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फिर याद आई पॉलीथिन

  • फिर पॉलीथिन बंदी को लेकर हलचल तेजpolithin copy
  • पहले भी फ्लाप हो चुका है पॉलीथिन पर प्रतिबंध
  • तय की गयी थी विभागों की जिम्मेदारी
  • हाईकोर्ट की सख्ती के बाद 21 जनवरी 2016 से बैन है पॉलीथिन
  • पहले ही सख्त होती राज्य सरकार तो प्रतिबंध सफल होता
  • बिजनेस लिंक ने कई बार उठाया है मुद्दा

धीरेन्द्र अस्थाना
लखनऊ। आखिरकार यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ये याद आ ही गया कि यूपी में पॉलीथिन पर बैन है। लेकिन उन्होंने दोबारा से ५० माइक्रान से कम की प्लास्टिक को प्रतिबंधित कर दिया है। इससे पहले सपा सरकार के समय 21 जनवरी 2016 को भी पॉलीथिन को प्रतिबंधित किया गया था। प्रतिबंधित प्लास्टिक मिलने पर पांच सौ रुपये जुर्माना भी तय हुआ था। इसके बाद जुर्माने की धनराशि पांच सौ रुपये प्रतिमाह बढऩे का नियम भी बनया गया था। राज्य सरकार ने निर्देश दिया था कि 21 जनवरी से प्रतिबंधित प्लास्टिक का निर्माण करने वाली सभी इकाइयों को चिह्नित करके उन्हें बंद कराया जाएगा। लेकिन यदि उन इकाईयों पर प्रतिबंध लगाने के आदेश दिये जाते तो शायद आज तस्वीर कुछ और ही होती। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दोबारा पॉलीथिन पर बैन लगाने की बात कह कर ये जरूर जता दिया है कि जो पहले प्रतिबंध लगाया गया था वो ये नहीं था, जो अब लग रहा है, वो सही है। यदि पहले लगे प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने के आदेश दिए जाते तो बेहतर होता, लेकिन शायद मुख्यमंत्री जी को याद नहीं रहा होगा…
गौरतलब है कि सरकार बनते ही सीएम योगी ने अधिकारियों को पॉलीथिन बैग पर प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए थे। उन्होंने कहा था कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना सबकी जिम्मेदारी है। लेकिन इसके बाद भी पॉलीथिन बंद करने को लेकर अधिकारी गंभीर नहीं हुए और धड़ल्ले से पॉलीथिन की बिक्री जारी रही और लोग इस सुविधा का लाभ उठाते रहे। लेकिन एक बार फिर मुख्यमंत्री द्वारा 15 जुलाई से 50 माइक्रान से कम की प्लास्टिक को प्रतिबंधित किये जाने के बयान के बाद इससे संबंधित विभागों में हलचल तेज हो गयी है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नगर निकाय सहित इसको क्रियान्वित करने वाले विभागों में एक बार फिर से पॉलीथिन को प्रतिबंधित किये जाने पर बैठकों का दौर शुरू हो गया है। इस संबंध में निर्देश मिलते ही संबंधित विभाग अपने स्तर से कर्रवाई शुरू कर देंगे। लखनऊ मंडल के क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी डॉ. रामकरन ने बताया कि वह नगर आयुक्त को पत्र लिखकर पॉलीथिन प्रतिबंध को कड़ाई से लागू कराने के लिए बोर्ड सहित संबंधित विभागों की टीम गठित करने को कहेंगे। डॉ. रामकरन ने कहा कि लखनऊ में पॉलीथिन उत्पादन करने वाली 13 फैक्ट्रियां हैं और यह सभी इकाईयां बंद चल रही हैं। लखनऊ में आपूॢत बाहर के जनपदों से होती है। हाईकोर्ट के सख्त आदेश के बाद पूर्व सरकार ने निर्देश दिया था कि 21 जनवरी से प्रतिबंधित प्लास्टिक का निर्माण करने वाली सभी इकाईयों को चिह्नित करके उन्हें बंद कराया जाएगा। लेकिन ऐसा होने के बजाए जिम्मेदार विभागों की आंखे नहीं खुली।
मिली जानकारी के मुताबिक राजधानी में आसपास के जिलों से अवैध पॉलीथिन का काला कारोबार संचालित किया जा रहा है। लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर राजधानी में इतनी बड़ी मात्रा में प्रतिबंधित पॉलीथिन का कारोबार संचालित कैसे और किसी शह पर हो रहा है। सूत्र बताते हैं कि आसपास के 10 जिलों से 50 माइक्रॉन से कम मोटी पन्नी की आपूॢत की जाती है। पुराने शहर से लेकर पॉश इलाकों में दर्जनों अवैध यूनिटों के जरिये पॉलीथिन का उत्पादन कर के डिस्ट्रीब्यूटर्स तक पहुंचाया जाता है।

