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सूरत की घटना : उद्यम बनाम मजदूर संघर्ष की प्रस्तावना

  • पंकज जायसवाल

सूरत में मजदूरों का मिल मालिक के खिलाफ विद्रोह कोरोना की तरह ही पहली चिंगारी है जिसे सभी सरकारों को ध्यान देने की जरूरत है। समय के साथ वेतन न मिलने की घटनाएं बढ़ती जाएंगी। अप्रैल माह में बिक्री कुछ अत्यावश्यक वस्तुवों को छोड़ बिक्री शून्य है, मई में वेतन समेत अन्य स्थाई खर्चों के भुगतान का वक़्त आ रहा है. जून माह में भयंकर संकट और भयंकर विद्रोह की भी आशंका है, जब मिल मालिकों को जून माह में मार्च से लेकर जून माह मतलब 4 माह का इकट्ठे कॅश क्रेडिट ऋण का एवं ओवरड्राफ्ट ऋण का ब्याज देना है, और लगभग सारे टैक्स की तारीख जून कर दी गई है। न तो  सरकार ने टैक्स माफ किया है और ना ही ब्याज सिर्फ उसे  स्थगित किया गया है, जिस पर ब्याज की लागत भी उद्यमी को वहन करना है। मार्च माह से अति जीवनावश्यक चीजों को छोड़ लगभग 95% उद्योगों की बिक्री शून्य है,एक पैसा खाते में नहीं आया है, मई तक भी आने की उम्मीद नहीं है, पुराना बकाया भी नही मिल रहा, जून की बिक्री का पैसा भी तुरन्त नहीं मिलने वाला, क्यों कि ज्यादेतर खरीददार खुद नगदी संकट में होंगे, ऐसे में मासिक वेतन व मजदूरी का भुगतान, मार्च में एक साथ 4 माह का कार्यशील ऋण का ब्याज, ज्यादेतर टैक्स और कंप्लायंस का इकट्ठा बोझ उद्यमियों की कमर तोड़ेंगे, अगर रोका नहीं गया इसे तो हो सकता है कि मजदूरों कर्मचारियों और उद्यमियों के बीच भी संघर्ष के पटकथा की  ज़मीन तैयार हो जाए।

कोरोना का यह संक्रमण अगर लम्बा चला तो सबसे अधिक मार खायेगा मध्य वर्ग और एमएसएमई सेक्टर, उच्च आय वर्ग के पास तो खुद का धन है, गरीबों का राशन और ख्याल सरकार रख रही है लेकिन मध्य वर्ग ना तो राशन के लिए कतार में लग सकता है ना ही खुले तौर पर अपनी व्यथा कह सकता है, अपने दिल में दर्द की चिंगारी वह लेकर बैठा है, और तब तक बैठा है जब तक पानी सर से ऊपर नहीं चला जाता है, सरकार को चाहिए की वह इस स्थिति को भांपे और पानी को सर के ऊपर से नहीं जाने दे, कोरोना के इस जंग में सब सरकार के साथ हैं सबको सरकार पर भरोसा है और सबको सरकार के द्वारा लिए गए कदम से संतोष है, चिंता है तो बस यही की इकॉनमी का क्या होगा जब यह बंदी पूरी तरह से खुलेगा, क्यूँ की इस प्राकृतिक आपदा पर तो विश्व के किसी भी सरकार का वश नहीं चल रहा, ऐसे में इकॉनमी तो सिर्फ एक हिस्सा है.

एमएसएमई सर्विस सेक्टर, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर एवं ट्रेडिंग सेक्टर के पास उतना शॉक अब्जोर्बेर नहीं होता की लगातार इस झटके से  उबर ले. इनके आयार्जन की क्षमता काफी घट गई है, कुछ स्थाई खर्चे ऐसे हैं जिन्हें आय हो न हो खर्च करना ही है. इस वर्ग के सामने सबसे बड़ी चिंता है की इस लॉक डाउन में और आगे भी अपने स्टाफ एवं मजदूरों को वेतन कहाँ से दे, सरकारों का फरमान आ रहा है की वेतन देना है, लेकिन एमएसएमई के पास यदि पैसा ही न हो, बिक्री शून्य हो, ऋण मिलने वाला नहीं है साइकिल रुकी हुई है तो वह दें तो दें कहाँ से . जितने भी एमएसएमई हैं कहीं न कहीं वह बड़े इंटरप्राइजेज पर ही निर्भर हैं और बड़े इंटरप्राइजेज के ऊपर पड़ी मार का भार आज भी और आगे भी इनके उपर ही आने वाला है, देनदारी वसूली के साथ साथ एमएसएमई के कॉन्ट्रैक्ट की साइज़ या मूल्य कम होने की सम्भावना है .

