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भिक्षुक पुनर्वास योजना का निकला दम

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शैलेन्द्र यादव। लखनऊ।

सूबे में भिक्षुकों को पुनर्वासित कर समाज की मुख्यधारा से जोडऩे की परिकल्पना पर साकार हुई भिक्षुक पुनर्वास योजना का दम निकल गया है। समाज कल्याण विभाग की इस योजना को स्वयं पुनर्वास के आक्सीजन की सख्त दरकार है। इस दुर्गति का कारण समाज के अंतिम पायदान पर पड़े भिक्षुकों के प्रति उपेक्षित व्यवहार है। साथ ही जिम्मेदारों की अनदेखी ऐसी कि भिक्षुक कल्याण की इस योजना के तहत सूबे में स्थापित आठ भिक्षुक गृह खाली पड़े हैं। पर, यहां तैनात विभागीय मुलाजिम प्रतिवर्ष बिना काम करोड़ों गिन रहे हैं और भिक्षुक सड़कों पर रात गुजार रहे हैं। भिक्षावृत्ति, कानूनन अपराध है। पर, इस अपराध को शहर के मुख्य चौराहों, इबादत घरों सहित सार्वजनिक स्थलों पर फलते-फूलते देखा जा सकता है। सूबे की राजधानी लखनऊ सहित औद्योगिक नगरी कानपुर, ताजनगरी आगरा और तीर्थ नगरी वाराणसी, इलाहाबाद व फैजाबाद में स्थापित आठ भिक्षुक गृहों में एक भी भिक्षुक मौजूद नहीं है।

सूबे के भिक्षुक गृहों में नहीं है एक भी भिक्षुक, कर्मचारी ले रहे वेतन

विभागीय जिम्मेदारों का कहना है कि पुलिस जिन भिक्षुकों को हिरासत में लेकर मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर करती है, उन्हें ही समाज कल्याण विभाग के भिक्षुक गृहों में रखा जाता है। विभाग सीधे भिक्षुकों को यहां नहीं ला सकता है। वैसे, विभाग के भिक्षुक गृहों की इमारत जर्जर हैं, इसलिये किसी भिक्षुक को पुनर्वास योजना के तहत यहां नहीं रखा गया है। राज्य सरकार ने इस योजना के तहत भिक्षुक गृहों में भिक्षुकों को रहने-खाने, स्वास्थ्य, रोजगारपरक प्रशिक्षण और शिक्षा की व्यवस्था की थी। साथ ही भिक्षुओं को मुख्य धारा से जोडऩे के लिये रोजगार मुहैया कराने की भी व्यवस्था की गई थी। पर, यह योजना सफेद हाथी साबित हुई है। भीख मांगते बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों में कई मजबूरी में ऐसा कर रहे हैं तो कुछ ने इसे अपना पेशा ही बना लिया है।

पुनर्वास के लिए लखनऊ, कानपुर, मथुरा, आगरा, इलाहाबाद और फैजाबाद में बनाये गये भिक्षुक गृह हैं जर्जर

भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान के संयोजक शरद पटेल बताते हैं, भिक्षावृत्ति आज भी देश की गंभीर समस्या है। हर दिन बड़ी तादाद में भिक्षुक रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बाजार, मन्दिर और चौराहों पर हाथों में कटोरा लिये दिखाई देते हैं। भिक्षावृत्ति में बच्चों से लेकर बुजुर्ग, महिलायें सभी शामिल हैं। भिक्षावृत्ति के प्रमुख कारण निर्धनता, बेरोजगारी, प्राकृतिक आपदा, जनसंख्या विस्फोट और नगरीकरण को बताते हुये शरद कहते हैं प्रदेश में भिक्षुक पुनर्वास के लिए सरकार की ओर से आठ भिक्षुक गृह बनाये गये हैं। मगर, इनमें एक भी भिखारी नहीं रहता है। इस योजना का सही क्रियान्वयन न होने से भिक्षुकों का पुनर्वास दूर की कौड़ी साबित हुआ और यह योजना दम तोड़ गई। बीते चार साल से भीख मांग रहे हैं राजधानी के मडिय़ांव निवासी भिक्षुक रवि कुमार इंटर पास हैं।

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के भिक्षुक गृह की हालत सही, पर वहां भी नहीं कोई भिक्षुक

रवि ने बताया चार साल पहले कुछ पारिवारिक झगड़ों की वजह से घर से निकल आया, कई दिनों तक जब मजदूरी नहीं मिली तो मजबूरी में भूख मिटाने के लिये भीख मांगी तब शाम को खाना मिला। अब दिनभर भीख मांगकर रात को सड़क पर सोना ही नसीब बन गया है। दिन के 50-60 रुपये मिल जाते हैं। रवि ने अब तो मजदूरी खोजना भी बंद कर दिया है। रवि की तरह प्रदेश में भीख मांगते लाखों बच्चे, युवा, महिलायें और बुजुर्ग पुनर्वास योजना के कारगर क्रियान्वयन के अभाव में भीख मांगने का दंश झेल रहे हैं। राजधानी के चौक क्षेत्र स्थित राजकीय प्रमाणित संस्था भिक्षुक गृह की हालत बदतर है। इमारत जर्जर है। जिला समाज कल्याण अधिकारी केएस मिश्रा कहते हैं कि यहां का भिक्षुक गृह पिछले कई वर्षों से जर्जर पड़ा है। इसलिए यहां कोई भिक्षुक नहीं रहता है। मोहान रोड पर नया भिक्षुक गृह बनने की जगह चिन्हित हो गयी है। शासन को बजट बनाकर भेजा गया है पर अभी नये भवन का निर्माण शुरू नहीं हुआ है।

