लखनऊ। कमर्शियल कनेक्शन वाले उपभोक्ताओं से कम बिजली खपत के बावजूद फिक्स चार्ज के नाम पर अधिक पैसे वसूले जा रहे हैं। कम बिजली खपत करने वाले उपभोक्ताओं से मिनीमम चार्ज गारंटी यानि एमसीजी के रूप में वसूली की जा रही है। पावर कॉरपोरेशन के राजस्व बढ़ाने की मुहिम का शिकार ऐसे उपभोक्ता हो रहे हैं। डिवीजन स्तर पर रेवेन्यू बढ़ाने के हर महीने बढ़ते दबाव को कम करने के लिए अभियंता इस प्रकार के कारनामे को अंजाम दे रहे हैं। पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन एक ओर तो बिजली बचत की दुहाई देता है तो दूसरी ओर कमर्शियल कनेक्शनों पर कम बिजली खपत पर फिक्स चार्ज की वसूली कर उपभोक्ताओं का उत्पीडऩ कर रहा है। विभाग के इस उत्पीडऩ का शिकार व्यवसायिक कनेक्शन धारक ऐसे उपभोक्ता हो रहे हैं जिनकी बिजली खपत महीने में 10 से 15 यूनिट ही है। ऐसे उपभोक्ताओं को महीने में 10 से 15 यूनिट बिजली खपत के बावजूद 60 से 70 यूनिट का बिजली बिल अदा करना पड़ रहा है। मिनीमम चार्ज गारंटी एमसीजी के नाम पर हर महीने 600 से 700 रुपए फिक्स चार्ज के नाम पर लिए जा रहे हैं। कम खपत वाले ऐसे कनेक्शन ज्यादातर गोदामों के हैं। विभाग के इस उत्पीडऩ का शिकार उपभोक्ताओं का कहना है कि व्यवसायिक कनेक्शन के लिए प्रति किलोवाट 225 रुपए फिक्स चार्ज लिया जाता है। इसके साथ ही 4.28 प्रतिशत रेगुलेटरी सरचार्ज के साथ प्रति यूनिट सवा छह रुपये लिए जाते हैं। कुल मिलाकर 10 से 20 यूनिट की बिजली खपत पर हर महीने 300 से 350 रुपए का बिजली बिल बनना चाहिए। लेकिन 10 से 20 यूनिट की खपत के बावजूद हर महीने 60 से 70 यूनिट का बिजली बिल बनाकर दोगुना की वसूली की जा रही है। इसके अलावा कई बाजारों में व्यापारियों से न्यूनतम ६०० रुपये से अधिक का बिल बना दिया जाता है। जिससे कारोबारियों पर बोझ अधिक बढ़ जाता है। केवल अमीनाबाद की बात की जाए तो यहां लगभग ६००० दुकानें है, जिनके करीब ५००० गोदाम है, जहां प्रत्येक माह में केवल १०- २० यूनिट की खपत होती है, लेकिन कारोबारियों से बिजली अधिकारियों द्वारा जबरन अधिक बिल बना दिया जाता है। राजधानी के कमोबेश हर बाजार के व्यापारी इस समस्या को लेकर काफी परेशान है क्योंकि उनका मानना है कि एक तरफ सरकार द्वारा बिजली बचाने की बात कही जाती है तो वहीं दूसरी तरफ कारोबारियों को ज्यादा बिजली खर्च करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। ऐसे में उनकी मांग है कि सरकार को इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए कि जितनी कम बिजली की खपत हो उतना कम बिल लिया जाएं, जिससे बिजली की बचत के साथ आर्थिक परेशानियों का सामना न करना पड़े।
मिनीमम खपत का बना देते हैं बिजली बिल
व्यवसायिक उपभोक्ताओं का कहना है कि 10 से 15 यूनिट की बिजली जलाने के बावजूद 60 से 70 यूनिट का बिजली बिल विभाग की ओर से जनरेट कर दिया जाता है। विभागीय अधिकारी कम बिजली खपत की बात स्वीकार ही नहीं करते हैं। उनका कहना है कि इससे कम बिजली खपत हो ही नहीं सकती। बिल ठीक कराने के लिए अभियंता सप्लाई इंस्पेक्शन रिपोर्ट यानि एसआईआर कराने की बात कहते हुए कई महीने तक मामला लटकाए रहते हैं और कारोबारियों को व्यापार छोड़ अधिकारियों के चक्कर लगाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। कम खपत के बावजूद मिनीमम यूनिट पर बिजली विभाग बिल बनाता रहता है। जिसके बाद समस्या कम होने की बजाय बढ़ती ही जाती है।
दो स्लैब में लिया जाता है फिक्स चार्ज
कम बिजली खपत करने वाले व्यवसायिक उपभोक्ताओं से साल में दो स्लैब के हिसाब से फिक्स चार्ज लिया जाता है। इस स्लैब को साल के 6 महीने के रुप में दो पार्ट में बांटा गया है। ज्यादा बिजली खपत वाले महीने अप्रैल से सितंबर के बीच ५६० रुपये फिक्स चार्ज लिया जाता है और अक्टूबर से मार्च के बीच ३७५ रुपये फिक्स चार्ज वसूला जाता है। साल में भले ही फिक्स चार्ज अलग हो लेकिन विभाग कम खपत के बावजूद वसूली उसी अनुसार ही कर रहा है।
कारोबारियों में जबरदस्त विरोध
अमीनाबाद के कारोबारी संजय कपूर की माने तो फिक्स चार्ज के नाम पर बिजली महकमा कारोबारियों का लगातार शोषण करते रहे है। गोदामों में कम बिजली खपत के बाद भी ज्यादा बिल बना दिया जाता है और फिक्स चार्ज के अंतर्गत बिना उपयोग के भी बिल देना व्यापारियों को खलता है। सरकार को इस व्यवस्था को तत्काल खत्म करना चाहिए नहीं तो व्यापारियों को सड़क पर उतरकर विरोध करना पड़ेगा।
नियामक आयोग का है नियम
इस संबंध में महानगर के उपखंड अधिकारी एसबी सिंह का कहना है कि मिनीमम चार्ज गारंटी यानि एमसीजी का निर्धारण नियामक आयोग की ओर से किया गया है। जानकारों का कहना है कि आयोग ने विभागीय राजस्व कम न हो इसको देखते हुए इसकी व्यवस्था की है।
पहले भी लिया जाता था चार्ज
विभागीय जानकारों की मानें तो विभाग की ओर से पहले भी यह चार्ज लिया जाता रहा है। लेकिन पिछले वर्षों में ज्यादा हो-हल्ला मचाए जाने पर आयोग ने इसे हटा लिया था। लेकिन इसके बाद फिर से इस चार्ज को कमर्शियल कनेक्शन धारक उपभोक्ताओं से वसूला जाने लगा।