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वैध-अवैध का खेल

  • आरा मशीन संचालकों की रोजी रोटी छीन बैठा वन महकमा
  • आरा मशीन के लाइसेंस नवीनीकरण में फेल साबित हुआ वन विभाग
  • लाइसेंस न देकर अवैध घोषित करार किया, मशीन भी उखाड़ ले गए

DSC_0323धीरेन्द्र अस्थाना

लखनऊ। कई दशकों से संचालित आरा मशीनों को लाइसेंस न देकर उनको अवैध घोषित कर वन अधिकारी भले ही अपनी पीठ थपथपा रहे हों, लेकिन आपको जानकर बड़ी हैरानी होगी कि आखिर इतने सालों से चल रही मशीनों को अचानक बंद करने की नौबत आखिर क्यों आयी। बिजनेस लिंक ने टिंबर कारोबार की पड़ताल कर जाना कि योगी सरकार का डंडा हर तरफ बारी- बारी से चल रहा है तो क्यों न विभाग द्वारा भी कोई अच्छा कार्य कर वाह-वाही लूटी जाए। ऐसे में वन विभाग के पास साफ्ट टारगेट में टिंबर कारोबार ही था, जिसको विभागीय आलाधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक ने लाइसेंस न देने के लिए बेबस बना रखा था।
कई सालों बाद सही मौका मिलते ही अचानक टीम ने योजनाबद्घ तरीके से छापेमारी शुरू की और एक के बाद एक २८ मशीनों को बिना कारण और बिना नोटिस के उखाड़ कर जब्त कर लिया। हालांकि उनमें कई ऐसे भी थे जो लाइसेंस के लिए सालों से रसीद लेकर भटक रहे थे, लेकिन उन कारोबारियों को लाइसेंस देने के बजाय सालों-साल दौड़ाया जाता रहा। करीब ५० सालों से चल रही मशीनों पर दो महीने से कार्य नहीं हुआ है, ऐसे में आरा मशीन संचालकों की नहीं बल्कि उनके साथ जुड़े सैकड़ों परिवार को दो जून की रोटी तक नसीब नहीं हो रही है।
गौरतलब है कि लखनऊ में जिन आरा मशीनों पर वन विभाग ने चाबूक चलाया था, उनको लाइसेंस न देकर अवैध बनाकर जो चोट पहुंचायी है, उससे नुकसान केवल वन विभाग का ही नहीं है बल्कि सबसे बड़ा नुकसान सूबे के विभागों को हुआ है जिनसे करोड़ों रुपए के राजस्व सरकार के खजाने तक पहुंचता था, जिनमें खासतौर से वाणिज्यकर, मंडी परिषद और बिजली महकमा शामिल था। कारोबारियों की मानें तो सरकार को लाइसेंस नवीनीकरण करना चाहिए, जिससे टिंबर कारोबारियों को अधिकारी- कर्मचारियों के चक्कर में न फंसना पड़े। कुछ कारोबारी सूत्रों की मानें तो विभागीय अधिकारियों के भ्रष्टï आचरण की वजह से लाइसेंस नवीनीकरण हमेशा से दुविधा का कारण बनता रहा है, जिसमें कुछ कारोबारियों ने भी सहयोग किया। कारोबारियों ने स्वीकार्य किया कि आज इन सब गलतियों के कारण ही अधिकारियों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी छीन ली गयी। नोटबंदी की मार से पहले ही क्या कम टिम्बर व्यवसायी परेशान थे, जिसके ऊपर उनको अवैध का दाग झेलने को मजबूर कर दिया गया।
उ.प्र. टिम्बर एण्ड प्लाईवुड ट्रेडर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियोंकी मानें तो संगठन सांसद कौशल किशोर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गृहमंत्री राजनाथ सिंह व राज्यपाल को ज्ञापन दे चुके हैं। यदि जल्दी कुछ सुनवाई नहीं हुई तो संगठन अनिश्चित कालीन धरने पर बैठेंगे। हालांकि कारोबारी सीएम योगी आदित्यनाथ से मिले थे। मीडिया प्रभारी मोहनिश त्रिवेदी के मुताबिक सीएम ने अपने सचिव को मामले में कार्रवाई के निर्देश के साथ ही रसीद रखने वालों के नवीनीकरण पर नियमों के तहत कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। लेकिन अधिकारी इतने बेलगाम हो चुके हैं कि सीएम के निर्देशों को भी नकार रहे हैं। इस संबंध में बिजनेस लिंक ने क्षेत्रीय डीएफओ व रेंजर से बात करने की कोशिश की, लेकिन कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। एसोसिएशन द्वारा एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की गई थी जिसमें संगठन के विधि सलाहकार आशीष त्रिवेदी द्वारा प्रदेश सरकार व वन विभाग को पार्टी बनाया गया है।

