- बीते तीन वर्ष से अपने लेखाओं को अंतिमीकरण करने वाले 22 पीसीयू के लेखे जांच में सामने आया यह खेल
- अधिकारियों की मनमानी से लगा सरकार को चूना
- पहुंचाया गया ठेकेदारों को अनुचित लाभ
बिजनेस लिंक ब्यूरो
लखनऊ। त्वरित विकास की अवधारणा पर प्रदेश के सार्वजनिक क्षेत्र के जिन उपक्रमों (पीएसयू) की नींव रखी गई थी, उन्हीं निगमों के मुलाजिमों की लापरवाही व वित्तीय अनियमितताओं के चलते सरकार को 11920.32 करोड़ रुपये की चपत लगी है। यह खुलासा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (कैग) की विधानमंडल में रखी गई रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में लापरवाही, जेएनएनआयूएम के तहत परिवहन सुविधा के संचालन में कमियों और पीएसयू में निवेश से 11920.32 करोड़ की हानि की बात सामने आई है। परिवहन निगम में बकाये की वसूली में ठेकेदार को अनुचित लाभ पहुंचाने, मध्यांचल और पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम को वित्तीय हानि व वन निगम को ब्याज के नुकसान का भी खुलासा किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 103 पीएसयू में से 95 के लेखे 36 साल (1981-82) से बकाया थे। पिछले तीन साल में अपने लेखाओं का अंतिमीकरण करने वाले 22 पीएसयू की जांच में 11920.32 करोड़ रुपये का नुकसान सामने आया है, जबकि 56 पीएसयू के लेखे तैयार ही नहीं किए गए। कैग ने 22 पीएसयू को 56,273.05 करोड़ रुपये और निष्क्रिय पीएसयू को 7.03 करोड़ देने पर राज्य सरकार को भी आड़े हाथों लिया है। रिपोर्ट के अनुसार, बिना लेखाओं के अंतिमीकरण के हजारों करोड़ का बजट देने का आधार समझ नहीं आया है।
उप्र जल निगम और खाद्य एवं आवश्यक वस्तु निगम में कमियां इतनी चिंताजनक मिलीं कि सीएजी ने इस पर टिप्पणी करने से मना कर दिया। वहीं उज्ज्वल डिस्कॉम योजना (उदय) पर कैग ने परिचालन लक्ष्य प्राप्त करने में विफलता की रिपोर्ट दी है।
उप्र आवास विकास परिषद ने शासनादेश का उल्लंघन करते हुए 20 भूखंडों के विक्रय पर 33.89 करोड़ का अधिभार नहीं वसूला। इससे भूखंड के खरीदारों को फायदा हुआ। उप्र राज्य सडक़ परिवहन निगम ने बकाये की वसूली में ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाया, जिससे 16.25 करोड़ रु. का नुकसान हुआ। राजीव गांधी विद्युतीकरण (दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना में शामिल) में 2012-17 की अवधि में 75 जिलों में 86 परियोजनाओं के लिए 11697.83 करोड़ रु. अनुमोदित किए गए। इनमें 11 जिले 11वीं पंचवर्षीय योजना, 53 जिले 12वीं पंचवर्षीय योजना और 11 जिले दोनों योजनाओं में शामिल थे। आरईसी ने डिस्कॉम की लापरवाही से 1197.22 करोड़ की प्रतिपूर्ति रोक दी थी। लेखा परीक्षा में दोषपूर्ण वित्तीय प्रबंधन मिला। इसमें डिस्कॉम ने अनुदान उपलब्ध होने के बावजूद आरईसी से ऋण लिया, जिससे सार्वजनिक कोष पर ब्याज का गैरजरूरी भार पड़ा। जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन के सहयोग से यूपीएसआरटीसी ने प्रदेश के सात शहरों में बस सेवा के संचालन के लिए छह नगरीय यातायात कंपनियों (यूटीसी) का गठन किया गया था।
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण (यूएमटीए) की सिर्फ तीन बैठकें हुईं, जिससे यूटीसी का निरीक्षण नहीं हो पाया। नगरीय परिवहन निदेशालय को दिया गया 445.67 करोड़ रु. का इस्तेमाल ही नहीं किया गया। किसी भी यूटीसी ने अनुपूरक लेखा परीक्षा के लिए सीएजी को वित्तीय विवरण नहीं दिए। 2.04 करोड़ रु. खर्च होने के बावजूद बसों में इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आईटीएस) नहीं लगाए गए। लखनऊ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड और कानपुर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड ने अपनी कार्यशाला और कर्मचारी होने के बावजूद ठेकेदार से रख-रखाव और मरम्मत का कार्य कराया। इससे 20.22 करोड़ रु. का नुकसान हुआ। मध्यांचल और पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड ने कार्यशील मीटरों को नए मीटरों से बदला जिससे और मीटरों का दोबारा प्रयोग नहीं किया। इससे 3.69 करोड़ रु. का नुकसान हुआ। पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम के प्रदाय संहिता 2005 के प्रावधानों का पालन न करने के कारण एक उपभोक्ता को 1.28 करोड़ कम का बिल दिया। दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम ने भारतीय रेल झांसी के विद्युत अभियंता का वास्तविक उपभोग के आधार पर बिल बनाया, जिससे 1.20 करोड़ रु. के राजस्व का नुकसान हुआ। यह रकम तकनीकी खामियों के कारण वसूली भी नहीं जा सकी।
यूपी प्रोजेक्ट कॉर्पोरेशन लिमिटेड में जीएम-पीएम की मनमानी
यूपी प्रोजेक्ट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) ने उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के वॄकग मैनुअल के प्रावधानों का उल्लंघन किया। सरकार के आदेशों को ताक पर रखकर 359.85 करोड़ के 434 कार्यों की स्वीकृति पीएम-जीएम ने दी। 65.27 करोड़ का एडवांस अनियमित तरीके से दिया, जो पूरी तरह से गलत था। इसके अलावा आॢकटेक्ट की नियुक्ति, भुगतान में गड़बड़ी और उनके भुगतान में अनियमितता का खुलासा भी कैग ने किया है।