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कराया 100 करोड़ का फायदा… और नौकरी से बाहर

अलीगढ़ रीजन में एक दशक से फैले फर्जी टिकट रैकेट मामले का किया था पर्दाफाश5 copy

फर्जी टिकट रैकेट मामले में संरक्षण देने वाले निगम मुख्यालय अधिकारियों पर की कार्रवाई की मांग

पीडि़त पंकज लवानियां का आरोप साजिश के तहत समाप्त की गयी संविदा, आर्बीट्रेशन में भी लिया गया एकपक्षीय निर्णय

लखनऊ। बीते एक दशक से रोडवेज बसों पर कब्जा जमा कर परिवहन निगम के 100 करोड़ से अधिक के राजस्व लूट के मामले को उजागर करने वाले को ही परिवहन निगम प्रबंध तंत्र ने नौकरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। पीडि़त अपनी बहाली के लिए परिवहन निगम मुख्यालय पर सेवानिवृत्त कर्मियों के साथ 22 जनवरी से क्रमिक अनशन कर रहा है। पीडि़त भूतपूर्व संविदा परिचालक हाथरस डिपो अलीगढ़ रीजन पंकज लवानियां का कहना है कि अलीगढ़ रीजन में करीब 10 वर्षों से परिवहन निगम मुख्यालय के अधिकारियों के संरक्षण में फर्जी टिकट रैकेट चल रहा था, जिसकी शिकायत मेरे द्वारा किये जाने और एसटीएफ व विभागीय स्तर पर कार्रवाई होने के बाद अलीगढ़ रीजन के क्षेत्रीय प्रबंधक द्वारा मनमाने तरीके से संविदा समाप्त कर दी गयी। उनके मुताबिक पीडि़त की अपील पर आर्बीट्रेशन हुआ, पर आर्बीटे्रशन में भी एक पक्षीय निर्णय लेते हुए संविदा समाप्त संबंधी आदेश को यथावत रखा गया।
प्रतिशोधवश गलत तरीके से समाप्त की गयी संविदा की बहाली के लिए प्रबंध निदेशक परिवहन निगम को दया याचिका संबंधी पत्र भी दिया। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। पीडि़त के मुताबिक 21 अगस्त 2018 को एसटीएफ द्वारा की गयी जांच के आधार पर 3 अक्टूबर 2018 को अधिकारियों व कर्मचारियों पर विभागीय कार्रवाई की गयी। लेकिन परिवहन निगम मुख्यालय में तैनात जो अधिकारी उक्त रैकेट को संरक्षण दे रहे हैं, उन अधिकारियों पर अभी तक कार्रवाई नहीं की गयी, जबकि आधी अधूरी कार्रवाई से अभी भी बहुत से अपराधी छूटे हुए हैं और उक्त भ्रष्टïाचार पर पूरी तरह से लगाम नहीं लग पायी है। बीते 26 नवंबर को बुद्घ विहार डिपो की बस में 59 बेटिकट यात्री और 17 दिसंबर को हाथरस डिपो की बस में 20 बेटिकट यात्री पकड़े गये। इससे साफ जाहिर है कि उक्त रीजन में भ्रष्टïाचार बदस्तूर जारी है और निगम मुख्यालय के उच्चाधिकारियों संरक्षण भी। वहीं इस मामले में जब निगम मुख्यालय के अधिकारियों से बात की गयी तो उनका कहना था कि एक बार आर्बीट्रेशन हो जाने के बाद दोबारा इसकी कार्रवाई नहीं हो सकती। आर्बीट्रेशन के बाद फिर बहाली के लिए एक मात्र रास्ता कोर्ट ही है। हालांकि शुक्रवार देर शाम एएमडी के आश्वासन के बाद क्रमिक अनशन समाप्त कर दिया गया।

यह था मामला

परिवहन निगम अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से अलीगढ़ क्षेत्र में स्थानीय माफिया ने करीब चार दर्जन रोडवेज बसों पर कब्जा कर रखा था और मनमाने तरीके से उनका संचालन करता था। करीब एक दशक से चल रहे इस टिकट घोटाले की भनक मुख्यालय तक थी, लेकिन हर बार मामला दबा दिया जाता था। फर्जी टिकटों से होने वाली कमाई का बंदरबांट माफिया और रोडवेज के कर्मचारी आपस में करते थे। एमडी पी. गुरु प्रसाद ने शिकायत के बाद मामले की जांच पहले एसटीएफ से करवाई और फिर निगम की कमेटी बनाकर पूरे मामले का पर्दाफाश कर संलिप्त अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई की। क्षेत्रीय प्रबंधक, तीन सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक, छह ट्रैफिक सुपरिंटेंडेंट सहित 14 रोडवेज कर्मियों को सस्पेंड कर दिया था। वहीं निगम के 51 संविदा कर्मियों को भी इस मामले में बर्खास्त किया गया। एमडी ने अलीगढ़ क्षेत्र के तत्कालीन आरएम अतुल त्रिपाठी और आगरा आरएम पीएस मिश्र, मथुरा के एआरएम अक्षय कुमार, हाथरस के एआरएम गोपाल स्वरूप शर्मा और बुद्धविहार डिपो के एआरएम योगेंद्र प्रताप सिंह को सस्पेंड किया था। इसके अलावा सस्पेंड किए जाने वालों में आयुष भटनागर, लक्ष्मण सिंह, हेमंत मिश्र, अशोक सागर, आरसी यादव, मेघ सिंह, देवेंद्र सिंह और मनोज कुमार शामिल थे।

भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ अनशन

अलीगढ़ क्षेत्र में हुए फर्जी टिकटों के खेल में जांच रिपोर्ट में परिवहन निगम मुख्यालय के अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई जबकि एसटीएफ ने अपनी जांच रिपोर्ट में निगम मुख्यालय के अफसरों की संलिप्तता भी जाहिर की थी। मामले में दोषी कर्मियों को निलंबित कर दिया गया, लेकिन मुख्यालय पर तैनात अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी गई। इससे नाराज रोडवेज के एक सेवानिवृत्त कर्मचारी ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम मुख्यालय पर क्रमिक अनशन अनशन शुरू किया है। क्रमिक अनशन पर बैठे सेवानिवृत्त कर्मी अशोक लवानिया ने परिवहन निगम मुख्यालय पर तैनात मुख्य प्रधान प्रबंधक संचालन के साथ ही प्रधान प्रबंधक और क्षेत्रीय प्रबंधक के साथ ही वर्तमान में सिटी बस में एमडी के पद पर तैनात अधिकारी को भी भ्रष्टï मानते हुए कार्रवाई की मांग की है। लवानिया का कहना है कि भ्रष्टाचार में दोषी अधिकारियों को परिवहन निगम के उच्च अधिकारियों ने क्लीन चिट दे दी, जबकि निचले क्रम के अधिकारियों और कर्मचारियों पर बड़ी कार्रवाई की गयी। यही नहीं जिस व्यक्ति ने रोडवेज को कम से कम 100 करोड़ के घाटे से बचाया और मामले का खुलासा किया उसी को रोडवेज अधिकारियों ने साजिश रच कर नौकरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

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