आरा मशीनों पर ताले
राजधानी लखनऊ की केवल बात की जाए तो शहर के अंदर की दशकों से चल रही करीब 250 दुकानों पर अबतक ताला बंदी हो चुकी है। इसके अलावा राजधानी से जुड़े ग्रामीण इलाकों की बात की जाए तो वहां भी करीब 150 के ऊपर आर मशीनें बंद कर उनके परिवार को वन अधिकारियों ने रोजी- रोटी का मोहताज बना दिया है। आज इन हजारों बेरोजगारों को परिवार के पालन- पोषण के लिए, रोटी के लिए दर- दर की ठोकरें खाने को मजबूर होना पड़ रहा है।

अब तक क्या कर रहा था विभाग?
ऐशबाग में 1958 से आरा मशीनें चल रही हैं। हालांकि तब आरा मशीनों को लेकर नियमावली नहीं बनी थी। 1973 में नियमावली बनने के बाद इन मशीनों का रजिस्ट्रेशन करवाया गया। तब नगर निगम में इससे संबंधित पंजीकरण की व्यवस्था थी, लेकिन कारोबारियों के अनुसार 1978 में वन विभाग की स्थापना के बाद टिंबर व लकड़ी के संबंधित सभी कारोबार को इनसे संबंधित किया गया। हालांकि तब लाइसेंस का प्रावधान नहीं था, लेकिन जब बना तो सुचारू रूप से लाइसेंस देने में विभाग सुस्त रहा और कारोबारियों की पर्ची कटती रही, लेकिन कभी लाइसेंस या रिन्यू नहीं किया गया। जानकारी के लिए बता दें कि इसमें सुप्रिम कोर्ट द्वारा दिए आदेशानुसार पर्यावरण को देखते हुए कुछ परिवर्तन भी किये गये हैं, जिसके अनुसार नये लाइसेंस पर रोक है। पुरानी कट रही पर्चियों के आधार पर ही लाइसेंस जारी करने का स्लेब है। जिसको चार कैटेगरी में विभाजित किया गया है। अब व्यापारियों का सवाल ये है कि यदि विभाग द्वारा जिन मशीनों को अब उखाड़ा गया है तो उनसे इतने साल से फीस आदि क्यों ली जाती रही।

 व्यापारियों का पक्ष 

लाइसेंस बनाने में सिंगल विंडो सिस्टम के तहत कार्ययोजना तय की जाए, ताकि सरलीकरण के साथ- साथ पारदर्शिता भी बनी रहे। अगर विभाग कारोबार को यूं ही बंद करता रहेगा तो उनके राजस्व में तो कमी आयेगी, साथ ही कारोबार भी चौपट होता रहेगा। इसके अलावा व्यापारी उत्पीडऩ करने से राजस्व हानि ही होगी और कारोबारी के साथ मजदूरों की भी रोजी- रोटी का संकट पैदा होगा।

अभय प्रताप सिंह, महामंत्री, उ.प्र टिंबर एंड प्लाईवुड एसोसिएशन

१६ अपै्रल की कार्यवाही से १५०० लोगों को भुखमरी का शिकार होना पड़ा है। इस दिन को हम काला दिवस के रूप में मनायेंगे। मेरी मांग है कि १९७८ में जिस रसीद को लाइसेंस माना जाता था, उसको मान्य किया जाए। इसके अलावा वन विभाग के अधिकारियों की संपत्ति की जांच होनी चाहिए।
मोहनीश त्रिवेदी, मीडिया प्रभारी, उ.प्र टिंबर एंड प्लाईवुड एसोसिएशन

३५ साल से लगातार टैक्स देने के बाद भी लाइसेंस नहीं दिया गया। इसके अलावा मैं वन विभाग से वैध और अवैध की श्रेणी की नियमावली जानना चाहता हूं। जो आज तक कारोबारियों को सही तरह बतायी ही नहीं गयी। कार्यवाही के दौरान कुछ मशीनों का बिजली मीटर तक उखाड़ दिया था, वो उनके दायरे में कैसे आ गया।
जितेंद्र सिंह, उपाध्यक्ष, उ.प्र टिंबर एंड प्लाईवुड एसोसिएशन

विभाग की तरफ से पात्रों को लाइसेंस नहीं मिलता और उसे अवैध घोषित कर दिया जाता है। जिनके लाइसेंस नहीं बनाये गए है, उनकी जांच करनी चाहिए कि आखिर अब तक विभाग ने रसीद के आधार पर लाइसेंस क्यों नहीं जारी किये। विभागीय कार्यवाही की पूरी तरह से जांच होनी चाहिए।
राजू बत्रा, संरक्षक, उ.प्र टिंबर एंड प्लाईवुड एसोसिएशन

वन विभाग द्वारा १६ अपै्रल को जबरन मशीन उखाड़ कर ले गये। उन ३ मशीन से हमारे परिवार के ५० लोगों को रोटी मिलती थी और कई लोगों के पास रोजगार था। दो महीने से सही तरह से पेट नहीं भरा है, रोजा खोलने के बाद भी कभी- कभी खाली पेट सोना पड़ता है। घर में ३ लोगों की दवा चलती है, जिसके लिए कर्जदार हो चुके है।
मो. जाहिद, मशीन संचालक

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