पन्नी का चोखा धंधा
दही, खुला दूध, चाय, मिठाई और खाने पीने की अन्य वस्तुओं के अलावा सब्जी और किराने के सामान में सबसे अधिक अवैध पॉलीथिन का उपयोग किया जा रहा है। इसलिए इसका धंधा चोखा है। लोगों में झोला लेकर चलने की आदत पिछले करीब 15 साल से लगभग खत्म हो चुकी है। इसलिए ऐसी पतली पन्नी की मांग बहुत अधिक बढ़ चुकी है। सामान्य सब्जी वाले को भी अगर अपना माल बेचना है तो पन्नी रखना उसकी मजबूरी है। इसलिए उत्पादन भी उसी रफ्तार में हो रहा है। पॉलीथिन का काला धंधा करने वालों के लिए कम गेज की पन्नी फायदे का सौदा है।
प्रशासनिक सख्ती गायब
करीब दो वर्ष पूर्व कोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश सरकार ने पॉलीथिन बैग पर पूरी तरह से बैन लगाया था। यह बैन निर्माण और बिक्री दोनों पर लागू था। उस समय इसका असर भी दिखाई दिया लेकिन प्रशासनिक सख्ती कुछ समय बाद गायब हो गई। आज फैक्ट्रियों में धड़ल्ले से पॉलीथिन का निर्माण हो रहा है, इसकी रोकथाम के लिए जिम्मेदार अधिकारी अनदेखी कर अन्य कार्यों में व्यस्त है। लखनऊ की बाजार में ही रोजाना करीब 50 टन से अधिक पॉलीथिन की खपत हो रही है।
हद से ज्यादा है खपत
राजधानी में फैक्ट्रियों में इनका निर्माण होता रहा है। हालांकि अधिकारियों के अनुसार राजधानी में एक भी फैक्ट्री नहीं है, जहां पॉलीथिन का उत्पादन किया जा रहा हो। पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों की माने तो अकेले लखनऊ में ही करीब 50 टन से अधिक पॉलीथिन या कैरी बैग की रोजाना खपत है। कानपुर, गाजियाबाद, मेरठ, सहारनपुर, लखनऊ, आगरा से पूरे प्रदेश में पॉलीथिन की सप्लाई की जा रही है। सरकार इनके उत्पादन पर रोक लगाना तो दूर इसके प्रयोग से बचाने के लिए अब तक कोई दूसरा विकल्प भी सामने नहीं ला पायी है। बार-बार इसके प्रतिबंध के दावे किये जा रहे हैं, लेकिन सख्ती से लागू करने में सरकार अब तक विफल है।
इसलिए कोर्ट हुआ था सख्त
रंगीन पन्नी रिसाईकिल करके बनाई जाती है। हाथ से रगडऩे पर यह कलर छोड़ती है, यही रंग जहरीला है। इसके अलावा वैज्ञानिकों के अनुसार पॉलीथिन हवा और पानी में जहर घोल रही है। यह पानी का ऑक्सीजन लेवल कम कर देती है। वहीं इससे सीची गई फसलें शरीर में जाकर नुकसान पहुंचा रही हैं। पॉलीथिन जमीन को बंजर भी बना रही है। इन सब गंभीर कारणों को जानकर ही कोर्ट ने पॉलीथिन के निर्माण व बिक्री पर रोक लगाई थी, लेकिन सरकार के नम्र रवैये के चलते खुलेआम इसका निर्माण और बिक्री बदस्तूर जारी है।
सीएम योगी ने कहा था…
सरकार बनते ही सीएम योगी ने अधिकारियों को पॉलीथिन बैग पर प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए थे। उन्होंने कहा था कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना सबकी जिम्मेदारी है। लेकिन इसके बाद भी पॉलीथिन बंद करने को लेकर अधिकारी गंभीर नहीं हुए और धड़ल्ले से पॉलीथिन की बिक्री जारी है और लोग इस सुविधा का लाभ उठा रहे है और अभी १५ जुलाई तक उठाते रहेंगे।

उत्पादन से लेकर सभी तरह से पॉलीथिन को सख्ती से रोका जाएगा। प्रदूषण नियंत्रण विभाग, जिला प्रशासन और पुलिस के साथ मिल कर पॉलीथिन के अवैध उत्पादन को रोकेंगे।
इंद्रमणि त्रिपाठी, नगर आयुक्त

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