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तेलंगाना दुष्कर्म अमानवीय लेकिन विकास था सम्पूर्ण व्यवस्था को चुनौती

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प्रणय विक्रम सिंह
मुख्यधारा की मीडिया से लेकर सहज उपलब्ध सोशल मीडिया जगत तक, दुर्दांत अपराधी विकास दुबे के गुनाहों से लेकर उसके गिरोह के सफाए तक के घटनाक्रम की विवेचना से आबाद हैं। दीगर है कि यह छिद्रांवेषण, विधि विशेषज्ञों से लेकर आमजन के द्वारा किया जा रहा है। लेकिन इन सबके मध्य विकास दुबे के इनकाउण्टर और तेलंगाना के रेप अपराधियों के इनकाउण्टर को एक ही तर्ज पर देखे जाने की चर्चा भी सोशल मीडिया पर बहुत जोरो पर चल रही है। लेकिन क्या वाकई में इन दोनों “इनकाउण्टर” में कोई समानता है? क्या दोनों अपराधों की प्रवृति एक ही थी?
इस बात पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व डीजीपी बृजलाल कहते हैं कि यह तुलना निरर्थक है। अपराधी विकास दुबे के सभी अपराधिक कृत्यों के देखा जाए तो ‘धन लिप्सा’ के साथ ही उसके मन में राजसत्ता के प्रति अजीब तरह की नफरत दिखाई पड़ती है, जोकि आतंकियों और नक्सलियों में विद्यमान रहती है। जबकि तेलंगाना की अमानवीय घटना एक स्त्री के प्रति जघन्य अपराध था। दोनों अपराधों की प्रवृति पूणर्तः भिन्न है। एक मानवता के विरुद्ध कृत्य है तो दूसरा सम्पूर्ण व्यवस्था को चुनौती। अतः दोनों की तुलना ही बेमानी है।
यहां एक बात और काबिल-ए-गौर है कि तेलांगना के रेप-अपराधियों ने यद्यपि जघन्यतम अपराध किया था किंतु इसके पूर्व उनका कोई बर्बर अपराधिक इतिहास नहीं रहा जबकि दुर्दांत अपराधी विकास दूबे के नाम पर दर्ज 64 मामले उसके हार्डकोर क्रिमिनल होने की मुनादी करते हैं। इन 64 मुकदमों में हत्या के 08, हत्या के प्रयास के 10, डकैती और लूट के 04 मामले और  हाल ही में 08 पुलिस कर्मियों की हत्या के मामले दर्ज हैं। विकास दुबे उ.प्र. में 05 लाख रूपए का इनामी अपराधी था, जबकि हैदराबाद रेप काण्ड के अभियुक्तों पर किसी प्रकार का कोई इनाम घोषित नहीं था।
हैदराबाद गैंग रेप के सभी अभियुक्त, अपराध को अंजाम देने के बाद पुलिस के डर से फरार हो गए। वह सभी अपनी शिनाख्त को किसी भी कीमत पर जाहिर नहीं करना चाहते थे। जबकि विकास दुबे ने 2001 में उ.प्र. सरकार के दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री संतोष शुक्ला की दिनदहाड़े पुलिस थाने के अंदर हत्या की थी। न शिनाख्त छुपाने की कोशिश न पहचान जाहिर होने का डर। कानून के इकबाल को ऐसी वीभत्स चुनौती चंद अपराधियों के द्वारा ही मिली होगी।
हैदराबाद गैंग रेप के सभी अभियुक्तों का अपराध को अंजाम देने के बाद भाग जाना यह बताता है कि उन्हें पुलिस के साथ-साथ लोगों का भी डर था जबकि विकास दुबे, कानपुर नगर व देहात क्षेत्र में आतंक का पर्याय था। इसके विरूद्ध कोई भी व्यक्ति साक्ष्य देने तथा पुलिस में शिकायत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था।
एक बात और कि हैदराबाद गैंग रेप के अभियुक्तों का पुलिस पर हमलवार होने का कोई रिकार्ड नहीं रहा जबकि विकास दुबे ने सदैव ही पुलिस को अपमानित किया। विकास दुबे का हर अपराध, शासन-सत्ता के इकबाल को चुनौती था। 2001 में पुलिस थाने के अंदर राज्यमंत्री संतोष शुक्ला का वीभत्स कत्ल हो याकि 2020 में 08 पुलिसकर्मियों का जघन्य हत्याकाण्ड, यह बताता है कि उसकी निगाह में राज्य की शक्ति का पर्याय ‘पुलिस’, कोई खास “हैसियत” नहीं रखती थी।
