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होम कंपोस्टिंग तो दूर, 5० फीसदी घरों से कूड़ा नहीं उठता

डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन व्यवस्था दे गई रैंकिंग को झटका, होली के बाद से कूड़ा उठान ठप

निगम के अफसर भी व्यवस्था को पटरी पर लाने में हुए विफल 

लखनऊ। नगर निगम प्रशासन की ओर से स्वच्छता सर्वेक्षण २०19 को लेकर दावा किया गया था कि इस बार शहर की रैंकिंग टॉप थ्री में जरूर आएगी। सर्वेक्षण समाप्त होने से तीन दिन पहले शहर ने सर्वेक्षण में शामिल पब्लिक फीडबैक बिंदु में इंदौर को पीछे कर नंबर एक रैंकिंग जरूर हासिल कर ली, इसके बाद पूरी उम्मीद जताई जाने लगी थी कि शहर टॉप थ्री में आएगा लेकिन जब परिणाम सामने आया तो शहर की रैंकिंग पिछले साल की रैंकिंग के मुकाबले छह स्थान नीचे खिसक गई, जिससे स्पष्ट हो गया कि निगम प्रशासन ने सिर्फ पब्लिक फीडबैक पर ध्यान दिया, जिसका नतीजा यह रहा है कि अन्य बिंदुओं पर शहर खासा पिछड़ गया और रैंकिंग में झटका लगा।

मजे की बात तो ये है कि शहर की व्यवस्था नित दिन बिगड़ती जा रही है। होली जैसे बड़े पर्व के बाद से राजधानी करीब ५० फीसदी घरों से कूड़ा कलेक्शन में लापरवाही बरती जा रही है। वहीं कई ऐसे एरिये भी प्रकाश में आये है, जहां तक ईकोग्रीन की पहुंच अभी भी दूर है।

हर बार हुए प्रयास फेल

निगम प्रशासन की ओर से एक अप्रैल 2018 से घरों से कूड़ा कलेक्शन की नई व्यवस्था लागू की गई। जिसमें प्रत्येक जोन के 5 वार्ड चिन्हित किए गए। पहले इन वार्डो में शत प्रतिशत घरों से कूड़ा उठान की व्यवस्था को मजबूत करना था। इसके बाद दूसरे चरण में फिर पांच से सात वार्ड लिए जाने थे। नई व्यवस्था तो लागू हुई, लेकिन चयनित पांच वार्डो में से शत प्रतिशत कूड़ा कलेक्शन नहीं हो सका। जिसके बाद पार्षदों ने निगम प्रशासन से इस संबंध में शिकायत दर्ज कराई थी। लेकिन नगर निगम प्रशासन की कौन सुनने वाला है, ये तो खुद वहां के अधिकारी भी नहीं जानते?

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गीले कचरे से होम कंपोस्टिंग में फेल

इंदौर को निश्चित रूप से नंबर वन ही आना चाहिए था और ऐसा हुआ भी। इसकी वजह यह है कि इंदौर में घरों से निकलने वाले गीले कचरे से होम कंपोस्टिंग का काम किया जाता है और लखनऊ में केवल दावे किये जाते रहे है। जिसकी वजह से इंदौर की सड़कों पर कचरा नजर नहीं आता है। अब अगर अपने लखनऊ की बात की जाए तो स्थिति यह है कि शत प्रतिशत घरों से कूड़ा कलेक्शन ही नहीं होता है। वर्तमान में महज ५० से ५5 फीसदी घरों से ही कूड़ा कलेक्ट किया जाता है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि गीले कचरे से होम कंपोस्टिंग दूर का सपना है।

पुराने लखनऊ के इलाके प्रभावित

शहर के पुराने इलाकों में अभी यह व्यवस्था पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो सकी है। इसके साथ ही शहर के बाहरी इलाके भी इस सुविधा से कटे हुए हैं। यहां के लोगों ने कई बार निगम प्रशासन से इस संबंध में गुहार भी लगाई लेकिन स्थिति में कोई खास सुधार होता नजर नहीं आया। पुराने लखनऊ के कई इलाके तो ऐसे भी जो तीन फीट की गलियों में बसे हुए है जहां आज तक कूड़े की उठान के लिए कोई पहुंच ही नहीं पाया है।

सिर्फ कागजों में योजना बनी

निगम प्रशासन की ओर से दावा किया गया था कि जल्द ही शहर में भी गीले कचरे से होम कंपोस्टिंग संबंधी कदम उठाया जाएगा। यह भी आश्वासन दिया गया था कि जल्द ही योजना शुरू होगी, लेकिन हकीकत यह है कि महीनों बीतने के बाद भी ये योजना कागजों में है।

इंदौर से चले थे मुकाबला करने

पब्लिक फीडबैक में नंबर वन आने के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि पिछले दो स्वच्छता सर्वेक्षण में नंबर एक पर आने वाला इंदौर शहर इस बार पीछे हो जाएगा। हालांकि एक कड़वी सच्चाई यह रही कि इंदौर में हो रहे कूड़ा निस्तारण से कोई सबक नहीं लिया गया, जिसकी वजह से झटका लगा। हर बार शहर की सरकार ने इंदौरा की तर्ज पर कार्यप्रणाली तय की लेकिन हर बार मुंह की खानी पड़ी।

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