लॉक डाउन में मजदूरों और सप्लाई चेन की समस्या तो है ही, लॉक डाउन के बाद मटेरियल और मजदूरों की अनुउपलब्धता, ग्राहक व्यवहार में परिवर्तन, रेट कट का दबाब, उत्पादन बंद करने की नौबत, नकदी संकट,एक साथ ब्याज और टैक्स पेमेंट का संकट, सप्लाई चेन का संकट आदि से दो चार होना है. एमएसएमई का धंधा कम होने पर अंत में मार मध्य वर्ग के  वेतनभोगियों पर ही पड़ेगी. और एक बार जब यह मार पड़ेगी तो सूरत की तरह उद्यमी और मजदूर आमने सामने भी खड़े हो सकते हैं. ऐसी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जितने भी औद्योगिक संगठन है जिसमें असोचैम, फिक्की, पीएचडी चैम्बर और खासकर के एमएसएमई के लिए कार्य कर रही संस्था लघु उद्योग भारती और  स्माल इंडस्ट्रीज एंड मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन ( सीमा) हो सबको आगे आकर इन चिंताओं का समाधान ढूंढने में सरकार की मदद करनी पड़ेगी. इस संकट की घडी में यह अब सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं रह गई है, यह इन संगठनों की भी जिम्मेदारी हो गई है की अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करें और हल ढूंढने में मदद करें.

मेरा मत है कि सरकार को वेज सब्सिडी, बिजली फिक्स्ड चार्ज की ६ माह तक माफ़ी, सिर्फ प्रयोग में लाये गए बिजली पर ही बिल, भरे गए टैक्स के बराबर प्रतिभूति रहित ऋण, एनपीए नियमों में राहत, एन सी एल टी में राहत, एमएसएमई से सरकारी खरीद की सीमा को 50 प्रतिशत तक किया जाए, पुराने सरकारी बकायों का भुगतान निर्गत , कंप्लायंस में राहत सितम्बर तक बढाया जाए. ऋण लेना सुगम बनाया जाय, मोरेटेरियम 6 माह तक , ब्याज का भार सिर्फ ईएमआई राशि पर बजाय पूरे बकाये राशि के, कर्जमाफी की जगह ब्याजमाफी का विकल्प या सभी तरह के ऋणों पर ब्याज दर कम करने का प्रस्ताव, बैंकों द्वारा अनावश्यक कई तरह के चार्ज एवं पेनल ब्याज हटाने जैसे कदम लेने चाहिए. सबसे अधिक प्रभावित सेक्टर टूरिस्ट, एविएशन, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक, इन्फ्रा, निर्माण, सप्लाई चेन आदि पर विशेष पैकेज या इंडस्ट्री के हिसाब से टैक्स हॉलिडे भी लाया जा सकता है. मेरा यह भी मत है की सरकार का भी राजस्व प्रभावित होगा, ऐसे में राजकोषीय घाटा कम करने हेतु पीएम केयर फंड फंड को टैक्स पेमेंट या सरकारी बांड से लिंक कर टैक्स कलेक्शन का अग्रिम संग्रह कर लेना चाहिए.

सरकार को एक अध्ययन कमेटी बनानी चाहिए जो एक निष्कर्ष रिपोर्ट दे की लॉक डाउन की स्थिति में कैसे और किन विधियों का पालन करते हुए  उद्योग एवं सरकारी विभाग काम कर सकते हैं, उनके कार्य करने के तरीके और संस्कृति क्या हो, हो सकता है हम ऐसी कार्य संस्कृति इस महामारी में विकसित कर लें की वह औद्योगिक, सामाजिक, पारिवारिक और प्रकृति सब के अनुकूल हो. लॉक डाउन एक अवस्था है, और ऐसा नहीं है की विश्व में मानव का दिमाग यह विधि न विकसित कर ले की ऐसी परिस्थिति में उद्यम कैसे करें. जब मानव अन्तरिक्ष में भी कार्य करने की विधि विकसित कर चुका है तो यह तो एक लॉक डाउन है, और यदि इस डर के आगे हमने विधि विकसित कर लें तो डर के आगे जीत है.

साथ में सरकार को ध्यान देना चाहिए कि मजदूरों के पलायन के बाद उच्च वेतन और पेशेवरवर्ग का भी पलायन हो सकता है, कॉर्पोरेट अपने हानि का बहुत सा भार इनके खर्चे को कम करके करना चाहेंगे ऐसे में हो सकता है की मजदूरों के बाद कर्मचारी और बाद में पेशेवर का पलायन शुरू हो. हालांकि मजदूर या पेशेवर पलायन का दूसरा पहलू ये भी है कि तब उद्यम और रोजगार का केन्द्रीयकरण नहीं विकेंद्रीकरण होगा और कस्बों का विकास देखने को मिलेगा, जो शहरीकरण से कहीं बेहतर हो और गांवो के विकास में सहायक होंगे.

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