भिक्षावृत्ति प्रतिषेध अधिनियम-1975
बता दें कि सूबे में उत्तर प्रदेश भिक्षावृत्ति प्रतिषेध अधिनियम-1975 लागू है। इसके तहत भिक्षावृत्ति कानूनन अपराध है। भिक्षावृत्ति को रोकने और भिक्षुकों को मुख्यधारा से जोडऩे के लिये इस अधिनियम में तमाम व्यवस्थायें की गई हैं। भिक्षुक पुनर्वास योजना के तहत प्रदेश में स्थापित आठ भिक्षुक गृहों में 18-60 वर्ष तक के भिक्षुकों को रहने-खाने, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा रोजगारपरक प्रशिक्षण देने की व्यवस्था है। पर, समाज कल्याण विभाग की यह योजना कागजों पर ही गुलाबी है।

66 प्रतिशत युवा मांग रहे भीख
भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान चला रहे सामाजिक कार्यकर्ता शरद पटेल बीते दो वर्षों में लखनऊ के विभिन्न स्थानों पर लगभग 3,000 से अधिक भिक्षकों से मिले। अपने शोध में शरद ने पाया कि भिक्षावृत्ति में लगे 66 प्रतिशत से अधिक भिक्षुक युवा हैं, जिनकी उम्र 18-35 वर्ष के बीच है। 28 प्रतिशत भिक्षुक वृद्ध हैं। पांच प्रतिशत भिक्षुक 5-18 वर्ष के हैं। शोध के मुताबिक, लखनऊ में भीख मांगने वालों में 71 प्रतिशत पुरुष और 27 प्रतिशत महिलायें भिक्षावृत्ति से जुड़ी हैं। इनमें 67 प्रतिशत अशिक्षित और 33 प्रतिशत शिक्षित हैं। लगभग 11 प्रतिशत पांचवी तक पढ़े हैं। पांच प्रतिशत आठवीं, चार प्रतिशत दसवीं और एक प्रतिशत स्नातक होने के बावजूद राजधानी की सड़कों पर भीख मांग रहे हैं।

तत्कालीन जिलाधिकारी राजशेखर के प्रयास भी बेअसर
बीते एक दशक से राजधानी के राजकीय प्रमाणित संस्था भिक्षुक गृह का भवन जीर्ण-शीर्ण होने के चलते यहां भिक्षुकों को नहीं रखा जाता। २९ नवम्बर २०१० को मोहान रोड में समाज कल्याण विभाग की भूमि पर नये भवन निर्माण की योजना बनी। पर, पांच वर्षों तक किसी ने संज्ञान नहीं लिया। तत्कालीन जिलाधिकारी राजशेखर ने भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान को जनपद में प्रभावी रूप से लागू कराने के लिये अगस्त २०१५ को विशेष बैठक बुलाई। उन्होंने तत्कालीन प्रमुख सचिव और निदेशक समाज कल्याण विभाग से नये भिक्षुक गृह निर्माण के लिये आवश्यक कार्रवाई करने का अनुरोध किया। साथ ही अपने स्तर से भी संभव प्रयास किये। पर, उनके जाते ही भिक्षुकहित के यह प्रयास ठंढे बस्ते में चले गये।

भिक्षावृत्ति एक सामाजिक, आॢथक धाॢमक समस्या है। विभिन्न राज्यों ने भिक्षावृत्ति के उन्मूलन के लिये दंडात्मक प्रक्रिया अपना रखी है इसीलिए इस समस्या का उन्मूलन संभव नहीं हो पा रहा है। बड़े ही खेद का विषय है कि उत्तर प्रदेश के किसी भी भिक्षुक गृह में एक भी भिक्षुक नहीं रह रहा है जबकि वहां तैनात अधिकारियों-कर्मचारियों को प्रति माह वेतन मिल रहा है। भिक्षुकों को पुनर्वास की सुविधायें उपलब्ध करके समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है। साथ ही मंदिर-मस्जिद पर फुटकर दान न देकर समूह बनाकर धन एकत्रित करके गुरुद्वारों की भांति लंगर की व्यवस्था से काफी हद तक भिक्षावृत्ति का उन्मूलन संभव होगा।
डॉ0 संदीप पाण्डेय, रेमन मैग्सेसे अवार्डी, संरक्षक- भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान

निर्धनता, बेरोजगारी, प्राकृतिक आपदा, जनसंख्या विस्फोट और नगरीकरण भिक्षावृत्ति के मुख्य कारण हैं। प्रदेश में आठ भिक्षुक गृह हैं। पर, इनमें एक भी भिखारी नहीं रहता। योजना का सही क्रियान्वयन न होने से भिक्षुकों का पुनर्वास दूर की कौड़ी साबित हुई और भिक्षुकहित की यह योजना दम तोड़ गई।
शरद पटेल, संयोजक, भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान

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