दीगर है कि 02 जुलाई 2020 को अपराधी विकास दुबे को पुलिस की दबिश की सूचना काफी पहले ही प्राप्त हो गई थी। किंतु वह दुस्साहसिक अपराधी, फरार होने के बजाए असलहे और लोगों को इकट्ठा कर पुलिस पर हमले की योजना बनाता है। बर्बरता का आलम यह था कि पुलिसकर्मियों को पकड़ कर गोली मारी गई। इतनी बेरहमी कि शहीद सीओ देवेंद्र मिश्रा का पहले कुल्हाड़ी से पैर काटा फिर हत्या की। यहां तक उसने शहीद पुलिसकर्मियों के शवों को भी सामूहिक रूप से जलाने की नाकाम कोशिश की। उनके सरकारी असलहों को लूट लिया।
दरअसल विकास दुबे, नक्सलियों और आतंकियों की तरह स्वयं को स्वयंभू “सरकार” समझता था। वह चाहता था कि पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी उसकी अनुमति के बिना उसके कथित क्षेत्र में प्रवेश न करें। पुलिस की दबिश को उसने अपनी स्वंयभू सरकार की हैसियत को चुनौती माना, अंजाम हमारे सामने है। जबकि हैदराबाद रेप काण्ड के अभियुक्तों के सम्बंध में ऐसी कोई बात नहीं थी।
गौरतलब है कि हैदराबाद रेप काण्ड के अभियुक्तों ने एक अकेली अबला के साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या की थी जबकि विकास दुबे ने अपने 70-80 हथियारबंद साथियों के साथ दबिश डालने आये पुलिस कार्मिकों की हत्या कर उनके हथियारों को लूट लिया था। दोनों की प्रवृत्ति में जमीन-आसमान का अंतर था।
तथ्य, तर्क और साक्ष्यों की बुनियाद पर देखा जाए तो सहज ही ज्ञात हो जाता है कि हैदराबाद बलात्कार काण्ड के अभियुक्तों का पूर्व में जघन्य अपराध का कोई आपराधिक इतिहास नहीं रहा, जबकि विकास दुबे के अपराध और उसकी दुर्दांत कार्यशैली, उसे एक खतरनाक हत्यारे, गैंगेस्टर व अभ्यस्थ अपराधी की परिधि तक ही सीमित नहीं रखते, बल्कि उसे आंतंकियों और नक्सलियों की श्रेणी तक ले जाते हैं।
ध्यातव्य है कि नक्सलियों को अवश्य पुलिसकर्मियों का अंगभंग करते व उनके शवों पर नाचते देखा गया है। उसके पीछे उनका उद्देश्य राजसत्ता के विरूद्ध अपनी शक्ति और समार्थ्य को प्रकट करना होता है। विकास दुबे नक्सली भले न हो लेकिन नक्सल कार्यशैली से प्रेरित अवश्य था। ध्यातव्य है कि विकास दुबे के पैतृक घर से एके-47 और इंसास राइफलों की बरामदगी उसके जघन्यतम अपराधी होने की गवाही दे रही हैं।
दोनों इनकाउण्टरों में वहां की राज्य सरकार की कार्यवाहियों में भी काफी भिन्नता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने दुर्दांत अपराधी विकास दुबे के इनकाउंटर की निष्पक्ष जांच के लिए अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में विशेष अनुसंधान दल का गठन किया बल्कि उसके साथ ही उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायमूर्ति के नेतृत्व में एकल सदस्यीय जांच अयोग का भी गठन कर दिया तथा आयोग द्वारा जांच भी प्रारम्भ की जा चुकी है। जबकि हैदराबाद बलात्कार काण्ड के इनकाउण्टर की निष्पक्ष जांच के लिए तेलंगाना सरकार ने अभी तक कोई न्यायिक आयोग गठित नहीं किया।
अतः दोनों मामलों को समतुल्य बताना, विषय का अति सरलीकरण है। समाज और स्वयं को गुमराह करना है।

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