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बसाहट में वन्य जीवों की आहट

(शरद खरे)Wildlife-and-its-Conservation-in-India

आबादी का दबाव किस कदर तेजी से बढ़ रहा है.. इसबात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। कभी आप इंटरनेट की सहायता से गूगल मैप से किसी भी शहर या सिवनी को देखें तो आपको शहर के आसपास नयी बसाहट आसानी से दिखायी दे जायेंगी। यही आलम ग्रामीण अंचलों का है।
जंगलों के आसपास ग्रामीणों के द्वारा बसाहट के जरिये वन्य जीवों के प्राकृतिक रिहाईश वाले क्षेत्रों को कम किया जा रहा है। सिवनी शहर से महज तीन-चार किलोमीटर दूर ही काले हिरणों के झुण्ड आसानी से देखे जा सकते हैं। शहर में ज्यारत नाके से भैरोगंज होकर नागपुर मार्ग के लगभग पांच किलोमीटर की परिधि में दक्षिण की ओर इन हिरणों की भरमार है।

अरी क्षेत्र के आसपास लगभग एक-डेढ़ माह से एक बाघ ने कोहराम मचा रखा था। आधा दर्जन मवेशियों को यह अपना ग्रास बना चुका था। वन विभाग के दल को भी इसे पकड़ने में भारी मशक्कत करनी पड़ी। बमुश्किल पकड़ाये बाघ को सीधी भेज दिया गया। इसके साथ ही ग्रामीण उग्र हो गये। ग्रामीणों का गुस्सा लाजिमी था। जब तक उन्हें यह बात पुख्ता तौर पर पता न चल जाये कि बाघ को पकड़ लिया गया है, उनका डर कैसे दूर होता!

सवाल यह उठता है कि आखिर वन्य जीव अपने प्राकृतिक आवास को छोड़कर आबादी की ओर रूख क्यों कर रहे हैं? इस बारे में वन विभाग के आला अधिकारियों को शोध करने की आवश्यकता है। सिवनी जिले में अचानक ही ऐसा क्या हो गया है कि वन्य जीव विशेषकर बाघ जैसा खूंखार जानवर गांवों की ओर रूख करने पर मजबूर हो रहा है।

बाघ के बारे में यही कहा जाता है कि नर बाघ व्यस्क होते ही अपना क्षेत्र निर्धारित कर लेता है। इसके क्षेत्र में मादा बाघ तो घूम सकतीं हैं पर दूसरा वयस्क नर बाघ अगर इसके क्षेत्र में प्रवेश करता है तो इनके बीच वर्चस्व की जंग आरंभ हो जाती है। जो जीता वो सिकंदर की तर्ज पर जीतने वाला ही उस क्षेत्र का राजा होता है। वर्चस्व की इस जंग में बाघों की जान जाने के अनेक उदाहरण भी मौजूद हैं।

अगर बाघ जंगल से निकलकर बाहर आ रहा है तो या तो वह भोजन की तलाश में है या फिर अपने क्षेत्र निर्धारण के लिये ऐसा कर रहा है। कहते हैं पेंच नेशनल पार्क में नर शावकों की तादाद भी ज्यादा हो चुकी है। वन विभाग के अधिकारियों को चाहिये कि अभी से इसके लिये कार्ययोजना तैयार कर ली जाये, वरना आने वाले समय में वर्चस्व की जंग में और बाघ काल-कलवित हो जायें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

अगर पेंच क्षेत्र में बाघों की तादाद कम है तो फिर टी-22 को पेंच की बजाय संजय नेशनल पार्क सीधी भेजने का क्या औचित्य है? जाहिर है सिवनी में जंगल के इलाकों से ज्यादा तादाद में बाघ हो चुके हैं। वनाधिकारी अपने-अपने स्तर पर सिर जोड़कर इस समस्या के निदान के लिये जुटे ही होंगे। संवेदनशील कलेक्टर धनराजू एस. एवं सांसद विधायकों से भी जनापेक्षा है कि जंगली जीवांें के स्वच्छंद जीवन जीने के मार्ग प्रशस्त करने में वे भी महती भूमिका अदा करें।

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