अब सोचिये और मनन कीजिये हिन्दुतान का भविष्य, कहाँ जा रहे हैं हम?
वोटबैंक की राजनीति ने हमारे देश को खोखला कर दिया है। मिड-डे मील, मनरेगा जैसी योजनाएं देश के नौनिहालों को पढ़ाई से दूर कर रही हैं और गरीब मजदूरों को काहिल बनाकर उनके रीढ़ की हड्डी तोड़ रही हैं। बिडम्बना है इस देश में जो व्यापारिक घराना वयस्कों को शराब बेचती हैं उसी को हमारी सरकार ने नौनिहालों को अपराह्न का भोजन परोशने का काम भी दे रखा है जो कि एक संगठित लूट की तरफ़ इशारा करती है।
हमारे देश मे जनसँख्या का महामारी की तरह बढ़ना उस पर कोई नियंत्रण न होना, सही तरीके से जन गड़ना का न होना, देश में रोज़गार और बेरोजगार का सही आंकलन न होना, मानव प्रवर्जन/प्रवसन का सही आंकड़ा न होना (जिसका खामियाज़ा सरकार को अभी कोरोना के चलते मजदूरों के पलायन के रूप में देखने को मिला), युवाओं की उच्च शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण न होना जिसकी वजह से समुचित रोजगार न मिल पाना व युवाओं में स्वरोजगार के प्रति उदासीनता। ऐसे बहुत सारे ज्वलंत मुद्दे और समस्याएं हैं जिन पर न तो किसी भी राजनैतिक दल का ध्यान जा रहा है और न ही किसी दल के एजेंडे में शामिल है।
इन्ही समस्याओं और देश के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक भविष्य के ऊपर चिंतन-मनन के परिणाम स्वरूप युवा प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद जी को अपना मार्गदर्शक व संरक्षक मानकर “राष्ट्रीय युवा मंच” का गठन किया गया है।
हमारा मानना है कि देश का हर एक युवा साथी भगवान शिव के गले में सुशोभित माले के एक-एक मनके के समान है और ऐसे समस्त युवा साथियों को एक धागे में पिरोकर राष्ट्र के नवनिर्माण की कल्पना को यथार्थ रूप देना ही “राष्ट्रीय युवा मंच” का उद्देश्य है और उसके लिए हम पूरी तरह प्रतिवद्ध हैं।